ग्राहक के हित में
यह एक बहुत बड़ा सच है कि कुछ कारोबार आज भी ऐसे हैं, जिनमें आखिर में ग्राहक ही ठगा जाता है। उन दुकानों में भी जहां यह लिखा होता है कि ग्राहक ही भगवान है। ऐसा ही एक कारोबार है जमीन-जायदाद का, जिसमें...
यह एक बहुत बड़ा सच है कि कुछ कारोबार आज भी ऐसे हैं, जिनमें आखिर में ग्राहक ही ठगा जाता है। उन दुकानों में भी जहां यह लिखा होता है कि ग्राहक ही भगवान है। ऐसा ही एक कारोबार है जमीन-जायदाद का, जिसमें शिकायतें लाखों-लाख हैं। जितने ग्राहक, उतनी ही शिकायतें या शायद शिकायतें उससे कुछ ज्यादा ही होंगी। ग्राहकों की तरह-तरह की शिकायतें रही हैं। जैसा वायदा था, किसी को वैसा घर नहीं मिला। किसी को जितना बड़ा बताया था, उतना बड़ा घर नहीं मिला, सारी बात कारपेट एरिया और फ्लोर एरिया में उलझा दी गई। समय पर घर बनाकर न देना तो सबसे आम शिकायत रही है। अपने घर का सपना लाखों खर्च करने के बाद भी अधूरा ही रहा। जिसे मिल गया, उसकी अलग शिकायत, बिजली कनेक्शन के लिए एनओसी नहीं मिल रही, या फिर बिल्डर रजिस्ट्री नहीं करवा रहा। पिछले कुछ साल में ग्राहकों को ऐसी समस्याओं से मुक्ति दिलाने के लिए सरकारों ने काफी सिर खपाया। इसके बाद जब रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी का निर्माण हुआ, तो लगा कि इन समस्याओं से काफी हद तक मुक्ति मिल जाएगी। कुछ हद तक मुक्ति मिली भी। लेकिन अब एक नई समस्या खड़ी हो गई है। जमीन-जायदाद का कारोबार तेजी के आसमानी उछाल वाले दौर से लुढ़ककर मंदी के दौर में गोते लगाने लगा है। इस बाजार की बड़ी-बड़ी कंपनियों के एक के बाद एक दिवालिया होने की खबरें आ रही हैं। यह उनके लिए नया खतरा है, जिन्होंने घर खरीदने के लिए अपनी जीवन भर की जमा-पूंजी इस कंपनियों के हवाले कर दी थी।
अभी तक दिवालियापन का जो कानून है, उसमें इन लोगों के लिए राहत की गुंजाइश बहुत कम थी। आमतौर पर इसकी जो प्रक्रिया रही है, उसमें कंपनियों को कर्ज देने वालों को ही महत्व मिलता रहा है, उन्हें ही स्टेकहोल्डर्स माना जाता रहा है और यह भी कहा जाता है कि ऐसे मौके पर वे आपस में मिलकर अपना धन उसकी संपत्तियों से निकाल लेते हैं और फिर बाकी के लिए बहुत कम ही बचता है। यह ऐसी समस्या है, जिसे लेकर सुप्रीम कोर्ट भी अपनी चिंता समय-समय पर जाहिर कर चुका है। अब अच्छी बात यह है कि इस दिवालिया कानून में भी संशोधन कर दिया गया है। नए कानून में घर या फ्लैट खरीदारों को भी प्रमुख स्टेकहोल्डर माना जाएगा। यानी दिवालिया होने वाली कंपनी की संपत्तियों के निपटारे से पहले अब उनकी आपत्तियों को भी सुना जाएगा और उनके साथ प्राथमिकता के आधार पर न्याय होगा। इनसॉल्वेन्सी और बैंकरप्सी बोर्ड ने इस नए कानून को अंतिम रूप दे दिया है। कुछ दिन पहले इसकी अधिसूचना भी जारी कर दी गई थी, अब इसमें और नया संशोधन किया गया है। इसलिए उम्मीद है कि घर के सपने के लिए निवेश करने वालों का सपना अब भले ही पूरा न हो पाए, लेकिन उनके साथ सरासर अन्याय नहीं होगा। ऐसे बदलाव की इस समय बहुत ज्यादा जरूरत इसलिए भी थी कि जमीन-जायदाद के बाजार में मंदी का दौर अभी लंबा खिंचने की आशंका जताई जा रही है।
इन लोगों को किस हद तक न्याय मिल पाएगा, इसे समझने के लिए हमें अभी कुछ समय और इंतजार करना होगा। सक्रिय उपभोक्ता संगठन इस काम को बहुत अच्छे ढंग से अंजाम दे सकते हैं। लेकिन दिक्कत यह है कि भारत में न तो कोई सशक्त उपभोक्ता आंदोलन है और न ही कोई मजबूत उपभोक्ता संगठन, जिससे आम आदमी को बहुत उम्मीद बंधती हो। ऐसे में, आम आदमी की मदद के लिए सरकार को ही अंत तक सक्रियता दिखानी होगी। अगर हमारी सरकारें ऐसा कर सकीं, तो वे इस आरोप से भी बच सकेंगी कि सरकारें हमेशा पैसे वालों के हित की बात ही सोचती हैं।