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मौसम की बेरूखी ने बढ़ा दी किसानों की चिंता

बारिश हो नहीं रही है, पानी का लेबल उपर नहीं आया, नदियों में भी पानी की कमी है बरकरार पानी की कमी से धान की नर्सरी वाले खेतों में दिखने लगी हैं दरारें धान के पौधों की पत्तियां पड़ने लगी हैं पीली,...

मौसम की बेरूखी ने बढ़ा दी किसानों की चिंता
हिन्दुस्तान टीम,जहानाबादSun, 02 Jul 2017 04:09 PM
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बारिश हो नहीं रही है, पानी का लेबल उपर नहीं आया, नदियों में भी पानी की कमी है बरकरार पानी की कमी से धान की नर्सरी वाले खेतों में दिखने लगी हैं दरारें धान के पौधों की पत्तियां पड़ने लगी हैं पीली, बचाना हुआ मुश्किल 50 हजार हेक्टेयर भूमि में की जानी है धान की रोपनी 05 हजार हे. में से 72.56 फीसदी डाला गया है बिचड़ा 92.56 मिलीमीटर वर्षापात हुई है 30 जून तक 124.10 मिलीमीटर वर्षापात की थी आवश्यकता जहानाबाद। कार्यालय संवाददाता बारिश नहीं हो रही है। नदियों व पोखरों में पानी की कमी बनी हुई है। फलत: पानी का लेबल उपर नहीं आ सका है। डीजल पंप भी थोड़ी देर के बाद पानी उगलना बंद कर दे रहे हैं। धान का बिचड़ा डालने का समय अंत कर रहा है। जो किसान डीजल पंप या वर्षा के पानी से बिचड़ा डाले थे, उनकी नर्सरी वाले खेतों में दरारें दिखने लगी हैं। धान के पौधों की पत्तिया पीली पड़ने लगी हैं। अब तक जितनी बारिश होनी चाहिए थी, नहीं हो सकी है। इन कारणों ने किसानों की चिंताएं बढ़ा दी है। आसमान में बादल उमड़-घुमड़ रहे हैं। लेकिन, मेघ बरस नहीं रहे हैं। किसान क्या करें, वे समझ नहीं पा रहे हैं। जिले की अधिकांश आबादी खेतीबारी पर ही निर्भर है और बाजार कृषकों पर। अगर खेती मारी जाएगी, तो किसानों के पास पैसा नहीं आएगा और जब उनके पास पैसे नहीं होंगे तो वे एवं उनके परिवार के सदस्य बाजार से कुछ खरीदारी नहीं कर सकेंगे। इससे बाजार प्रभावित होगा। कृषि विभाग से मिली जानकारी के अनुसार, जहानाबाद जिले में 50 हजार हेक्टेयर भूमि में धान की खेती करनी है। इसके लिए पांच हजार हेक्टेयर भूमि में बिचड़ा डाला जाना था। लेकिन, बारिश नहीं होने और जलस्रोतों में पानी की कमी से अभी तक 72.56 फीसदी बिचड़ा डालने का काम हो सका है। अभी भी 27. 44 फीसदी बिचड़ा नहीं डाला जा सका है। जून माह में 30 तारीख तक जहानाबाद जिले में 92.56 मिलीमीटर वर्षापात नोट किया गया है। जबकि आवश्यकता 124.10 मिलीमीटर वर्षापात की थी। बारिश की फुहारों से आई नमी शुक्रवार की दोपहर में बारिश हुई। आधा घंटा झमाझम वर्षा हुई। बाद में रिमझिम-रिमझिम बारिशि होने लगी। फिर फुहारा व बूंदाबांदी हुई। ठंडी हवा भी चलने लगी। इससे खेतों की मिट्टी में नमी आएगी और पानी के अभाव में धान के पौधों की पीली हो रही पत्तियों में हरियाली आ जाएगी। हालांकि इतनी बारिश से खेतों की दरारें नहीं भर पाएंगी। शनिवार को कभी धूप तो कभी बादल से आसमान घिर जा रहा है। किसानों रामजतन सिंह, कन्हैया लाल कहते हैं कि आसमान में बादल उमड़-घुमड़ रहे हैं। बारिश हो सकती है। लेकिन, लगता है कि मानसून कमजोर हो गया है। क्या कहते हैं अधिकारी जिला कृषि पदाधिकारी शंकर झा ने बताया कि जरूरत के अनुसार वर्षा नहीं हो रही है। जलस्रोतों में भी पानी की कमी है। हालांकि विभाग की ओर से धान की रोपनी कराने की तैयारी पूरी कर ली गई है। फायदे को देखते हुए इस बार श्री विधि से ज्यादा किसान धान की खेती करेंगे। भदई फसल का भी लक्ष्य निर्धारित कर उसपर काम किया जा रहा है। सुगंधित धान की खेती की पहल जहानाबादवासियों के मुंह का स्वाद बदल रहा है। लोग अब मोटे चावल की अपेक्षा सुगंधित चावल खाना अधिक पसंद कर रहे हैं। इसी को ध्यान में रहते हुए किसान अब ज्यादातर सुगंधित धान की खेती की पहल कर रहे हैं। कृषि विभाग सौ फीसदी अनुदान पर सुगंधित धान का बीज उपलब्ध करा रहा है। किसानों को प्रशिक्षित किया जा रहा है। वे राजेन्द्र भगवती, सुगंधा, राजेन्द्र बासमती जैसे धान का उत्पादन करने लगे हैं। कम पानी में करें धान की खेती श्री पद्धति से भी धान उत्पादन करनेवाले किसानों की संख्या लगातार बढ़ रही है। जहां पारंपरिक तकनीक में धान के पौधों को पानी से लबालब भरे खेतों में उगाया जाता है, वहीं मेडागास्कर तकनीक में पौधों की जड़ों में नमी बरकरार रखना ही पर्याप्त होता है। लेकिन, सिंचाई का पुख्ता इंतजाम जरूरी हैं। सामान्यत: जमीन पर दरारें उभरने पर ही दोबारा सिंचाई करनी होती है। इस तकनीक से धान की खेती करने में जहां भूमि, श्रम, पूंजी और पानी कम लगता है, वहीं उत्पादन भी कई गुणा ज्यादा होता है। वैज्ञानिकों ने चावल की नई किस्म विकसित की है। फॉस्फोरस की कमी वाली मिट्टी में भी इसका कई गुना ज्यादा उत्पादन हो सकता है, वह भी बिना किसी रासायनिक खाद के इस्तेमाल के। 140 सेमी. वर्षापात पर अच्छी होगी उपज धान और पानी का गहरा संबंध है। जहां वर्षा अधिक होती है, वहां धान का क्षेत्रफल ज्यादा होता है। जिन क्षेत्रों में वार्षिक वर्षा 140 सेमी. से अधिक होती है, वहां धान की उपज अच्छी होती है। कम वर्षा वाले क्षेत्रों (100 सेमी. से कम) में सिंचाई के साधन जरूरी है। पौधों की बढ़वार के लिए विभिन्न अवस्थाओं पर 21-30 डिग्री सेग्रे. तापक्रम की आवश्यकता होती है। फसल की अच्छी वृद्धि के लिए 25 से 30 डिग्री सेग्रे. तथा पकने के लिए 21-25 डिग्री सेग्रे. तापक्रम की जरूरत पड़ती है। धान पकते समय 200 घंटे का प्रकाश होना अनिवार्य है। फोटो- 02 जुलाई जेहाना- कैप्शन- मखदुमपुर प्रखंड के धरनई मौजा में पानी के अभाव में धान की नर्सरी वाले खेत में पड़ी दरारें।

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