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Hindi News ओपिनियन मेल बॉक्सभेदभाव मिटाना जरूरी, राजनीति में आचार-संहिता, असली आजादी, खौफ से भरी यात्रा, मेल बॉक्स

भेदभाव मिटाना जरूरी, राजनीति में आचार-संहिता, असली आजादी, खौफ से भरी यात्रा, मेल बॉक्स

भेदभाव मिटाना जरूरी सुप्रीम कोर्ट द्वारा एक साथ तीन तलाक पर आया निर्णय स्वागतयोग्य है। मगर एक धर्म विशेष द्वारा दूसरे धर्म पर टिप्पणियां अवांछनीय और अनुचित हैं। किन परिस्थितियों और परिवेश में किसी...

भेदभाव मिटाना जरूरी, राजनीति में आचार-संहिता, असली आजादी, खौफ से भरी यात्रा, मेल बॉक्स
हिन्दुस्तानWed, 23 Aug 2017 10:54 PM
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भेदभाव मिटाना जरूरी
सुप्रीम कोर्ट द्वारा एक साथ तीन तलाक पर आया निर्णय स्वागतयोग्य है। मगर एक धर्म विशेष द्वारा दूसरे धर्म पर टिप्पणियां अवांछनीय और अनुचित हैं। किन परिस्थितियों और परिवेश में किसी समाज द्वारा किन्हीं नियमों को बनाया गया है, यह बात जाने बिना अपना मंतव्य दे देना सभ्य व्यक्ति की निशानी नहीं है। सच्चाई तो यह है कि लैंगिक भेदभाव पूरे संसार की समस्या रही है। यह कहीं कम, तो कहीं ज्यादा विद्यमान है। जैसे, भारत में पिता की संपत्ति में हिंदू लड़कियों का हिस्सा कानून द्वारा सुनिश्चित होने के बाद भी बहुत कम परिवारों द्वारा लड़कियों को यह अधिकार दिया जाता है। अत: कानून बनने के साथ-साथ जरूरत चिंतन और मान्यता परिवर्तन की भी है। और यह काम न्यायालय का न होकर, हम सबका है। 
    संयम अग्रवाल, अमरोहा

राजनीति में आचार-संहिता
राजनीति सत्ता में बने रहने का खेल बनकर रह गई है। राजनीतिक दल व राजनेता साम-दाम-दंड-भेद से सत्ता पर काबिज रहना चाहते हैं। गुजरात का राज्यसभा चुनाव इसका हालिया उदाहरण है। यहां विधायकों को बंधक बनाना और प्रलोभन देने के आरोप यही बताते हैं कि राजनीति में नैतिकता अब कमोबेश खत्म हो गई है। सिद्धांत व मर्यादाएं हवा होकर रह गई हैं। तभी तो नीतीश कुमार जैसे राजनेता रातोंरात पाला बदलकर कुरसी बचाने में कामयाब हो जाते हैं। ऐसे में, क्या राजनेताओं के लिए कोई आचार-संहिता नहीं बननी चाहिए?
    युधिष्ठिर लाल कक्कड़
    गुरुग्राम, हरियाणा

असली आजादी
तीन तलाक पर सुपीम कोर्ट का अहम और ऐतिहासिक फैसला आया है और इस फैसले ने मुस्लिम महिलाओं को वर्षों पुरानी उन बेड़ियों से आजाद कर दिया, जिसने उनकी गरिमा, उनके सम्मान और उनकी आजादी को जकड़कर रखा था। यह मुस्लिम महिलाओं की असली आजादी है,  जो उन्हें इस पुरुष-प्रधान समाज में बराबर होने का एहसास कराएगी और उन्हें सम्मान से जीने का अवसर प्रदान करेगी। यह फैसला और इससे बनने वाले कानून उन्हें कानूनी और सांविधानिक तौर पर बराबरी का हक दिलाएगा। इस फैसले ने संविधान में वर्णित समानता और न्याय के सिद्धांत को और मजबूत किया है। केवल मुस्लिम महिलाएं ही नहीं, बल्कि पूरा महिला समाज इस फैसले का जश्न मना रहा है। अब वक्त आ गया है कि हम अपनी संकीर्ण मानसिकता से बाहर निकलें और तंग विचारों को त्यागकर इस फैसले का स्वागत करें। वक्त यह समझने का भी है कि बदलाव के इस दौर में महिलाओं को कैद करके नहीं रखा जा सकता है। उन्हें पूरी आजादी से उड़ने और अपने सपनों को सच करने का अवसर प्रदान करें।
    राजेश कुमार, रांची

खौफ से भरी यात्रा
अभी पिछले शनिवार को ही उत्तर प्रदेश में उत्कल एक्सप्रेस के कई डिब्बे पटरी से उतर गए थे, जिसमें दो दर्जन से ज्यादा यात्रियों ने अपनी जान गंवाई। और अब एक बार फिर उत्तर प्रदेश में रेल हादसा हुआ है, जिसमें जख्मी लोगों की संख्या 70 पार कर गई है। रेल से यात्रा आखिर क्यों अब सुविधाजनक और सुरक्षित न होकर खौफजदा करने लगी है? एक वक्त में, जब भारतीय रेल का विस्तार दुनिया में अपनी पहचान बना चुका हो, तब यदि उसी रेल से की जाने वाली यात्रा से डर हो, तो यह कतई उचित नहीं। यह देश की छवि पर भी धक्का है। हो सकता है कि इस नए हादसे पर भी जांच बिठाई जाए, दोषियों की पहचान की कोशिश की जाए, पर इससे जो रेलयात्री अपनी जान गंवा चुके हैं, वे लौटकर नहीं आने वाले। सरकार को सोचना चाहिए कि जीवन का कोई मूल्य या मुआवजा नहीं होता। जरूरत रेल सेवा में सुरक्षा मानकों के इस्तेमाल का है। रेल मंत्रालय व केंद्र सरकार को इस दिशा में उचित कदम उठाने ही होंगे, ताकि भविष्य में ऐसे हादसे न हों   और रेलयात्रियों को अपना अमूल्य जीवन न खोना पड़े। 
मनीष पाण्डेय, दिलशाद गार्डन, दिल्ली

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