यह एक नए दौर की शुरुआत है
बाहुबली ने वे सारे पैमाने तोड़ दिए हैं, जिनसे किसी फिल्म की कामयाबी को मापा जाता था। उसने फिल्म बाजार को सफलता का एक नया गणित दिया है। किसने सोचा था कि कोई भारतीय फिल्म कभी दो हजार करोड़ रुपये की...
बाहुबली ने वे सारे पैमाने तोड़ दिए हैं, जिनसे किसी फिल्म की कामयाबी को मापा जाता था। उसने फिल्म बाजार को सफलता का एक नया गणित दिया है।
किसने सोचा था कि कोई भारतीय फिल्म कभी दो हजार करोड़ रुपये की कमाई का आंकड़ा पार कर जाएगी? दिलचस्प बात है कि इस फिल्म में बॉक्स ऑफिस के चहेते न कोई खान हैं, न रजनीकांत। तय है कि आने वाले समय में किसी फिल्म की सफलता बाहुबली से मापी जाएगी। यह भी तय है कि अब बाहुबली की नकल का दौर चलेगा। नकल से बनी ये फिल्में जब पिटने लगेंगी, तो इस ऊंचाई तक पहुंचना और मुश्किल होता जाएगा।
पिछले महीने की 27 तारीख को दो साल से बहुप्रतीक्षित फिल्म बाहुबली-2: द कन्क्लूजन दुनिया भर में नौ हजार से अधिक सिनेमाघरों में तेलुगू, तमिल, हिंदी, मलयालम, फ्रेंच और जर्मन भाषाओं में रिलीज हुई। पहले ही दिन इसने रिकॉर्डतोड़ लगभग सवा सौ करोड़ की कमाई कर ली। यह तो बस शुरुआत थी... आज की तारीख में इसकी कमाई घरेलू बाजार में डेढ़ हजार करोड़ रुपये से अधिक और बाहर के देशों को मिलाकर 2,200 करोड़ रुपये से अधिक है। बाहुबली-2 ने भारतीय फिल्म इंडस्ट्री की चाल, अंदाज और सोच बदल दी है। पिछले कुछ साल से फिल्म इंडस्ट्री बेहद धीमी गति से आगे बढ़ रही थी। 2016 में फिल्मों के घरेलू बाजार में 1.6 प्रतिशत की गिरावट देखी गई और ओवरसीज मार्केट में भी मामूली तीन प्रतिशत की बढ़त रही। बाहुबली-2 की वजह से इस साल घरेलू बाजार में रिकॉर्ड सात प्रतिशत बढ़त की उम्मीद की जा रही है।
अगर हम थियेटर और दर्शकों के अनुपात को देखें, तो हमारे यहां जहां दस लाख दर्शकों के लिए मात्र छह सिनेमा थियेटर हैं, वहीं चीन में 23 और अमेरिका में 126 हैं। बड़े शहरों और मेट्रो में सिंगल स्क्रीन समाप्तप्राय: हैं। मल्टीप्लेक्स में टिकट की कीमत चार गुना अधिक होती है। इन सीमाओं के बावजूद बाहुबली ने सिंगल और मल्टीप्लेक्स, दोनों में हाउसफुल बिजनेस किया। एक फिल्म जब आशा से अधिक कमाती है, तो इसका फायदा पूरी इंडस्ट्री को होता है। पैसा वापस इंडस्ट्री में ही लगता है। फिल्मों में काम कर रहे निचले स्तर के कामगारों की स्थिति सुधरती है। काम के नए अवसर बनने लगते हैं।
बाहुबली एक फंतासी सीरीज है। पहली बार किसी भारतीय फिल्म में उच्च स्तर का एनिमेशन और वीएफएक्स का प्रयोग हुआ है। बाहुबली की कहानी फंतासी होते हुए भी उसमें दर्शकों को भावविभोर करने और जोड़ने वाले कई पक्ष हैं। शाही गुलाम कटप्पा की वफादारी, रानी शिवगामी का पुत्र प्रेम, राजकुमार अमरेंद्र से अनबन के बाद उसकी हत्या के लिए कटप्पा को भेजना और अंत में अपनी गलती का एहसास होने पर अपनी जान पर खेल कर अमरेंद्र के पुत्र महेंद्र को बचाना। वीर, रौद्र, हास्य, प्रेम, करुणा- ये सारे रस बाहुबली के दोनों भागों को रसविभोर करते हैं।
