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किम बनाम ट्रंप

किम बनाम ट्रंप इन दिनों अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उत्तर कोरियाई नेता किम जोंग-उन के बीच जिस तरह की जुबानी जंग छिड़ी है, वह बताती है कि यदि सत्ता की बागडोर सनकी लोगों के हाथों में चली जाए,...

किम बनाम ट्रंप
हिन्दुस्तानFri, 22 Sep 2017 11:19 PM
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किम बनाम ट्रंप
इन दिनों अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उत्तर कोरियाई नेता किम जोंग-उन के बीच जिस तरह की जुबानी जंग छिड़ी है, वह बताती है कि यदि सत्ता की बागडोर सनकी लोगों के हाथों में चली जाए, तो अंजाम कितना बुरा हो सकता है। एक-दूसरे को जानवर और पागल साबित करने में जुटे इन दोनों अगंभीर नेताओं ने पूरी दुनिया की सांसें अटका दी हैं। अगर बात बहुत बिगड़ी, तो इसका खामियाजा अंतत: विश्व मानवता को भुगतना पड़ेगा। इसलिए यूरोप, चीन और भारत के नेताओं को मध्यस्थता करते हुए कोई ऐसा रास्ता निकालना पड़ेगा, ताकि परमाणु युद्ध का आसन्न खतरा समाप्त हो। उत्तर कोरिया पर असरकारी प्रभाव डालने में सिर्फ चीन ही सक्षम है। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भी अब जोंग-उन के लिए बहुत सम्माननीय नहीं रहे। इसलिए चीन और भारत को पहल करते हुए इस संकट का हल निकालना चाहिए। इनकी इस कोशिश से दो उद्धत नेताओं के अविवेकी कदम से दुनिया बर्बाद होने से तो बचेगी ही, भारत और चीन के बीच विश्वास व भरोसे का एक नया युग भी शुरू हो सकता है।
मुकुल सिंह, पांडव नगर, दिल्ली- 92  

राहुल का नया रूप
अमेरिका के कई विश्वविद्यालयों में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी का लेक्चर हुआ है। बर्कले और प्रिंस्टन यूनिवर्सिटी के उनके भाषणों की खासी चर्चा हो रही है। काफी सारे लोग उनकी सराहना भी कर रहे हैं। राहुल के आलोचक स्तंभकार तक अब लिखने लगे हैं कि आखिर उन्होंने क्यों राहुल के बारे में अपनी राय बदली? इसमें कोई दो राय नहीं कि अपने ऊपर, अपने पुरखों के ऊपर जितने हमले राहुल ने झेले हैं, उतना किसी अन्य भारतीय ने नहीं झेले होंगे। लेकिन यह भी तय है कि सार्वजनिक जीवन में सुख और सम्मान के साथ आलोचना और तकलीफें नत्थी होती हैं। तो क्या वाकई राहुल का कायांतरण हो             चुका है? जितनी बेबाकी से वह अपनी यूपीए सरकार की कमियों को स्वीकार करते हैं, वह यकीनन उन्हें एक नई स्वीकृति दिलाएगी। पर उनके नए रूप की असली परीक्षा गुजरात विधानसभा के चुनाव में होगी।
राजेश राजावत, विकासपुरी, दिल्ली

हमले की धमकी
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री द्वारा अमेरिका में दिए गए साक्षात्कार में छोटे परमाणु हथियार होने की स्वीकारोक्ति को गंभीरता से लेना होगा। यह भारत ही नहीं, विश्व समुदाय के लिए भी चिंता की बात है। अगर ये हथियार वहां मौजूद रहे और आतंकी समूहों के हाथ लग गए, तो फिर अंजाम क्या होगा, समझना मुश्किल नहीं। यह सर्वविदित है कि पाकिस्तान की विदेश नीति वहां के विदेश मंत्री से नहीं, बल्कि सेना से संचालित होती है। यहां तक कि प्रधानमंत्री को अंधेरे में रखकर उसने कारगिल युद्ध तक लड़ा। ऐसे में, उसके यहां परमाणु हथियार सुरक्षित हाथों में भला कैसे माने जा सकते हैं? विश्व समुदाय को ऐसे देश से सख्ती से निपटने का समय आ गया है।
नरसिंह,  शास्त्री नगर, मेरठ

स्वाग्तयोग्य फैसला 
पश्चिम बंगाल में दुर्गा प्रतिमा के विसर्जन को लेकर कलकत्ता हाईकोर्ट का ताजा फैसला स्वागतयोग्य है। सवाल जायज है कि यदि दो समुदायों का त्योहार एक ही दिन हो, तो क्या दोनों एक साथ उसे नहीं मना सकते? एक पर पाबंदी और दूसरे को मंजूरी भला कहां उचित है? हां, यह बात जरूर है कि दोनों पक्ष इसे समझें कि उनके त्योहार की गरिमा क्या है? बहरहाल, तुष्टीकरण की राजनीति चाहे जो कोई भी करे, उसका समर्थन नहीं किया जा सकता। इससे सांप्रदायिक विद्वेष की भावना बढ़ती है। त्योहार मनाते समय लोग यह जरूर याद रखें कि उनके द्वारा विवाद खड़ा करने पर ही भ्रष्ट राजनेताओं का उदय होता है। वैसे, पुलिस-प्रशासन को भी अपनी जिम्मेदारी ईमानदारी से निभानी होगी। जहां कहीं तनाव की खबर आए, वे फौरन हालात संभाले।
आमोद शास्त्री, दिल्ली

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