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बनारस में बुआ महादेवी

महादेवी काशी विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह की मुख्य अतिथि बनकर आई थीं और राय कृष्णदास जी के यहां रुकी थीं। हमलोग गए उनसे मिलने। हम उन्हें बुआ बोलते थे, खुलकर बातचीत होती थी। हम चिढ़ाते, तो डांट खा...

बनारस में बुआ महादेवी
चंचल की फेसबुक वॉल सेWed, 13 Sep 2017 10:20 PM
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महादेवी काशी विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह की मुख्य अतिथि बनकर आई थीं और राय कृष्णदास जी के यहां रुकी थीं। हमलोग गए उनसे मिलने। हम उन्हें बुआ बोलते थे, खुलकर बातचीत होती थी। हम चिढ़ाते, तो डांट खा जाते, फिर वह जोर से ठहाका लगाकर हंस देतीं। बातचीत के बीच हमने कहा- बुआ, आपने बनारस को कई बार दिक्कत में डाला है। चौंक पड़ीं- वो कैसे? जरा बता तो सही। हमने याद दिलाया कि ‘हमारे प्रसिद्ध लेखक मुंशी प्रेमचंद जी जब आपसे मिलने इलाहाबाद गए, तो आपने उनको माली के पास बिठा दिया कि पहले इससे बतिया लो।’ महादेवी जी की आंखें गोल हुईं, और उन्होंने जोर का ठहाका लगाया- ‘नहीं रे! हमें नहीं मालूम रहा कि आज हमारा भाई आएगा, रोज की तरह दोपहर में आराम करने चली गई। जब भैया आए, माली ने बताया कि अब तीन बजे सोकर उठेंगी, तब बात हो पाएगी। भैया की सादगी देखो, माली के मड़हे में बैठे उससे बतियाते रहे। उसने भैया को गुड़ दिया, पानी दिया। दोपहर बाद हम मिले।’ कहते-कहते उनकी आंखें भर आईं। महादेवी वर्मा आजीवन अध्यापक रहीं। करुणा की खान थीं। 74 के छात्र आंदोलन का विशाल सम्मेलन, जिसका नेतृत्व जेपी कर रहे थे, महादेवीजी के शिक्षण संस्थान में ही संपन्न हुआ था।

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