फोटो गैलरी

Hindi News ओपिनियन मेल बॉक्सदलितों का उत्थान

दलितों का उत्थान

हमारे देश में दलितों की संख्या कम नहीं है। यह संख्या देश के आजाद होने के समय भी कम नहीं थी और न आज नी। बाबा साहब अंबेडकर और दूसरे महापुरुषों ने दलितों (शोषित, दबे-कुचले, पीड़ित आदि) को फलित...

दलितों का उत्थान
हिन्दुस्तानTue, 27 Jun 2017 12:01 AM
ऐप पर पढ़ें

हमारे देश में दलितों की संख्या कम नहीं है। यह संख्या देश के आजाद होने के समय भी कम नहीं थी और न आज नी। बाबा साहब अंबेडकर और दूसरे महापुरुषों ने दलितों (शोषित, दबे-कुचले, पीड़ित आदि) को फलित (पीड़ामुक्त, उच्च, खुशहाल, प्रसन्न, समान आदि) बनाने के लिए अच्छे प्रयास किए थे। मगर राजनीतिक हस्तक्षेप के चलते आज भी दलित पिछडे़ ही हुए हैं। उन्हेें मुख्यधारा में लाने के कई प्रयास राष्ट्रीय स्तर पर हो रहे हैं, अनेक योजनाएं जारी हैं, मगर परिणाम शून्य ही कहा जाएगा। आज राष्ट्रपति चुनाव के बहाने दलित राजनीति फिर से गरम हो गई है। अब क्या यह आशा की जाए कि इस बार जो दलित राष्ट्रपति बनेेंगे या बनेंगी, वह दलितों को लाभ पहुंचाकर अभूतपूर्व काम करेंगे या करेंगी? अगर ऐसा हो सका, तो निश्चय ही आगामी राष्ट्रपति गौरव गाथा रचने के लिए जाने जाएंगे।
अनिल कुमार मिश्र, मयूर विहार फेस-3, दिल्ली

वीआईपी कल्चर 
जिस तरह से उत्तर प्रदेश समेत कई दूसरे राज्यों ने गाड़ियों पर लगने वाली लाल-नीली बत्ती के युग को खत्म किया, ठीक वैसे ही गाड़ियों पर पद का नाम लिखने की संस्कृति का भी अंत होना चाहिए। इसके सहारे बहुत लोग बेजा लाभ उठाते हैं। स्थिति यह है कि पुलिस चेकिंग आदि से बचने के लिए अपने रिश्तेदारों का पद भी गाड़ी पर लिख डालते हैं। इससे काफी नुकसान हो रहा है। सरकार जल्द इस विषय पर काम करके देशहित में कदम बढ़ाए।
आकाश कुमार, मेरठ

स्मार्ट प्रशासन 
भारत जैसे विशाल आबादी वाले देश में करीब 70 प्रतिशत जनसंख्या गांवों में रहती है। कृषि में घाटा होने से और गांवों में कुटीर उद्योगों के अभाव में लोग पलायन करके शहरों में बस रहे हैं। ऐसे में, प्रधानमंत्री की 100 शहरों को स्मार्ट सिटी बनाने की बात उचित नहीं है। 100 करोड़ रुपये प्रतिवर्ष इन शहरों पर खर्च करके हम आधुनिक भारत की केवल कल्पना कर सकते हैं। अभी स्थिति यह है कि चौतरफा फैले भ्रष्टाचार को रोकने के लिए हमारे पास एक प्रभावी तंत्र तक नहीं है, इसलिए प्रधानमंत्री पहले प्रशासन को चुस्त-दुरुस्त करने की बात करें। आज प्रशासनिक अधिकारियों की निष्क्रियता के कारण धरने-प्रदर्शन और अनशन के मामले में हम दुनिया में सबसे आगे हैं। स्मार्ट सिटी के नाम पर मुट्ठी भर लोगों के लिए सभी सुविधाएं जुटाना देश के अधिसंख्य लोगों के साथ धोखा होगा। 
कुलदीप मोहन त्रिवेदी, उन्नाव, उत्तर प्रदेश

कैसा धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र
अपने देश में अब जिस तरह की घटनाएं घटित हो रही हैं, उनसे लगता है कि धर्मनिरपेक्षता की बातें सिर्फ किताबों तक सिमट गई है। आज कभी पहनावे को लेकर, कभी खान-पान को लेकर, तो कभी किसी और बहाने से कमजोरों व अल्पसंख्यक वर्गों को निशाना बनाया जा रहा है। मुजफ्फरनगर दंगे को छोड़िए गोरक्षा के नाम पर ही मार-पीट की जा रही है। आखिर किस तरह की गुंडागर्दी भारत में पनप रही है? क्या सच में हमारा भारत अब एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है?
रंजन कुमार, हरियाणा, केंद्रीय विश्वविद्यालय

बंद हो यह राजनीति 
दलित पहले भी वोट बैंक थे और आज भी हैं। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है आगामी राष्ट्रपति चुनाव। राष्ट्रपति पद के लिए जहां भाजपा ने रामनाथ कोविंद का दांव खेला है, वही विपक्ष ने मीरा कुमार का। सत्ता पक्ष और विपक्ष, दोनों दलितों का रिझाने का प्रयास कर रहा है। मगर इससे दलितों की स्थिति नहीं सुधरने वाली। उनकी स्थिति पहले भी दयनीय थी और आज भी वही है। हालांकि उम्मीदवारों की योग्यता की बजाय उनकी जाति पर राष्ट्रपति चुनाव का केंद्रित हो जाना भी इस देश के लिए शुभ संकेत नहीं है। आज से पहले तो जाति के आधार पर कभी राष्ट्रपति चुनाव नहीं हुआ, तो फिर अब क्यों ऐसा हो रहा है? 
रोहित पाठक, चोरौत, बिहार

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें
अगला लेख पढ़ें