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उपाय नहीं समाधान

खबरों में कहा जा रहा है कि राष्ट्रीय हरित अधिकरण ने प्रदूषण को लेकर केंद्र और राज्यों की सरकार को फटकार लगाई है। मगर सच यह है कि अधिकरण ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र यानी एनसीआर के आम लोगों के गुस्से...

उपाय नहीं समाधान
हिन्दुस्तानThu, 09 Nov 2017 11:24 PM
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खबरों में कहा जा रहा है कि राष्ट्रीय हरित अधिकरण ने प्रदूषण को लेकर केंद्र और राज्यों की सरकार को फटकार लगाई है। मगर सच यह है कि अधिकरण ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र यानी एनसीआर के आम लोगों के गुस्से को ही एक दूसरी तरह से व्यक्त किया है। अदालत ने कहा है कि लोगों से उनके जीने का अधिकार छीना जा रहा है और सरकारें तमाशा देख रही हैं। यह वही बात है, जिसे एनसीआर के आम लोग पिछले कई दिनों से (या यूं कहें कि पिछले कई साल से) महसूस कर रहे हैं। एनसीआर की हवा आमतौर पर पूरे साल खतरनाक स्तर से ज्यादा जहरीली रहती है, लेकिन इन दिनों उसमें घुल रहे जहर ने खतरे के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। यह पहली बार नहीं है, हर साल इस मौसम में यही होता है। सर्दी की दस्तक के साथ ही जब उत्तर भारत में कोहरा फैलने लगता है, तो इसमें धूल के साथ-साथ तरह-तरह का धुआं घुलकर इसे जहरीला बना देते हैं। सांस लेना दूभर हो जाता है, लोगों का दम घुटता है और दमे व एलर्जी जैसे रोगों के मरीजों की संख्या बढ़ने लगती है। जो लोग कल तक भले-चंगे थे, वे खांसने-खंखारने लगते हैं। यह समस्या हर साल बढ़ रही है, लेकिन दुर्भाग्य से इसका कोई समाधान नजर नहीं आ रहा।

बहरहाल, हरित अधिकरण ने इसका एक तात्कालिक इलाज तो दिया ही है। एनसीआर में निर्माण गतिविधियों पर उसने अगले आदेश तक पूरी तरह से रोक लगा दी है। साथ ही, ऐसी सभी औद्योगिक गतिविधियों को भी बंद करने का आदेश दिया है, जो वायुमंडल को प्रदूषित करती हैं। दिल्ली सरकार ने अपनी तरफ से एक दिन पहले ही पर्यावरण का आपातकाल घोषित कर दिया था। उसने शहर में बाहर से ट्रकों के आने पर भी रोक लगा दी थी। अगले सप्ताह से दिल्ली की सड़कों पर ऑड-ईवन योजना भी लागू हो जाएगी। यानी सम और विषम नंबरों वाली कारें अलग-अलग दिन ही चल सकेंगी। उम्मीद है कि इससे आधी संख्या में ही निजी कारें सड़कों पर उतर पाएंगी। इन तरीकों का कितना असर पड़ता है, यह हम अगले सप्ताह ही जान पाएंगे। हो सकता है कि इसका सचमुच अच्छा असर पड़े और एनसीआर के लोग वाकई राहत महसूस करें, लेकिन इसका एक अर्थ यह भी निकलेगा कि यहां जो हालत हो गई है, उसमें आपातकालिक उपायों के अलावा अब कोई और चारा नहीं रह गया है। सवाल यह है कि  ऐसे आपातकालिक उपाय अपनाए बिना लोगों को उनके आम दिनों में राहत कैसे पहुंचे? हरित अधिकरण की चिंता भी यही है और यही काम नहीं हो पा रहा। इस पूरे क्षेत्र ही नहीं, समूचे देश में ऐसे तरीके नहीं अपनाए जा रहे हैं कि सामान्य दिनों में तो हवा प्रदूषित न ही हो और सर्दी के मौसम में भी आपातकाल की नौबत न आए। 

वायु प्रदूषण एक ऐसी समस्या है, जिससे भारत ही नहीं, दुनिया के कई महानगर जूझ रहे हैं। पड़ोसी चीन की राजधानी बीजिंग के लिए भी पिछले दिनों प्रदूषण की चेतावनी जारी की गई थी, चीन ने अपने तरीके से प्रदूषण के स्तर को कम किया। हालांकि यह भी कहा गया कि ऐसा अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की बीजिंग यात्रा को देखते हुए किया गया था। सच जो भी हो, इससे यह तो पता चलता ही है कि अगर कोशिश की जाए, तो प्रदूषण को खतरनाक स्तर से नीचे लाया जा सकता है। यही कोशिश हमें भी करनी है और इसके लिए खुद अपने तरीके विकसित करने हैं। अभी स्थिति यह है कि सरकारें आपात स्थिति आने पर हवा का रुख बदलने का इंतजार करती हैं, ताकि कोहरा कम हो जाए व स्मॉग से मुक्ति मिले। हरित अधिकरण ने भी इसी रवैये पर चिंता व्यक्त की है। 

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