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दिमाग की आदत

इस मामले में हम दो अलग-अलग ध्रुवों पर हैं। एक कहती है कि आदतें बेवजह नहीं होतीं, तो दूसरी कहती है कि आदतों की कोई वजह नहीं होती। आप इसमें से किसी भी राय से इत्तेफाक रखते हों, सच यही है कि हर किसी के...

दिमाग की आदत
हिन्दुस्तानSun, 24 Sep 2017 10:34 PM
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इस मामले में हम दो अलग-अलग ध्रुवों पर हैं। एक कहती है कि आदतें बेवजह नहीं होतीं, तो दूसरी कहती है कि आदतों की कोई वजह नहीं होती। आप इसमें से किसी भी राय से इत्तेफाक रखते हों, सच यही है कि हर किसी के पास कम से एक आदत तो होती ही है, जो उसे दूसरों से अलग भी करती है और कभी-कभी उसकी पहचान भी बनती है। यानी जितने लोग, उतनी आदतें। कोई सिर खुजलाता है, तो कोई बार-बार अपनी कमीज का कॉलर दुरुस्त करता है, ऐसे लोग भी हैं, जो इसके लिए कॉलर तक हाथ ले जाने की जहमत भी नहीं उठाते, वे कंधे उचकाकर और गरदन को दाएं-बाएं घुमाकर ही कॉलर के बीच अपने आप को व्यवस्थित करने की कोशिश करते हैं। अपने नाखून चबाने वाले लोग तो आपको हर गली मिल जाएंगे। कुछ समय पहले तक भारतीय क्रिकेट टीम के एक कप्तान की भी यही आदत थी। मैच जब अपने चरम तनाव के क्षणों में होता था, तो अक्सर वह टेलीविजन के परदे पर नाखून चबाते हुए दिखाई देते थे। इसी तरह, तकिया कलाम को भी एक तरह की आदत ही माना जाता है, तो कुछ लोग बात-बात पर गला खंखारते हैं। पर ये आदतें सिर्फ आदतें होती हैं या कुछ कहती भी हैं? पिछले कुछ समय में वैज्ञानिकों ने अपनी आदत के अनुसार इसमें काफी सिर खपाया है और अब वे नतीजे के करीब पहुंचते दिख रहे हैं।

वैज्ञानिकों ने पाया है कि ये सभी आदतें अक्सर अनैच्छिक होती हैं, हमें पता भी नहीं चलता और ये हमारे व्यवहार का हिस्सा बन जाती हैं। कोई टोक दे, तो हम इसे रोक देते हैं, मगर मौका जब आता है, तो ये आदतें भी हमारे बर्ताव में पहले की तरह लौट आती हैं। क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट अली मट्टू के अनुसार, हमारे शरीर का इस तरह का बार-बार दिखने वाला बर्ताव हमारे दिमाग के उस हिस्से से नियंत्रित होता है, जिसे बेसल गैंग्लिया कहा जाता है। दरअसल, हमारे दिमाग का यही हिस्सा शरीर की गति और उसके संचालन को नियंत्रित करता है। इसमें से ज्यादातर गति और संचालन हमारी इच्छा से होता है, इसलिए यह अनैच्छिक गति कहां से आती है, इसे अभी ठीक तरह से समझा नहीं जा सका है। इससे बड़ा सवाल यह है कि कोई किसी आदत को क्यों अपना लेता है? मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि इस तरह की आदतें अक्सर हमारे समाज की तनावपूर्ण स्थितियों या समाज की स्थितियों से हमारे तनावपूर्ण संबंधों से उपजती हैं।

न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय के लैंगोन मेडिकर सेंटर के न्यूरोसर्जन एलॉन मोंग्लीनर के अनुसार, हमारे दिमाग के सर्किट का संतुलन बड़ा नाजुक है और अगर किसी चीज या किसी काम पर आपके मन के भाव उखड़ते हैं, तो आप बहुत कुछ वैसा करने लग जाते हैं, जो दरअसल आप नहीं करना चाहते। यानी ऐसी आदतों का सिर्फ एक ही मतलब है कि हमारा दिल और दिमाग हालात के साथ सहज नहीं हैं। इन आदतों की एक खास बात होती है कि आमतौर पर ये किसी से सीखी नहीं जातीं, बल्कि ये हर किसी के शरीर की अपनी मौलिक अभिव्यक्ति होती हैं। शरीर का बर्ताव कैसा होगा, दिमाग हर मौके पर यह अपने आप तय कर लेता है। और ऐसा नहीं है कि यह बर्ताव सिर्फ तनाव के क्षणों में ही व्यक्त होता है, कुछ आदतें तो तब भी दिखती हैं, जब आप बोर हो रहे होते हैं, जबकि कुछ आदतें आपको तब आ घेरती हैं, जब आप दुखी होते हैं। कुछ लोग अपनी ऐसी आदतों को लेकर इस कदर परेशान होते हैं कि मनोचिकित्सक के पास जा पहुंचते हैं, जबकि कुछ को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। हालांकि वैज्ञानिक अभी पूरी तरह से समझ नहीं पाए हैं कि यह शरीर का बॉयोकेमिकल लोचा है या इसका कुछ और कारण है।

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