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सदियों का जादू

सोने की दीवानगी को भारतीयों से बेहतर कौन समझ सकता है? साल 2012 के धनतेरस और दिवाली में तो देश भर में 6,500 किलो सोना बिका था। अफ्रीका महाद्वीप की बात की जाए, तो तंजानिया वहां का चौथा सबसे बड़ा सोने का...

सदियों का जादू
डायचे वेले में ईशा भाटियाMon, 16 Oct 2017 11:04 PM
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सोने की दीवानगी को भारतीयों से बेहतर कौन समझ सकता है? साल 2012 के धनतेरस और दिवाली में तो देश भर में 6,500 किलो सोना बिका था। अफ्रीका महाद्वीप की बात की जाए, तो तंजानिया वहां का चौथा सबसे बड़ा सोने का उत्पादक है। बीते एक दशक में यहां कई बड़ी खनन कंपनियां आईं, लेकिन कुछ कंपनियों को घुसपैठियों से जूझना पड़ रहा है। ये घुसपैठिए पत्थरों से सोना निकालना जानते हैं। करीब 70 फीसदी स्थानीय निवासी फेंके गए पत्थरों की गैरकानूनी चोरी से फायदा उठाते हैं, लेकिन सोना निकालने के लिए वे जहरीले पारे का इस्तेमाल करते हैं। इसे निकालने वाले आए दिन अपनी और पर्यावरण की सेहत को पारे से नुकसान पहुंचा रहे हैं। हम आपको अब तंजानिया से जॉर्जिया लेकर जा रहे हैं, जहां पुरातत्वविदों को 5,000 साल पुरानी खदान मिली है। इसे देखकर पता चलता है कि हम इंसानों में सोने की दीवानगी कोई नई बात नहीं, यह तो हजारों साल पुरानी है। सिर्फ पत्थर को औजार बनाकर प्राचीन काल में लोगों ने यहां 70 मीटर की सुरंग बना डाली थी। बहुत ही संकरी सुरंगों में पहले बच्चों को भेजा जाता था। मृतकों के अवशेषों की जांच से पता लगाया जा रहा है कि इतना जोखिम क्यों उठाया गया? सुरंग की दीवारों का सुनहरा रंग इसका जवाब हो सकता है। यह सुनहरा रंग दरअसल सोना है।

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