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घिरता पाकिस्तान

पाकिस्तान समर्थित आतंकी गतिविधियों से परेशान अमेरिका ने पाकिस्तान के सबसे बड़े निजी बैंक, हबीब बैंक की न्यूयॉर्क में 40 साल से चल रही शाखा को बंद करा दिया है। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर छवि सुथरी दिखाने...

घिरता पाकिस्तान
हिंदुस्तानFri, 08 Sep 2017 10:28 PM
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पाकिस्तान समर्थित आतंकी गतिविधियों से परेशान अमेरिका ने पाकिस्तान के सबसे बड़े निजी बैंक, हबीब बैंक की न्यूयॉर्क में 40 साल से चल रही शाखा को बंद करा दिया है। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर छवि सुथरी दिखाने की बेचैनी में डूबे पाकिस्तान के लिए यह बड़ा झटका है। अमेरिका में हबीब बैंक की इस एकमात्र शाखा पर भारी पैमाने पर मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप हैं। न्यूयॉर्क के वित्त विभाग (डीएफएस) ने इसे बार-बार चेतावनी के बावजूद नियमों के उल्लंघन का दोषी माना है। हबीब बैंक पहली बार चर्चा में नहीं आया है। 1978 से न्यूयॉर्क में चल रहे इस बैंक पर आतंकवादियों को फंडिंग का जरिया बनने के आरोप लगते रहे हैं। 2008 में इसे पहली बार चेतावनी मिली, लेकिन असल दिक्कतें 2016 में शुरू हुईं, जब डीएसएफ ने अपनी जांच में इसे हजारों बैंक लेन-देन में अपराधियों को, यहां तक कि काली सूची वाली प्रतिबंधित संस्थाओं तक को लाभ पहुंचाने का दोषी पाया। इसके  बाद से ही बैंक डीएफएस के राडार पर था, पर उसने कोई सुधार नहीं किया। ट्रंप प्रशासन द्वारा पाकिस्तान की वित्तीय मदद में कटौती के बाद अब इस कदम को घेरेबंदी की शुरुआत माना जा सकता है। दो दिन पूर्व ही अमेरिका ने पाकिस्तान को चेतावनी दी थी कि यदि उसने आतंकी समूहों के प्रति अपना नजरिया नहीं बदला, तो उसके प्रति भी नजरिया बदला जाएगा। अमेरिकी रुख के पीछे वह रिपोर्ट भी जिम्मेदार मानी जा रही है, जिसमें हबीब बैंक पर अल कायदा से जाहिरी रिश्ता रखने वाले सऊदी निजी बैंक ‘अल रजी’ के साथ भी अरबों डॉलर के लेन-देन का आरोप है। 


हबीब बैंक पर अमेरिकी कार्रवाई स्वागत योग्य है, लेकिन यह इतनी भी पर्याप्त नहीं है कि देर तक सराही जा सके। अमेरिका अतीत से लेकर अब तक जिस तरह पाकिस्तान के मामले में ढुलमुल रवैया अपनाता रहा है, उसमें इसे भी एक घुड़की से ज्यादा कैसे माना जाए, जब आतंकवाद से गलबहियां करने के हजार बहाने और तौर-तरीके दिखाई देते हों? कैसे माना जाए कि हबीब बैंक पर कार्रवाई टेरर फंडिंग की राह का अंतिम खूंटा होगी, जब यह मात्र एक जरिया हो, एकमात्र जरिया नहीं। दरअसल हबीब बैंक तो टेरर फंडिंग का एक स्रोत या एजेंट मात्र है, असली सिरा तो अरब देशों में है। अमेरिका को भारत में एनआईए की उस बड़ी कार्रवाई को देखने की भी जरूरत है, जिसमें दिल्ली, गुरुग्राम के लेकर श्रीनगर तक टेरर फंडिंंग के संदिग्ध दर्जनों ठिकानों पर एक साथ कार्रवाई हुई है। कई अलगाववादी नेता पहले ही एनआईए की गिरफ्त में आ चुके हैं। हवाला ऑपरेटरों के नंबरों वाली डायरी, लेजरबुक के साथ ही क्रॉस एलओसी वित्तीय लेन-देन संबंधी दस्तावेज और लैपटॉप, मोबाइल और हार्ड डिस्क जिस तरह बरामद हुए हैं, एक बड़े नेटवर्क को तोड़ने में सफलता का परिचायक है। 

आतंकवाद की पनाहगाह बन चुके पाकिस्तान के बारे में एक ताजा रिपोर्ट उसे दुनिया के उन शीर्ष 50 देशों में शामिल दिखा रही है, जहां आतंकी फाइनेंसिंग और मनी लॉन्ड्रिंग का सबसे ज्यादा जोखिम है। भारत इस सूची में बहुत नीचे है। यह पाकिस्तान के लिए चेतने का वक्त है। अमेरिका को भी सोचना होगा कि अकेले पाकिस्तान को निशाना बनाने से मकसद नहीं सधने वाला। टेरर फंडिंग के कई चोर रास्ते अफगानिस्तान,  ईरान, ताजिकिस्तान, लाओस, मोजांबिक, माली, युगांडा, कंबोडिया और तंजानिया जैसे देशों में भी खुलते हैं। कुछ गलियां फिनलैंड, लिथुआनिया, एस्टोनिया की ओर भी जाती हैं। हां, पाकिस्तान इस मामले में सबसे आगे है, यह मानने में शायद पाकिस्तान में बैठे हुए बहुत सारे सुलझे हुए लोगों को  भी संकोच नहीं होगा।

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