छठ पर्व पर विशेष: सूर्य पूजा की महिमामयी धरती मगध
भारतीय संस्कृति में प्रत्यक्ष देव सूर्य नारायण का विशिष्ट स्थान है, जिनके द्वादश पूजन तीर्थों का विवरण महाभारत काल से ही उपलब्ध है। इन स्थानों का महत्व साल के दोनों सूर्य षष्ठी पर्वों (चैत्र छठ व...
भारतीय संस्कृति में प्रत्यक्ष देव सूर्य नारायण का विशिष्ट स्थान है, जिनके द्वादश पूजन तीर्थों का विवरण महाभारत काल से ही उपलब्ध है। इन स्थानों का महत्व साल के दोनों सूर्य षष्ठी पर्वों (चैत्र छठ व कार्तिक छठ) पर दोगुना हो जाता है। इन स्थानों में नौ पुण्यदायक स्थल आज भी बिहार के मगध क्षेत्र में विराजमान हैं।
मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब ने सूर्य की साधना कर कुष्ठ रोग से मुक्ति पाई थी और इसके बाद बारह स्थानों पर सूर्य की राशि, चक्र व कोणीय आधार पर पूजन केन्द्रों की स्थापना की थी। उनमें एक कश्मीर, एक ओडिशा व एक गुजरात और शेष नौ मगध की धरती पर स्थित हैं। ऐसे भी प्राचीन भारत में करीब 1000 वर्षों तक देश की राजनीति का केंद्र रहे मगध के नामकरण का आधार भी सूर्योपासना से जुड़ा है। कहा जाता है कि सोन नदी से आगे गंगा नदी के दक्षिण व छोटानागपुर पठार की दक्षिण-पश्चिम भूमि पर बसे मगध प्रदेश में ‘मग’ ब्राह्मणों का निवास था, जो सूर्यपूजक थे। यही कारण है कि सूर्य देवता से जुड़े रविवार, भानु सप्तमी व दोनों सूर्य षष्ठी पर्व में यह पूरा क्षेत्र धर्ममय हो जाता है। यहीं मगध में ‘सुकन्या’ ने छठ करके च्यवन ऋषि के शरीर को कांतिमय बना दिया था।
मगध के नौ सूर्य मंदिरों में सर्वाधिक प्रसिद्धि औरंगाबाद जिले के देव सूर्य मंदिर की है, जिसे ‘देवार्क’ कहा जाता है और यहां के प्रधान देवालय का प्रवेश द्वार पूर्व न होकर, पश्चिम है। देव से 12 किलोमीटर पहले राष्ट्रीय राजमार्ग 2 के किनारे उमगा पर्वत पर ‘उमगार्क’ सूर्य की स्थिति है, जिसके देवालय का निर्माण 16वीं शताब्दी के मध्यकाल में राजा भैरवेन्द्र जी महाराज ने करवाया था। पटना जिले में बाढ़ से 12 किलोमीटर की दूरी पर पुण्यार्क सूर्य मंदिर है तो 51 किमी दूरी पर मसौढ़ी अनुमंडल में उलार्क सूर्य मंदिर की प्रसिद्धि दूर-दूर तक है। इन दोनों के ठीक पास प्राचीन सूर्यकुंड भी है। नवादा जिले में हंडिया सूर्य मंदिर ‘हंडार्क’ के नाम से ख्यात है तो गया जिले से 50 किलोमीटर दूर टंडवा पर्वत स्थित ‘टंडवार्क’ सूर्य मंदिर की भी विशिष्ट महत्ता है। गया नगर में सूर्यकुंड के ठीक सामने ‘दक्षिणार्क’ सूर्य देवालय पाल कालीन है।
वर्तमान में नालंदा विश्वविद्यालय के खंडहर से दो किलोमीटर दूर बडगांव के ‘बालार्क’ सूर्य का दर्शन चीनी यात्री ह्वेनसांग ने किया था। इसी जिले के एकंगरसराय प्रखंड में ‘अंगार्क’ सूर्य मंदिर औगांरी गांव में है। मगध के पर्वतों पर सूर्य, स्वस्तिक, चक्र और सप्तअश्व भी अंकित मिलेंगे। महाबोधि महाविहार की प्राचीन रेलिंग पर सूर्य का चित्रण व स्थान-स्थान पर सूर्य देव की मूर्ति की स्थापना और पूजन मगध को श्रेष्ठ सूर्यतीर्थ के रूप में स्थापित करता है। यहां सूर्य पूजन की परम्परा वैदिक काल से चली आ रही है।
डॉ. राकेश कुमार सिन्हा