यह होती है नैतिकता
आज के दौर में, जब जनसेवकों का एक बड़ा वर्ग राजा जैसा व्यवहार करता दिखने लगा है, एपीजे अब्दुल कलाम ने अपनी सादगी, मितव्ययिता व ईमानदारी की कई अनुकरणीय मिसालें छोड़ी हैं। ये प्रेरणा भी हो सकती हैं और...
आज के दौर में, जब जनसेवकों का एक बड़ा वर्ग राजा जैसा व्यवहार करता दिखने लगा है, एपीजे अब्दुल कलाम ने अपनी सादगी, मितव्ययिता व ईमानदारी की कई अनुकरणीय मिसालें छोड़ी हैं। ये प्रेरणा भी हो सकती हैं और आईना भी। एक बार कलाम के कुछ रिश्तेदार उनसे मिलने राष्ट्रपति भवन आए। कुल 50-60 लोग थे। स्टेशन से सबको राष्ट्रपति भवन लाया गया, जहां उनका कुछ दिन ठहरने का कार्यक्रम था। उनके आने-जाने और रहने-खाने का सारा खर्च कलाम ने अपनी जेब से दिया। संबंधित अधिकारियों को साफ निर्देश था कि इन मेहमानों के लिए राष्ट्रपति भवन की कारें इस्तेमाल नहीं की जाएंगी। यह भी कि रिश्तेदारों के राष्ट्रपति भवन में रहने और खाने-पीने के खर्च का ब्योरा अलग से रखा जाएगा और इसका भुगतान राष्ट्रपति के नहीं, बल्कि कलाम के निजी खाते से होगा। एक हफ्ते में इन रिश्तेदारों पर हुए 3,54,924 रुपये का कुल खर्च देश के राष्ट्रपति अब्दुल कलाम ने अपनी जेब से भरा था। अपना कार्यकाल पूरा करके जब वह राष्ट्रपति भवन से जा रहे थे, तो उनसे विदाई संदेश देने को कहा गया। उनका कहना था, ‘विदाई कैसी, मैं अब भी देशवासियों के साथ हूं।’ आज कलाम नहीं हैं। फिर भी वह एक अरब देशवासियों के साथ हैं। उनके किस्से आज भी कइयों को प्रेरणा देने का काम कर रहे हैं।