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भीम आर्मी का उद्देश्य

जब से सहारनपुर में जातीय संघर्ष हुआ है, तब से भीम आर्मी का नाम बहुत चर्चित हो गया है। चर्चित भी क्यों न हो, उसने काम ही ऐसा किया है। डॉक्टर अंबेडकर के नाम का दुरुपयोग करने वाली भीम आर्मी ने सहारनपुर...

भीम आर्मी का उद्देश्य
हिन्दुस्तानMon, 15 May 2017 11:58 PM
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जब से सहारनपुर में जातीय संघर्ष हुआ है, तब से भीम आर्मी का नाम बहुत चर्चित हो गया है। चर्चित भी क्यों न हो, उसने काम ही ऐसा किया है। डॉक्टर अंबेडकर के नाम का दुरुपयोग करने वाली भीम आर्मी ने सहारनपुर में जो उत्पात मचाया है, वह बहुत चिंताजनक है। उत्पात मचाते वक्त यह आर्मी भूल गई कि जिस महापुरुष के नाम पर उसने अपना नाम रखा है, उसने ताउम्र पीड़ा झेलने के बाद भी हिंसक मार्ग नहीं अपनाया और न ही अपने समाज को अपनाने दिया। अब तो इस भीम आर्मी के संबंध नक्सलवादियों से जुड़े होने के संकेत भी आ रहे हैं। अगर यह आर्मी वास्तव में भीमराव के सम्मान के लिए बनी होती, तो यह दलितों के हित में काम कर रही होती। मगर इसकी गतिविधियां यही बता रही हैं कि इसका उद्देश्य कुछ और है।
ललित शंकर, मेरठ

आरोपों की हो जांच
आखिर पार्टी से निकाले जाने के बाद ही नेतागण अपनी पार्टी और उसके वरिष्ठ नेताओं पर आरोप क्यों लगाते हैं? जब तक वे पार्टी का हिस्सा होते हैं, उन्हें भ्रष्टाचार नहीं दिखता, मगर उससे अलग होते ही वे आरोपों के तीर चलाने लगते हैं। कपिल मिश्रा या नसीमुद्दीन सिद्दीकी, दोनों अपनी पार्टी में पदमुक्त किए जाने के बाद ही मुखर हुए। क्या इनके द्वारा लगाए जा रहे आरोपों को जनता गंभीरता से लेगी? इसका जवाब तो भविष्य में पता चलेगा, मगर यह भी सच है कि ऐसे आरोप निराधार ही माने जाते हैं। आम जनता इन्हें गंभीरता से नहीं लेती। मगर यह जरूरी है और जनता के हित में भी है कि कानूनी चश्मे से ऐसे आरोपों की जांच हो और दूध व पानी का अंतर सामने आए।
रंजीत सिंह, आर्यनगर, मेरठ

यह कैसी पुनर्वास नीति
एक और दुर्दांत नक्सली के आत्म-समर्पण का समाचार पढ़ने को मिला। शासन की पुनर्वास नीति के तहत उक्त नक्सली को वित्तीय सहायता के रूप में तुरंत 15 लाख रुपये का चेक सौंपा गया। उल्लेखनीय है कि उस नक्सली पर कई लोगों की जघन्य हत्या और शासकीय संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के आरोप रहे हैं। ऐसे व्यक्ति को सार्वजनिक मंच पर सम्मानित करना उचित नहीं। सरकार की यह नीति दोधारी तलवार साबित हो सकती है। कुछ पुराने नक्सली आर्थिक तंगी, हथियारों की कमी, स्वास्थ्यगत समस्या आदि से मजबूर होकर आत्म-समर्पण कर सकते हैं या कर रहे हैं, और इस नीति का बेजा लाभ उठा रहे हैं। परंतु इससे बेरोजगारों, शोषित-वंचित युवाओं में एक गलत संदेश भी जा सकता है। वे सोच सकते हैं कि मानवता को शर्मसार करने वाले अपराध को अंजाम देने के बाद भी इस तरह की आर्थिक सहायता व सम्मान मिल सकते हैं। इसी तरह, व्यक्ति विशेष को इस तरह की छूट देना हमारी न्याय प्रणाली में भी लोगों का विश्वास कम कर सकता है। इसलिए हमें वर्तमान पुनर्वास नीति पर फिर से विचार करना चाहिए। नई पुनर्वास नीति बनाते समय हमें उन शहीदों के परिजनों की भावनाओं का भी खास ध्यान रखना चाहिए, जो देश की सेवा करते समय ऐसे समाज-विरोधी तत्वों के हाथों  मारे गए हैं।
ऋषभ देव पाण्डेय, कोरबा, छत्तीसगढ़

आत्म-समर्पण किसका
इतने बर्बर हत्यारे को आत्म-समर्पण नीति के तहत मोटी राशि देना क्या कहीं से तार्किक है? आत्म-समर्पण वास्तव में किसका माना जाए- नक्सली का या सरकार का? क्या 15 लाख रुपये की राशि कथित समर्पण के दौरान मिलने वाला मान-सम्मान और ख्याति हमारे बेरोजगार व गरीब युवाओं को अपराध की दुनिया में करियर बनाने के लिए प्रेरित नहीं करेगी? इस समय ऐसे ही सवाल उठ रहे हैं मन में। इसलिए हमें अपराधियों के आत्म-समर्पण और पुनर्वास नीति के संदर्भ में एक बार फिर गंभीरता से विचार करना चाहिए। हमारे नीति-नियंताओं को इन सवालों के जवाब ढूंढ़ने ही चाहिए। 
सुरजीत झा, गोड्डा

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