शती ने जगदम्बा के रूप में पर्वतराज के यहां लिया अवतरण
आदिशक्ति भगवती ने शती के रुप में जब दक्ष प्रजापति के यहां आयोजित हवन कुंडली में अपनी आहूति दे दी तो देवाधिदेव महादेव क्रोधित हुए। महादेव के क्रोध को शांत करने के लिए भगवान विष्णु को चक्र सुदर्शन से...
आदिशक्ति भगवती ने शती के रुप में जब दक्ष प्रजापति के यहां आयोजित हवन कुंडली में अपनी आहूति दे दी तो देवाधिदेव महादेव क्रोधित हुए। महादेव के क्रोध को शांत करने के लिए भगवान विष्णु को चक्र सुदर्शन से शती के शरीर को विखंडित करना पड़ा। जहां जहां शरीर का भाग गिरा वह शक्तिपीठ कहलाया। दूसरे जन्म में शती ने देवी पार्वती के रुप में अवतरण लिया तथा कठोर साधना कर पुन: भगवान शंकर के अपने पति के रुप में वरण किया। उक्त बाते बनारस से आयी मानस मयूरी शालिनी त्रिपाठी ने शनिवार की देररात अयोध्यागंज बाजार स्थित माता वैष्णवी के प्रांगण परिसर में शिव विवाह के प्रसंग को आगे बढ़ाते हुए मौजूद श्रद्धालुओं से कही। श्रद्धालुओं से खचाखच भरा मंदिर प्रांगण के परिसर में शिव विवाह की महत्ता और पार्वती की कठिन साधना पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि प्राचीनकाल में माता पिता अपने पुत्र पुत्रियों के लिए वर वधू का चयन करते थे और उसके साथ उन्हें जीवन निर्वाह करना पड़ता था। वर्तमान में अब स्थिति में बदलाव आया है। पहले माता पिता के तहत बच्चों के जीवन में ब्रेक था अब ब्रेक फेल हो गया है। जिसके कारण समाज में आये दिन कई तरह की विसंगतियां उत्पन्न होती है। मानस मयूरी ने रामचरित मानस कथा के तहत शिव विवाह प्रसंग को आगे बढ़ाते हुए कहा कि जब जब मानव प्राचीन संस्कृति और अध्यात्मिक मर्यादाओं से विमूख हुए हैं तब तब भारतीय संस्कृति का हस हुआ है। ऐसी परिस्थति में आम श्रद्धालुओं को चाहिए कि भारतीय संस्कृति और अध्यात्म को अक्षुण्ण रखें।