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तीन साल, बेमिसाल

तीन साल, बेमिसाल भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार इन दिनों अपने तीन साल का लेखा-जोखा प्रचारित करने में जोर-शोर से लगी हुई है। हर तरफ ‘साथ है, विश्वास है, हो रहा विकास है’...

तीन साल, बेमिसाल
हिन्दुस्तान Thu, 08 Jun 2017 11:28 PM
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तीन साल, बेमिसाल
भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार इन दिनों अपने तीन साल का लेखा-जोखा प्रचारित करने में जोर-शोर से लगी हुई है। हर तरफ ‘साथ है, विश्वास है, हो रहा विकास है’ का नारा लगाया जा रहा है। साथ और विश्वास तो जनता ने दिखा दिया, लेकिन अब सरकार की जिम्मेदारी विकास को धरातल पर दिखाने की है। विदेश में ख्याति और राजनेताओं की बयानबाजी देखने और सुनने में ही अच्छी लगती है, आम आदमी को कुछ भी हासिल नहीं हो पा रहा है, जो निश्चय ही आगामी चुनाव को प्रभावित कर सकता है। भारतीय जनता पार्टी को इससे सावधान रहने की जरूरत है। बैंकों का एनपीए बढ़ना, कर्ज माफी, अनावश्यक सब्सिडी का बोझ, कारोबार पर खास ध्यान, जनता के टैक्स रूपी धन का दुरुपयोग है। पहले की सरकारें गरीबों के नाम पर अपने सगे-संबंधियों और खास नेताओं की जेबें भरती रहीं, मगर यह सरकार गरीबों के हित में काम गरीबों के पैसे से ही करना चाहती है। इस कशमकश में आम नागरिक पिस रहा है। केंद्र सरकार को इन तमाम पहलुओं पर गंभीरता से सोचना चाहिए। 
ओम प्रकाश केडिया

किसानों का जुर्म
जब तमिलनाडु से दिल्ली आकर किसान जंतर-मंतर पर प्रदर्शन कर रहे थे, तो कुछ लोग उनका उपहास उड़ा रहे थे और तमिलनाडु सरकार की आलोचना कर रहे थे। अब मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में किसान प्रदर्शन कर रहे हैं, तो इसके लिए किसे जिम्मेदार ठहराएं? पिछली मनमोहन सिंह सरकार और वर्तमान सरकार की नीतियों में भला कहां फर्क है? मौजूदा सत्तारूढ़ पार्टी कांग्रेस की सरकार में किसानों की दुर्दशा पर आंसू बहाया करती थी, पर आज उसे किसानों पर गोली चलाने से भी ऐतराज नहीं! जहां इस देश के पूंजीपतियों के लाखों-करोड़ के कर्जे को सरकार प्रोत्साहन के नाम पर माफ कर देती है, तो वहीं किसानों की कर्ज-माफी पर अर्थव्यवस्था के कमजोर होने का रोना रोया जाता है। कितनी दुखद स्थिति है कि अब तक कर्ज न चुका पाने की स्थिति में लाखों किसान खुदकुशी कर चुके हैं।
निर्मल कुमार शर्मा, गाजियाबाद

मिलावट का जहर 
देश में खाद्य पदाथार्ें में मिलावट से अनेक बीमारियां पैर पसार रही हैं। खाद्य पदार्थ में मिलावट आम बात सी हो गई है। अब तो प्लास्टिक के चावल, चीनी, अंडों और सब्जियों का शोर मचने लगा है। इनको खाने से कैंसर जैसी गंभीर बीमारियां होने की बात कही जा रही है। जब खतरा इतना बड़ा है, तो इन खाद्य पदार्थों को आयात ही क्यों किया जा रहा है? हमारी पैदावार इतनी है कि  तमाम भारतीयों के पेट भरे जा सकते हैं, तो फिर सरकार खाद्यान्न का बेहतर वितरण क्यों नहीं सुनिश्चित करती? यदि यह मिलावट सरकार की जानकारी के बिना हो रही है, तो फिर इसका जिम्मेदार कौन है? मुश्किल यह है कि पकडे़ जाने पर भी मिलावटखोरों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई नहीं होती। इसलिए ऐसे तत्वों का हौसला बढ़ गया है। अगर सरकार मिलावटखोरों के खिलाफ सख्त कार्रवाई शुरू कर दे, तो बाजार से सभी नकली सामान गायब हो जाएंगे। 
राकेश कौशिक, नानौता, सहारनपुर

पर्यावरण को बचाओ
पांच जून को विश्व भर में पर्यावरण सुरक्षा और संरक्षण के लिए विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया। लेकिन पर्यावरण के लिए केवल एक दिन सीमित न करके हर किसी व हर क्षण इसके लिए प्रयत्न करना चाहिए, तभी हमारी पृथ्वी बचेगी। अभी आलम यह है कि हमारी पृथ्वी अपना अस्तित्व खोने के कगार पर पहुंच गई है। तापमान में असामान्य वृद्धि, समुद्र का जल स्तर बढ़ना, ऊंचा होता प्रदूषण का स्तर- ये सभी बातें यही इशारा कर रही हैं कि पृथ्वी और पर्यावरण, दोनोें खतरे में हैं। इसे बचाने के लिए सभी को एकजुट होना ही होगा। अपने-अपने स्तर पर प्रयास करके हम पर्यावरण को सुरक्षित बना सकते हैं। 
शालिनी नेगी, जैतपुर, नई दिल्ली

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