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पत्रकारों पर हमले

मैं टुकड़ों में ‘विश्व मीडिया विमर्श’ नामक किताब पढ़ता रहा हूं, जिसमें पूरे विश्व के अलग-अलग देशों के मीडिया पर लिखा गया है। स्कैंडिनेविया के सभी देश वर्षों से ‘प्रेस-फ्रीडम’...

पत्रकारों पर हमले
प्रवीण झा की फेसबुक वॉल सेMon, 11 Sep 2017 11:27 PM
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मैं टुकड़ों में ‘विश्व मीडिया विमर्श’ नामक किताब पढ़ता रहा हूं, जिसमें पूरे विश्व के अलग-अलग देशों के मीडिया पर लिखा गया है। स्कैंडिनेविया के सभी देश वर्षों से ‘प्रेस-फ्रीडम’ में टॉप पांच पर हैं। यहां अब तक कोई पत्रकार कभी मारा-पीटा नहीं गया। कई रिपोर्टों के अनुसार, ईरीट्रिया व चीन में पत्रकारों की हालत खस्ता है। तुर्की व रूस पर भी इल्जाम लगते रहे हैं। लेकिन वे अलोकतांत्रिक देश हैं। एक लोकतंत्र में पत्रकार अमूमन सुरक्षित होता है। पर पिछले साल की कमिटी टु प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट (सीपीजे) की रिपोर्ट पढ़ रहा था, तो उसमें पत्रकारों के लिए दुनिया के दस सबसे खतरनाक देशों में भारत का भी नाम है। यह पढ़कर अजीब लगा। यह अकेला लोकतांत्रिक देश है, जहां पत्रकारों पर हमला हो रहा है, और मृत्यु भी होती है। एक और अजीब बात है कि ये मामले अन्य हत्याओं की अपेक्षा ठंडे बस्ते में चले जाते हैं। छिटपुट मार-पीट के मामले तो दब ही जाते हैं। इनको ‘पार्ट ऑफ जॉब’ मान लिया जाता है। यह कैसा ‘पार्ट ऑफ जॉब’ है? मैं जब-जब इन रिपोर्टों को गलत मानता हूं, किसी ने किसी पत्रकार के साथ हिंसा की खबर आ जाती है। वजह जो भी हो, हिंसा को आप कैसे सही मान सकते हैं? कलम का जवाब कलम से ही दिया जा सकता है। हम रूस या चीन नहीं हैं, और कभी होंगे भी नहीं।

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