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समस्या बनता कचरा

समस्या बनता कचरा सुनीता नारायण का लेख पढ़ा, बढ़िया लगा। यदि हर कोई यह बात समझ ले कि मेरा कचरा मेरी जिम्मेदारी है, तो आधी समस्या स्वत: सुलझ जाएगी। आज जब बढ़ता कचरा परेशानी खड़ी कर रहा है, तो हमें अपने...

समस्या बनता कचरा
हिंदुस्तानThu, 07 Sep 2017 10:36 PM
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समस्या बनता कचरा
सुनीता नारायण का लेख पढ़ा, बढ़िया लगा। यदि हर कोई यह बात समझ ले कि मेरा कचरा मेरी जिम्मेदारी है, तो आधी समस्या स्वत: सुलझ जाएगी। आज जब बढ़ता कचरा परेशानी खड़ी कर रहा है, तो हमें अपने स्तर पर इससे निपटने के लिए कदम उठाने ही चाहिए। अपने घर और संस्थान का कचरा कुछ इस तरह निस्तारित करना चाहिए कि कचरे का पहाड़ न बने। सामान जरूरत से ज्यादा नहीं खरीदें और जैविक कूड़ा अलग रखें। इसका दूसरा इस्तेमाल हो सके, तो जरूर करना चाहिए। उसका खाद बनाना चाहिए। यदि हम कुछ बातों का  ख्याल रखें, तो फिर गाजीपुर जैसे हादसे नहीं होंगे। हमें केरल, गोवा से सीख लेनी चाहिए कि कैसे वहां सम्मिलित प्रयासों से राज्य की तस्वीर बदल दी गई।
भारती शर्मा

सत्य की हत्या 
यह सही है कि देश का लोकतंत्र काफी समृद्ध है, पर क्या हम उसे जीवंत कह सकते हैं? शायद नहीं, क्योंकि अगर वाकई लोकतंत्र जीवंत होता, तो मौलिक अधिकार का यूं हनन नहीं होता। सच कहने वालों को यूं गोली नहीं मार दी जाती। अब तो ऐसा लगने लगा कि जो प्रतिरोध करेगा, उसे मार दिया जाएगा। हाल के वर्षों में ऐसे कई उदाहरण हमने देखे हैं। गौरी लंकेश की हत्या इसी की अगली कड़ी है। लेकिन हत्यारों को समझना चाहिए कि हत्या कर देने से सत्य शांत नहीं होता। उसे आप छिपा भी नहीं सकते। एक न एक दिन वह सबके सामने अवश्य आएगा। राज्य सरकार को चाहिए कि इस हत्या से जुड़े तमाम सवालों का हल ढूंढ़े। गौरी लंकेश के हत्यारों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी ही चाहिए।
कृष्ण, भीमराव अंबेडकर कॉलेज, डीयू

सिरदर्द बनता उत्तर कोरिया
उत्तर कोरिया सभ्य समाज के लिए खतरा बनता जा रहा है। वह एक के बाद दूसरा परीक्षण करके विश्व समुदाय को चुनौती दे रहा है। यह सही है कि उसके पास मानव संहारक हथियार है, पर उसे नहीं भूूलना चाहिए कि इन हथियारों का इस्तेमाल उसके अस्तित्व को भी समाप्त कर देगा। उसे अब भी विश्व बिरादरी के साथ कदम मिलाकर सकारात्मक काम करना चाहिए।
रोशन, सेक्टर-61, नोएडा

बेबाक आवाज का जाना
बेबाक, निर्भीक और निष्पक्ष पत्रकारिता की प्रतीक पत्रकार गौरी लंकेश की निर्मम हत्या मौजूदा सरकार, सरकारी तंत्र और कट्टरपंथी हिंदुत्व के खिलाफ विफलताओं का जीता-जागता उदाहरण है। आखिरकार हमारा देश जा कहां रहा है? जहां एक ओर हम अभिव्यक्ति की आजादी की बातें करते हैं, वहीं दूसरी ओर समाज के आधार स्तंभ माने जाने वाले, राजनीतिकों का चरित्र उजागर करने वाले और कट्टरपंथी हिंदुत्व को बेपरदा करने वाले पत्रकारों की चुन-चुनकर हत्याएं हो रही हैं। हमें मौजूदा हालात पर गहनता से विचार करना होगा। कहीं धर्मनिरपेक्ष और समतामूलक समाज का पक्षधर भारत सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक हिंसा का पर्याय तो नहीं बनता जा रहा है?
संतोष कुमार, धनबाद

फिर बेपटरी रेल
पिछले काफी समय से रेल दुर्घटनाएं बढ़ रही हैं। तब हम पूर्व रेल मंत्री सुरेश प्रभु को दोष देते रहे। अब तो नए रेल मंत्री पीयूष गोयल आ गए हैं, फिर भी रेल बेपटरी हो गई। पहले हावड़ा-जबलपुर शक्तिपुंज एक्सप्रेस की सात बोगियां सिंगरौली के पास पटरी से उतर गई, तो उसके कुछ घंटों के बाद रांची राजधानी दिल्ली में बेपटरी हो गई। स्पष्ट है कि रेल मंत्री कोई भी बने, पर जब तक रेल विभाग में रख-रखाव के अभाव को दूर करने व प्रशासनिक कमियों पर नियंत्रण पाने में गंभीरता नहीं दिखाई जाएगी, देश की रेल-व्यवस्था नहीं सुधरेगी। कहां किस तरह की खामियां हैं और उन्हें कैसे दुरुस्त किया जा सकता है, इस पर मंत्रालय को गंभीरता से सोचना ही चाहिए। हादसों को रोकने के लिए तमाम खामियों पर नियंत्रण जरूरी है।
महेश नेनावा, इंदौर, मध्य प्रदेश

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