बाहुबली जैसी भव्य फिल्म बनाने की सोच को विकसित करने में निर्देशक एसएस राजमौलि को लगभग दस साल लग गए। 2001 से तेलुगू फिल्मों की दुनिया में सक्रिय राजमौलि ने अपनी पहली ही फिल्म स्टूडेंट नंबर वन से सफल फिल्में बनाने का फॉर्मूला ईजाद कर लिया था। दक्षिण भारत में उनका नाम था, नामचीन सितारे उनके साथ काम करने को आतुर रहते थे। अपनी हर फिल्म में वह कुछ नया प्रयोग करते। मगधीरा उनकी एक महत्वाकांक्षी फिल्म थी। नए-पुराने जन्मों की कहानी में वीएफएक्स और एनिमेशन का जबर्दस्त इस्तेमाल किया गया था। पौराणिक कहानियों में उनकी खास दिलचस्पी रही है। बरसों पहले एनटी रामाराव की तेलुगू फिल्म मायाबाजार देखने के बाद उन्होंने तय कर लिया था कि एक दिन वह भी ऐसी ही भव्य फिल्म बनाएंगे। बाद के दिनों में हॉलीवुड की लार्ड ऑफ र्द रिंग्स सीरीज से भी वह खूब प्रभावित हुए।
उनकी कई तेलुगू फिल्में हिंदी में बनीं और सफल भी हुईं, जैसे राऊडी राठौड़, सन ऑफ सरदार। हिंदी में मक्खी बनाते समय उन्हें यह एहसास होने लगा कि उनकी फिल्मों का मंच बड़ा और बोल्ड होना चाहिए। मक्खी को उन्होंने हिंदी में डब करके रिलीज किया, पर हिंदी में यह खास चल नहीं पाई। हिंदी भाषी क्षेत्रों में अपने कदम फैलाने के लिए उन्हें मुंबई फिल्म इंडस्ट्री से ऐसा नाम चाहिए था, जो फिल्मों को लेकर उनकी तरह जज्बाती हो। जब उनके एक परिचित ने करण जौहर का नाम सुझाया, तो राजमौलि शंकित से लगे। मगर उनके निमंत्रण पर करण उनसे मिलने को तैयार हो गए। उस समय बाहुबली-द बिगिनिंग लगभग बन चुकी थी। बाहुबली के ‘रशेज’ देखने के बाद करण फौरन इसे हिंदी में रिलीज करने को तैयार हो गए।
करण के साथ ही इस फिल्म के साथ मार्केटिंग और प्रमोशन का पूरा तंत्र भी जुड़ गया। 2015 में आई बाहुबली-द बिगिनिंग तेलुगू, तमिल के अलावा हिंदी में भी खूब चली। राजमौलि का इरादा था कि छह महीने बाद ही वह दूसरी किस्त रिलीज कर दें। वह मानते थे कि लंबा अंतर आएगा, तो दर्शक पहली फिल्म भूल जाएंगे और उन्हें पहली फिल्म की सफलता का कोई लाभ नहीं मिल पाएगा। लेकिन पहले भाग की अभूतपूर्व सफलता के बाद दूसरी फिल्म का बजट और अपेक्षाएं अपने आप बढ़ गईं। पूरे देश को बाहुबली की लहर ने जैसे अपनी चपेट में ले लिया था- कटप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा, यह सवाल बाहुबली के कद से भी बड़ा हो गया।
दो साल तक बाहुबली को दर्शकों के दिलो दिमाग में तरोताजा रखना और पहली किस्त से एक कदम आगे जाना आसान काम नहीं था। बाहुबली कॉमिक, पुस्तक और ऑनलाइन गेम्स ने इस ब्रांड को आगे बढ़ाने का जिम्मा लिया। राजमौलि ही नहीं, उनकी पूरी टीम के लिए यह समय चुनौती भरा था। फिल्म के नायक प्रभास ने बाहुबली सीरीज को लगभग चार साल दिए, इस बीच उन्होंने दूसरी कोई फिल्म नहीं की। राजमौलि की यह बड़ी सफलता थी कि बाहुबली के दोनों भागों में उनके साथ ऐसे कलाकार और टैक्नीशियन जुड़े थे, जो उन पर पूरी तरह यकीन करते थे। निर्माता ने जुरासिक वल्र्ड जैसी फिल्म की वीएफएक्स टीम को बाहुबली के लिए अनुबंधित कर लिया। राजमौलि बाहुबली-2 के क्लाइमैक्स को बहुत भव्यता से फिल्माना चाहते थे। 250 करोड़ में बनी इस फिल्म के क्लाइमैक्स को फिल्माने में तीस करोड़ से अधिक का खर्च बैठ गया। फिल्म बनाने के दौरान राजमौलि ने कभी इस बात का जवाब नहीं दिया कि इस फिल्म से उन्हें क्या उम्मीदें हैं? राजमौलि ने अपने एक साक्षात्कार में कहा था, ‘मैं इस बात से बहुत मुतमइन हूं कि मैंने जैसा चाहा, जैसी कल्पना की, वैसी फिल्म बना पाया। मुझे खुद भी अब बाहुबली से आगे सोचना होगा।’
बाहुबली-2 सिर्फ एक कामयाब या रिकॉर्ड कमाई करने वाली फिल्म नहीं है, यह एक लकीर है, एक दस्तावेज है कि भारतीय फिल्में किस स्तर की बन सकती हैं और कहां तक पहुंच सकती हैं। निश्चित यह हिन्दुस्तानी फिल्मों की दुनिया में एक नए दौर की शुरुआत भी है।