गोवर्धन पूजा 2017: पढ़िए पर्व की कथा, श्रीकृष्ण ने तोड़ा था इंद्र का अहंकार
दिवाली के पर्व के ठीक अगले दिन कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को गोवर्धन उत्सव मनाया जाता है। गोवर्धन को ‘अन्नकूट पूजा’ भी कहा जाता है। इस दिन लोग घर के आंगन में गोबर से गोवर्धन...
दिवाली के पर्व के ठीक अगले दिन कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को गोवर्धन उत्सव मनाया जाता है। गोवर्धन को ‘अन्नकूट पूजा’ भी कहा जाता है। इस दिन लोग घर के आंगन में गोबर से गोवर्धन पर्वत का चित्र बनाकर गोवर्धन भगवान की पूजा करते हैं। इस दिन गायों की सेवा का विशेष महत्व है। गोवर्धन पूजा का श्रेष्ठ समय प्रदोष काल में माना गया है।
ऐसा माना जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने इंद्र की पूजा की बजाय लोगों से गोवर्धन की पूजा शुरू करवाई थी। ये पूजा द्वार युग से चली आ रही है। इससे पहले लोग इन दिन इंद्र की पूजा करते थे। एक दिन भगवान कृष्ण ने सवाल किया कि लोग इन्द्र की पूजा क्यों करते हैं? उन्हें बताया गया कि वह वर्षा करते हैं जिससे अन्न की पैदावार होती और हमारी गायों को चारा मिलता है। तब श्री कृष्ण ने कहा ऐसा है तो सबको गोर्वधन पर्वत की पूजा करनी चाहिए क्योंकि हमारी गाये वहीं चरती हैं।
उनकी बात मान कर सभी ब्रजवासी इंद्र की जगह गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे। देवराज इन्द्र ने इसे अपना अपमान समझा और प्रलय के समान मूसलाधार वर्षा शुरू कर दी। तब भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठा कर ब्रजवासियों की भारी बारिश से रक्षा की थी। इसके बाद इंद्र को पता लगा कि श्रीकृष्ण वास्तव में विष्णु के अवतार हैं। फिर बाद में इंद्रा देवता को भी भगवान कृष्ण से क्षमा याचना करनी पड़ी। इन्द्रदेव की याचना पर भगवान कृष्ण गोवर्धन पर्वत को नीचे रखा और सभी ब्रजवासियों से कहा कि अब वे हर साल गोवर्धन की पूजा कर अन्नकूट पर्व मनाए। तब से ही यह पर्व गोवर्धन के रूप में मनाया जाता है।