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बापू की इस सीख को समझिए

कल गांधी जयंती है। इस अवसर पर हम हर बार अपने-अपने तरीके से बापू को याद करते हैं। कुछ उन्हें अवतार साबित करने पर तुल जाते हैं, तो कुछेक को उनमें तमाम खामियां नजर आती हैं। यही गांधीजी की शक्ति है। वह...

बापू की इस सीख को समझिए
शशि शेखर Wed, 04 Oct 2017 11:00 PM
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कल गांधी जयंती है। इस अवसर पर हम हर बार अपने-अपने तरीके से बापू को याद करते हैं। कुछ उन्हें अवतार साबित करने पर तुल जाते हैं, तो कुछेक को उनमें तमाम खामियां नजर आती हैं। यही गांधीजी की शक्ति है। वह जीते जी व्यक्ति से विचार में तब्दील हो गए थे और इसीलिए उन पर होने वाली हर बहस उनके अमरत्व को पुख्ता करती चलती है। जो नहीं जानते, उनको बता दूं कि गांधीजी का दैनिक हिन्दुस्तान टाइम्स  की स्थापना में बहुत बड़ा योगदान था। वह जानते थे कि आजादी की लड़ाई में समाचारपत्रों का योगदान महत्वपूर्ण होता है, इसीलिए उन्होंने इसके प्रकाशन की प्रेरणा दी। 26 सितंबर, 1924 को इस समाचार पत्र को बतौर दैनिक देश की जनता को सौंपते समय उनकी ख्वाहिश थी कि जंग-ए-आजादी और समाज सुधार के यज्ञ में इसकी बड़ी भूमिका होनी चाहिए। उनके सुपुत्र देवदास गांधी उस वक्त हिन्दुस्तान टाइम्स  के संपादकीय मंडल में थे, बाद में उन्होंने संपादक का कार्यभार भी सफलतापूर्वक संभाला।

हिन्दुस्तान टाइम्स समूह का ध्येय आज भी देश सेवा और समाज सुधार है। इसीलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब गांधी जयंती से पहले का पखवाड़ा सफाई को समर्पित करते हुए नारा दिया- स्वच्छता ही सेवा, तो हमें लगा कि इस रचनात्मक काम में हिन्दुस्तान  को भागीदारी निभानी चाहिए। शासन में बैठे लोग इस क्षेत्र में चाहे जितने प्रयास कर लें, पर सब जानते हैं कि यह काम बिना जन-जागृति के संभव नहीं। इसीलिए हिन्दुस्तान  ने इसे एक मुहिम के तौर पर लिया। हमारा यह अभियान सामाजिक सुधार के लिए की गई सरकारी पहल का सकारात्मक समर्थन भर नहीं, बल्कि हिन्दुस्तान टाइम्स के संरक्षक और राष्ट्रपिता को सच्ची श्रद्धांजलि भी है। स्वामी विवेकानंद कहा करते थे कि स्वस्थ तन में ही स्वस्थ मन का वास होता है। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि गंदगी हर बरस लाखों लोगों के प्राण हर रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में प्रति एक लाख आबादी पर 133 से अधिक मौतें प्रदूषित हवा के कारण होती हैं। एक अन्य रिपोर्ट के मुताबिक, हर वर्ष हमारे देश में 11 महीने तक की उम्र के एक लाख बच्चे गंदगी की वजह से अकाल काल के गाल में समा जाते हैं। इनमें से कई तो अपने जीवन का पहला महीना ही पूरा नहीं कर पाते। स्वच्छता के अभाव में मलेरिया, डायरिया, एनीमिया, हैजा, डेंगू, और हेपेटाइटिस जैसी 15 गंभीर बीमारियां भारतवासियों पर कहर बरपा रही हैं। 

