आस्था स्थली: 10वीं शताब्दी की है यहां स्थित बाहुबली की विशाल प्रतिमा
कर्नाटक के श्रवणबेलगोला में स्थित बाहुबली की विशाल प्रतिमा भारत के अद्भुत स्मारकों में शुमार है। श्रवणबेलगोला में मुख्य आकर्षण का केंद्र बाहुबली की विशाल प्रतिमा ही है। धार्मिक रूप से यह अत्यधिक...
कर्नाटक के श्रवणबेलगोला में स्थित बाहुबली की विशाल प्रतिमा भारत के अद्भुत स्मारकों में शुमार है। श्रवणबेलगोला में मुख्य आकर्षण का केंद्र बाहुबली की विशाल प्रतिमा ही है। धार्मिक रूप से यह अत्यधिक महत्वपूर्ण है, क्योंकि जैनियों का मानना है कि मोक्ष (जीवन-मरण के चक्र से छुटकारा) की प्राप्ति सर्वप्रथम बाहुबली को हुई थी। आदिपुराण के अनुसार बाहुबली इस युग के प्रथम कामदेव थे।
गोमतेश्वर की यह बाहुबली की प्रतिमा दसवीं शताब्दी की है। पर यह आज भी जिस शान से पर्वत शिखर पर विराजमान है, वह दुनिया भर से आने वाले श्रद्धालुओं और सैलानियों को चकित करती है। गोमतेश्वर की प्रतिमा के बारे में मान्यता है कि इस मूर्ति में शक्ति, साधुत्व, बल तथा उदारवादी भावनाओं का अद्भुत प्रदर्शन होता है। यह मूर्ति मध्यकालीन कर्नाटक की शिल्पकला का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है। यह पूरे विश्व में एक पत्थर से निर्मित (एकाश्म) सबसे विशालकाय मूर्ति है।
कौन थे बाहुबली : बाहुबली जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव के पुत्र थे। अपने बड़े भाई भरत चक्रवर्ती से युद्ध के बाद वह जैन मुनि बन गए। उन्होंने एक साल तक कायोत्सर्ग मुद्रा में ध्यान किया, जिससे उन्हें ‘केवल ज्ञान’ की प्राप्ति हुई इसके बाद वे ‘केवली’ कहलाए। श्रवणबेलगोला में बाहुबली की प्रतिमा का निर्माण 983 ईसवी में गंग सम्राज्य के राजा राजमल के एक सेनापति चामुंडराय द्वारा करवाया गया। उन्होंने अपनी मां कल्लाला देवी की इच्छा से मूर्ति का निर्माण कराया। इस मूर्ति को सफेद ग्रेनाइट के एक ही पत्थर से काट कर बनाया गया है। मूर्ति एक कमल पर खड़ी हुई है। यह जांघों तक बिना किसी सहारे के खड़ी है। मूर्ति की लंबाई 60 फीट (18 मीटर) है। इसके चेहरे का माप 6.5 फीट (2 मीटर) है। विंध्यगिरि पर्वत पर स्थित यह मूर्ति 30 किलोमीटर दूर से भी दिखाई देती है। इस मूर्ति का 1008 कलश दूध, गन्ने के रस, दूध, चंदन आदि से अभिषेक किया गया, फिर भी अभिषेक पूर्ण नहीं हुआ। जब चामुंडराय की गुल्लिका अज्जी (दादी) ने अपनी छोटी-सी लुटिया से दुग्धाभिषेक किया तो यह पूर्ण हुआ।
गोमतेश्वर भी एक नाम : बाहुबली का एक नाम गोमतेश्वर भी है। दरअसल चामुंडराय को उनकी मां बचपन में गोम्मद कह कर बुलाती थीं। तो, गोम्मद के ईश्वर गोमतेश्वर हुए।
श्रवणबेलगोला में हर 12 साल पर महामस्तकाभिषेक होता है। मूर्ति को केसर, घी, दूध, दही, सोने के सिक्कों तथा अन्य वस्तुओं से नहलाया जाता है। उस समय यहां बहुत बड़ा मेला लगता है। इस मौके पर देश-दुनिया से लाखों जैन श्रद्धालु यहां जुटते हैं। श्रवणबेलगोला प्राचीनकाल में जैन धर्म का महान केंद्र था। जैन अनुश्रुतियों के मुताबिक मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त ने अंतिम दिन मैसूर के श्रवणबेलगोला में व्यतीत किए थे।
कैसे पहुंचें: बेंगलुरु से श्रवणबेलगोला की दूरी वाया चेनेरायपटना 157 किलोमीटर है। मेजेस्टिक बस स्टैंड से कुछ बसें सीधी भी वहां जाती हैं। चेनेरायपटना से श्रवणबेलगोला 11 किलोमीटर है। कर्नाटक स्टेट टूरिज्म डेवलपमेंट कारपोरेशन श्रवणबेलगोला, बेलुर और हेलेबीडू का एक दिन का टूर पैकेज भी संचालित करता है।
इसके लिए बसें
सुबह 6.30 बजे बेंगलुरु के बादामी हाउस से संचालित होती हैं। भारतीय रेलवे ने श्रवणबेलगोला के लिए एक नियमित
ट्रेन का संचालन भी शुरू कर दिया है। इंटरसिटी एक्सप्रेस 22679 शाम को 6.15 बजे चलती है हासन के लिए।
ट्रेन 133 किलोमीटर का सफर कर श्रवणबेलगोला 8.10
बजे पहुंचती है। माधवी रंजना