आस्था का अनंत प्रवाह है कांवड़ यात्रा
हर साल श्रावण मास में लाखों कांवड़िये गंगाजल से भरी कांवड़ लेकर पदयात्रा करते हैं। श्रावण मास में शिवभक्ति का विराट रूप और आस्था का अनंत प्रवाह कांवड़ यात्रा के रूप में दिखाई देता है। कांवड़ यात्रा...
हर साल श्रावण मास में लाखों कांवड़िये गंगाजल से भरी कांवड़ लेकर पदयात्रा करते हैं। श्रावण मास में शिवभक्ति का विराट रूप और आस्था का अनंत प्रवाह कांवड़ यात्रा के रूप में दिखाई देता है। कांवड़ यात्रा संदेश देती है कि शिव ही सृष्टि का रूप हैं। कांवड़ यात्रा हमें जल संचय की अहमियत बताती है।
कांवड़ यात्रा कठिन यात्रा है। कांवड़ यात्री केसरिया रंग के वस्त्र धारण करते हैं। रास्ते में छोटे-बड़े गांव, शहरों में स्थानीय लोग कांवड़ यात्रियों का स्वागत करते हैं। कहा जाता है कि भगवान परशुराम ने अपने आराध्य भगवान शिव के नियमित पूजन के लिए पूरा महादेव में मंदिर की स्थापना की और कांवड़ में गंगाजल लाकर पूजन किया। तभी से कांवड़ यात्रा का आरंभ हुआ। भगवान शिव की कृपा पाने के लिए कांवड़ यात्रा श्रेष्ठ माध्यम है। ऐसा माना जाता है कि जब सावन में सारे देवता शयन करते हैं तब भोलेनाथ जाग्रत रहकर अपने भक्तों की रक्षा करते हैं।
कांवड़ यात्रा में पैरों में पड़ने वाले छाले भी शिवभक्तों की राह नहीं रोक पाते हैं। कांवड़ यात्रियों के लिए किसी भी प्रकार का नशा वर्जित है। तामसी भोजन का सेवन भी नहीं किया जाता। बिना स्नान किए कांवड़ को हाथ नहीं लगा सकते। चमड़े की किसी वस्तु का स्पर्श, वाहन का प्रयोग, चारपाई का उपयोग, ये सब कांवड़ियों के लिए वर्जित हैं। किसी वृक्ष या पौधे के नीचे भी कांवड़ को रखना वर्जित है। कांवड़ को अपने सिर के ऊपर से लेकर जाना भी वर्जित है। बिना स्नान किए कांवड़ यात्री कांवड़ को नहीं छूते। तेल, साबुन, कंघी करने व श्रृंगार सामग्री का उपयोग भी इस यात्रा के दौरान नहीं किया जाता।
जिस घर के लोग कांवड़ लेने जाते हैं, उनके आने तक घर में बनाई जाने वाली सब्जी में छौंक नहीं लगाया जाता। एकदम गर्म तवे पर रोटी नहीं डाली जाती। सिलाई का कोई कार्य नहीं किया जाता है। किसी भी जानवर को नहीं मारा जाता। शिव भक्त के कांवड़ लेकर आने के दौरान उसके परिवार के लोग भी उसे भोले कहकर पुकारते हैं।