जो देश खुद को विश्व की बड़ी आर्थिक महाशक्ति बनाने में जुटा हो, उसके लिए ये अच्छे संकेत नहीं हैं। इस दुष्प्रवृत्ति से जनांदोलन के जरिए ही निपटा जा सकता है।
इस नेक काम को सफल बनाने केलिए हमने सबसे पहले जन-संवाद का फैसला किया। पहले चरण में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार और झारखंड के सभी जिलों में एक साथ ‘संवाद’ आयोजित किए गए, जिनमें समाज के सभी वर्गों के नुमाइंदे आमंत्रित किए थे। हमें जानकर खुशी हुई कि इतनी बड़ी संख्या में आए लोगों ने स्वच्छता-अभियान में अपनी भागीदारी के प्रस्ताव को दिल से समर्थन दिया। लोगों ने खुद ही अपनी भूमिकाएं निर्धारित कीं और अभियान का हिस्सा बन गए। अब तक 3,500 से ज्यादा कार्यक्रमों में लाखों लोग स्वच्छता कायम रखने की शपथ ले चुके हैं। मैं यहां कोई निश्चित आंकड़ा इसलिए नहीं दे रहा हूं, क्योंकि दो अक्तूबर की शाम तक यह प्रक्रिया जारी रहेगी और इसमें लगातार बढ़ोतरी होती जा रही है। बताना चाहूंगा कि यह शपथ सिर्फ नाम भर की नहीं है। लोगों ने इस पर तत्काल अमल करना भी शुरू कर दिया है। मसलन, विगत 23 सितंबर को देहरादून में बारिश हो रही थी। हिन्दुस्तान  के सहयोगियों ने पाया कि शपथ के अनुसार बहुत से लोग बरसातियां ओढ़े अथवा छाते ताने हुए कूड़ा साफ करने के लिए आ जुटे थे। गांधीजी ऐसे ही स्वावलंबन के लिए प्रेरित करते थे। हमारे लिए यह जानना सुखद था कि लोग सरकारी तंत्र पर आश्रित होने की बजाय खुद-ब-खुद अपने पास-पड़ोस को साफ करने के लिए आ डटे थे। 

ऐसा नहीं है कि सिर्फ देहरादून में लोग प्रकृति की मार की परवाह किए बिना आगे आए। धनबाद की कोयला खदानों के श्रमिक बेमौसम की बारिश से बेपरवाह हो विशाल गोधर मैदान में एकत्रित हुए। उन्होंने भी शपथ पर तत्काल अमल करने का आश्वासन दिया। इसके उलट वाराणसी के अस्सी घाट पर आयोजित कार्यक्रम के समय सूरज आसमान पर अपने समूचे ताप के साथ दहक रहा था। पारा 36 डिग्री से अधिक था, मगर उस गरमी में महिलाओं और बच्चों सहित हजारों लोग कार्यक्रम के समापन तक डटे रहे। ऐसे तमाम सुखद अनुभव हिन्दुस्तान  के साथियों को इस दौरान हुए। यहां उन सबकी एक साथ चर्चा करना संभव नहीं, पर यह तय है कि अगर श्रमदान की यह परंपरा कायम रही, तो तय है कि देश की सेहत संबंधी कई समस्याएं खुद-ब-खुद सुलझ जाएंगी। हमें विश्वास है कि दो अक्तूबर को गांधी जयंती के अवसर पर जब हम इस अभियान का समापन करेंगे, तब तक यह संख्या बहुत विशाल हो चुकी होगी। अगले वर्ष देश बापू की 150वीं जयंती वर्ष के आयोजनों की शुरुआत करेगा। इस एक वर्ष में अगर सत्ता और आम आदमी के समन्वय से भारत कुछ अधिक साफ नजर आए, तो यह समूचे राष्ट्र की ओर से राष्ट्रपिता को सच्ची आदरांजलि होगी। 

यहां हम उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या, उप मुख्यमंत्री दिनेश शर्मा, बिहार के उप-मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत और झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवर दास का खासतौर पर जिक्र करना चाहेंगे। इन्होंने न केवल इस अभियान को सफल बनाने में सहयोग दिया, बल्कि हमारे द्वारा आयोजित कार्यक्रमों में निजी तौर पर शिरकत भी की। इसके अलावा अनेक प्रादेशिक एवं केंद्रीय मंत्री, जन-प्रतिनिधियों के साथ शामिल हुए। स्वच्छता सामाजिक उत्थान का विषय है। यह संतोष की बात है कि हमारे राजनेताओं ने वैचारिक मतभेद से ऊपर उठकर हिन्दुस्तान  के इस मिशन को अपना मिशन माना। हम हिंदी पट्टी के उन जागृत लोगों का भी तहेदिल से शुक्रिया अदा करना चाहेंगे, जिन्होंने ‘स्वच्छता ही सेवा’ मिशन को अपनाया और कसम खाई- ‘मां कसम, हिन्दुस्तान स्वच्छ रखेंगे हम’। उम्मीद है, यह कभी न खत्म होने वाला एक  ऐसा अभियान साबित होगा, जो उस स्वच्छ और स्वस्थ भारत की बुनियाद रखेगा, जिसके हम हकदार हैं।

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@shekharkahin 
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