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सिहरती धूप के रचयिता हिन्दी और भोजपुरी के चर्चित साहित्यकार विशुद्धानंद नहीं रहे

हिन्दी और भोजपुरी के चर्चित साहित्यकार विशुद्धानंद अब नहीं रहे। 68 वर्ष की उम्र में उनका गुरुवार रात निधन हो गया। शुक्रवार की शाम गुलबी घाट पर उनका अंतिम संस्कार संपन्न हुआ। अंतिम संस्कार के समय...

सिहरती धूप के रचयिता हिन्दी और भोजपुरी के चर्चित साहित्यकार विशुद्धानंद नहीं रहे
हिन्दुस्तान टीम,पटनाSat, 21 Oct 2017 01:44 AM
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हिन्दी और भोजपुरी के चर्चित साहित्यकार विशुद्धानंद अब नहीं रहे। 68 वर्ष की उम्र में उनका गुरुवार रात निधन हो गया। शुक्रवार की शाम गुलबी घाट पर उनका अंतिम संस्कार संपन्न हुआ। अंतिम संस्कार के समय साहित्य व कला क्षेत्र के लोग मौजूद थे। उनके आकस्मिक निधन से साहित्य जगत मर्माहत है।

भोजपुर के पकड़ी गांव निवासी विशुद्धानंद जी ने 30 रेडियो नाटक लिखे हैं। उनकी नवीनतम पुस्तक सिहरती धूप का लोकार्पण 5 नवंबर को निर्धारित है। यह पुस्तक उनके रेडियो धारावाहिक संस्कृतिशीर्ष पाटलिपुत्र पर आधारित है। उन्होंने कुछ दिनों तक पत्रकारिता भी की थी। उनके करीबी नीलेश मिश्र ने बताया कि उन्होंने रेडियो के अलावा टीवी और कई भोजपुरी फिल्मों के लिए भी कहानी और गीत लिखे हैं। छठ महापर्व और गुरु गोविंद सिंह जयंती पर उन्होंने रेडियो के लिए कमेंट्री भी की है। उनकी हिन्दी व भोजपुरी प्रमुख रचनाओं में एक नदी मेरा जीवन, माथे माटी वंदन, कालजयी बर्बरीक, बदलती हवाएं सिहरती धूप, हाय री लालसा, बिम्बिसार की आह, समय साक्षी एकलव्य आदि शामिल है। उनके अंतिम संस्कार के समय रंगकर्मी अभय सिन्हा भी मौजूद थे।

उनके साथ गुजारे हर पल की स्मृतियां ताजा हो रही

अभी-अभी अपने बड़े भाई सरीखे गीतकार नाटककार कथाकार, क्या-क्या कहूं श्रद्धेय विशुद्धानंद जी की अंतिम यात्रा से लौटा हूं उनके साथ गुजारे हर पल की स्मृतियां ताजा हो रही हैं। मुझे याद है कि वह दिन जब मैं आकाशवाणी पटना द्वारा आयोजित नाट्य समारोह के रिहर्सल में व्यस्त था। अचानक एक दिन वह आकर बैठ गए और रिहर्सल खत्म होने के बाद मुझसे कहा लगता है आप किसी दुविधा में हैं। मैंने जब परिचय पूछा तो कहा कि यह संगीत नाटक मेरा ही लिखा है फिर अपनी परेशानी मैंने उन्हें बताया। उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा बिल्कुल आसान है जिसे आप कठिन समझ रहे हैं उसमें अगर ऐसा बदलाव कर दें तो वह ठीक हो जाएगा। सच मानिए ऐसा ही हुआ और उस नाटक ने अपना एक इतिहास रच दिया। बहुत कम लोग यह जानते हैं कि वह एक कुशल गायक एवं अच्छे तबला वादक भी थे जिसका प्रयोग उन्होंने नाटक में किया था। दरअसल उस वक्त मैं गंवई गीतों से परिचित नहीं था। मुझे उनके सानिध्य में रहने का अवसर मिला। नाटक का अभिनेता एवं निदेशक हूं। ऐसी सादगी और मृदुभाषी बहुत कम लोगों में मैंने देखा है जो उनकी खासियत थी। आकाशवाणी के दर्जनों नाटकों को उन्होंने लिखा और प्रस्तुतीकरण किया। उनके गीतों एवं नाटकों में गति इसलिए होती थी कि उनके पास अच्छी समझ गीत और संगीत की थी। जहां मिल जाते कुछ ना कुछ नए जीवन पर बातें बता जाते। 

उनकी स्मृतियों के साथ...नीलेश मिश्र


 

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