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अपने हिस्से की भूख

भोजन भी विचित्र है, पृथ्वी पर प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होने के बाद भी एक तिहाई दुनिया इसकी अल्पता से और एक तिहाई अधिकता से बीमार और मृत होती है, न जाने क्यों? अति सर्वदा वर्जित ही है। भोजन के संदर्भ...

अपने हिस्से की भूख
ऐश्वर्य मोहन गहराना,नई दिल्लीेThu, 25 May 2017 11:22 PM
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भोजन भी विचित्र है, पृथ्वी पर प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होने के बाद भी एक तिहाई दुनिया इसकी अल्पता से और एक तिहाई अधिकता से बीमार और मृत होती है, न जाने क्यों? अति सर्वदा वर्जित ही है। भोजन के संदर्भ में किसी प्रकार की अति इसे विष बना देती है। भूख तीन प्रकार की होती है- पहली, पेट द्वारा भोजन ग्रहण करने की भूख। दूसरी, ज्ञानेंद्रियों द्वारा रसास्वादन की भूख, और तीसरी, अहं की भूख।

आखिर पेट ग्रहण कितना करता है? गणना के अनुसार, औसतन 280 ग्राम। ऊर्जाहीन और ओजहीन भोजन में संसाधन की खूब बर्बादी होती है, तो क्यों न जरूरत भर ऊर्जावान-ओजवान भोजन ही किया जाए और बहुमूल्य संसाधन बचाए जाएं? मगर कुछ लोग सात्विक-तामसिक, शाकाहार-मांसाहार और कैलोरी के चक्कर में पड़े रहते हैं। मेरा मानना है कि भोजन हर रस, हर स्वाद से युक्त और ऊर्जावान होना चाहिए; फिर आवश्यकता से अधिक भी नहीं।

हमारे आसपास ऐसे कई लोग हैं, जो पैसा वसूलने के लिए खाते हैं। खाना खाने के बाद उसे पचाने के लिए दवाई लेते हैं। पचाए हुए को जलाने के लिए कसरत-मशक्कत करते हैं। लोग यदि जरूरत भर खाएं, तो खाद्य सामग्रियों के साथ-साथ समय का भी सदुपयोग हो सकेगा। भूख न होने पर बेवजह का खाना अनुचित है। इसे हमें अपने जीवन में उतारना चाहिए।
 

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