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बदहाल रेल व वायु सेवा

सुविधाओं के पैकेज देने की बात करते-करते हमारी उड़ान और रेल सुविधाएं कब अराजकता भरी मुश्किलों के पैकेज में तब्दील हो गईं, पता ही नहीं चला। सच तो यह है कि हमारी हवाई और ट्रेन सेवाएं बीते कुछ वर्षों में...

बदहाल रेल व वायु सेवा
हिंदुस्तानFri, 10 Nov 2017 10:51 PM
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सुविधाओं के पैकेज देने की बात करते-करते हमारी उड़ान और रेल सुविधाएं कब अराजकता भरी मुश्किलों के पैकेज में तब्दील हो गईं, पता ही नहीं चला। सच तो यह है कि हमारी हवाई और ट्रेन सेवाएं बीते कुछ वर्षों में भयावह अराजकता का शिकार हुई हैं। कभी विलंब के कारण, कभी सुविधाओं की अराजकता की वजह से, कभी इनमें होने वाली गुंडागर्दी के कारण, तो कभी मनमाना किराया वसूली, तो कभी अन्य वजहों से। हम हर दिन नई सुविधाओं के पैकेज की बात सुनते हैं, लेकिन सच यह है कि मौजूदा सुविधाएं भी सहेज नहीं पा रहे। स्थिति यहां तक आ पहुंची है कि सफर के नाम से ही अब पसीना छूटने लगता है। रेल और हवाई सेवाओं का ताजा हाल भी ऐसा ही कुछ बयान कर रहा है। सड़क परिवहन का कैसा बुरा हाल है, इसे समझने के लिए पिछले दिनों आगरा एक्सप्रेस-वे का वह हादसा पर्याप्त है, जिसमें एक के बाद एक 40 वाहन टकराते चले गए, लेकिन वहां ऐसा कोई तंत्र नहीं दिखा, जो पीछे से आने वाले वाहनों को रुकने का संकेत दे पाता। यह देश के सबसे महंगे टोल टैक्स वाले हाईवे का हाल है।

हमारी ट्रेनें और हवाई सेवाएं तो पहले ही बदहाल थीं, बीते कई दिनों से दिल्ली और उत्तर भारत के आकाश में छाई धुंध की काली चादर ने इसे पूरी तरह पटरी से ही उतार दिया है। यह तब है, जब सही अर्थों में कोहरे की शुरुआत अभी नहीं हुई है। रेल तंत्र की अराजकता और विमान सेवा प्रदाता कंपनियों के स्टाफ के रवैये ने इस पीड़ा को और बढ़ाया है। चंद रोज पहले इंडिगो की उड़ान के ठीक पहले एक यात्री के साथ ग्राउंड स्टाफ की मारपीट का जैसा वीडियो वायरल हुआ, वह किसी को भी सोचने पर मजबूर कर सकता है, लेकिन हमारी विमानन कंपनियां और उड्डयन मंत्रालय इसे लेकर कितना संजीदा हुए, जानकारी मिलना बाकी है। बीते दिन ही जयपुर हवाई अड्डे से एलाइंस एयर की दिल्ली की उड़ान सिर्फ इसलिए रद्द कर दी गई कि पायलट अपनी ड्यूटी पूरी कर चुका था और नियमत: सुरक्षा मानकों के मद्देनजर उसे उड़ान नहीं भरनी चाहिए थी। निर्धारित अवधि के बाद पायलट का उड़ान भरने से इनकार तो ठीक है, लेकिन क्या यह विमानन कंपनियों के सिस्टम का दिवालियापन नहीं है कि वहां कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं थी और यात्रियों को जैसे-तैसे, किसी को सड़क मार्ग, तो किसी को दूसरे विमान से दिल्ली भेजा गया? कुछ को तो वहीं होटल में रात बितानी पड़ी। तो क्या मान लिया जाए कि हमारी विमानन कंपनियां इतनी भी व्यवस्था रखने की जरूरत नहीं महसूस करतीं कि अचानक किसी पायलट की सेहत खराब हो जाए, तो कोई दूसरा पायलट उड़ान भर सके? ताजा घटना के तो यही संकेत हैं।

हमारी परिवहन सेवाओं को लेकर वादे और घोषणाएं चाहे जैसी भी की जाएं, इनकी गति बढ़ाने से लेकर बुलेट टे्रन चलाने तक के सपने संजो लिए जाएं, लेकिन जमीनी सच यही है कि अपनी मौजूदा व्यवस्था को भी हम जनोन्मुखी और सुखदायी नहीं बना पाए। समय से चलना एक बात है, पर हम न्यूनतम सुविधाओं में भी कटौती करते गए। जो सुविधाएं हैं भी, उनका बुरा हाल है। रेल से लेकर हवाई जहाज तक खान-पान की शिकायतें आम हैं, लेकिन कोई सुनवाई नहीं होती। ट्रेन कब कहां पहुंचेगी, जान पाना दुर्लभ सपना देखने जैसा है। हवाई यात्रा पहले से ही महंगी थी, अब फ्लेक्सी फेयर नाम के नए जुमले के साथ हम ट्रेन यात्रा को भी आम आदमी की पहुंच और जरूरत से दूर करते जा रहे हैं। भविष्य संवारने के लिए आधुनिकता की दौड़ समय की मांग है, लेकिन वर्तमान को संभाले बिना भविष्य के सपने देखने में भी समझदारी नहीं है।
 

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