अलविदा देवताले
इंदौर छूटा, तो उनसे मिलना भी छूट गया। लेकिन वह सचमुच ऐसे थे कि मिल जाएं, तो आप उन्हें गले लगा लें। उनकी एक कविता है कि बड़े शहर में आकर उन्हें ऐसा अदद पड़ोसी न मिल रहा कि जिसका दरवाजा खटखटाकर एक नींबू...
इंदौर छूटा, तो उनसे मिलना भी छूट गया। लेकिन वह सचमुच ऐसे थे कि मिल जाएं, तो आप उन्हें गले लगा लें। उनकी एक कविता है कि बड़े शहर में आकर उन्हें ऐसा अदद पड़ोसी न मिल रहा कि जिसका दरवाजा खटखटाकर एक नींबू उधार मांग लें। एक बार हम उनके घर से बाहर निकले, तो उनके एक पड़ोसी ने आवाज लगाई, ‘नींबू रखे हैं। ले जाओ।’ और कौन ऐसा कवि होगा, जिसकी कविताएं उनके पड़ोसी ने भी पढ़ी हों।एक बार हम बाहर खाना खाने गए, तो वहां से उठते हुए उन्होंने चार बार चेक किया कि कुछ सामान भूल तो नहीं गए। ऑटो से उतरते हुए भी। फिर हंसकर बोले, ‘मेरी भूलने की बड़ी आदत थी। इसकी वजह से तुम्हारी आंटी से बड़ी डांट खाई है।’
मैंने पूछा, ‘और अब? अब नहीं भूलते?’ ‘बिल्कुल नहीं। अब तो मैं कई बार वह सामान भी घर ले आता हूं, जो घर से लेकर चला भी न था।’ और फिर जोर का ठहाका। वह ऐसे ही थे। हंसोड़, यारबाश। मेरे जेंडर वाले लिटमस पेपर टेस्ट में हमेशा अव्वल। कहते, ‘मेरी बेटियां भी तुम्हारी तरह ही हैं। स्त्रियों ने मुझे मनुष्य बना दिया, वरना मैं बड़ा नामुराद इंसान था।’ अलविदा देवताले जी। बेहतरीन कवि तो आप थे ही, उन बेहतरीन मनुष्यों में भी थे, जिन्हें मैं हमेशा इज्जत और मुहब्बत से याद करूंगी।