Vat Savitri Vrat 2017 : पति की दीर्घायु के लिए श्रेष्ठ है वट सावित्री व्रत
वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या को संपन्न किया जाता है। यह स्त्रियों का महत्वपूर्ण व्रत है, इस दिन सत्यवान स्त्री और यमराज की पूजा की जाती है। सावित्री ने इसी व्रत के प्रभाव से...
वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या को संपन्न किया जाता है। यह स्त्रियों का महत्वपूर्ण व्रत है, इस दिन सत्यवान स्त्री और यमराज की पूजा की जाती है। सावित्री ने इसी व्रत के प्रभाव से अपने मृतक पति सत्यवान को धर्मराज से छुड़ाया था। इस दिन स्त्रियां सजसंवरने के बाद अपने पति की दीर्घायु के लिए वटवृक्ष के नीचे बैठकर पूजा करती हैं। यह व्रत पति की लंबी आयु के लिए श्रेष्ठ माना जाता है।
विधान: वट वृक्ष के नीचे मिट्टी की बनी सावित्री और सत्यवान तथा भैंसे पर सवार यम की प्रतिमा स्थापित करते हुए वट वृक्ष की जड़ में पानी देना चाहिए। पूजा के लिए जल, मौली,रोली, कच्चा सूत, भिगोया हुआ चना, फूल तथा धूप होनी चाहिए। जल से वट वृक्ष को सींचकर तने के चारों ओर कच्चा धागा लपेटकर तीन बार परिक्रमा करनी चाहिए। इसके पश्चात सत्यवान सावित्री की कथा सुननी चाहिए। इसके पश्चात भीगे हुए चनों का बायना निकालकर उसपर यथाशक्ति रुपये रखकर अपनी सास को देना चाहिए तथा उनके चरण स्पर्श करने चाहिए।
कथा: मद्र देश का राजा अश्वपति ने पत्नी सहित संतान के लिए सावित्रि देवी का विधि पूर्वक व्रत तथा पूजन करके पुत्री का वर प्राप्त किया। फलस्वरूप सर्वगुण संपन्न देवी सावित्री ने पुत्री के रूप में राजा अश्वपति के घर कन्या के रूप में जन्म लिया। बड़े होने पर राजा ने पुत्री सावित्री को अपने मंत्री आदि के साथ पुत्री को उसके मन के अनुकूल पति चुनने के लिए भेज दिया।
कुछ दिन बाद जब सावित्री अपने मन के अनुकूल पति का चयन करके महल में लौटी तो उसी दिन देवऋषि नारद उनके घर पधारे। सावित्री ने बताया कि महाराज द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान को उन्होंने पति के रूप में वरण कर लिया है। नारद जी ने सत्यवान और सावित्री के ग्रहों की गणना कर राज अश्वपति को बधाई दी और दोनों की जोड़ी अच्छा बताया। इसके अलावा उन्होंने यह भी बताया कि विवाह के बारह वर्ष के बाद सत्यवान की मृत्यु हो जाएगी।
इसपर राजा अश्वपति ने पुत्री सावित्री से किसी और से विवाह करने की बात कही लेकिन सावित्री अपनी बात पर अटल रहीं। सावित्री ने नारद जी से पति की मृत्यु का सही समय पता कर लिया और सत्यवान से विवाह कर अपने परिवार के साथ रहने लगी। धीरे-धीरे समय बीतता गया और सत्यवान की मृत्यु की घड़ी निकट आ गई। तय समय से तीन दिन पूर्व से ही सावित्री ने उपवास शुरू कर दिया। नारद द्वारा निश्चित तिथि को जब सत्यवान लकड़ी लेने वन को जाने लगे तो सावित्री भी आज्ञा लेकर उनके साथ चल दी।
जो होना था सो हुआ, एक सांप ने सत्यवान को डस लिया। इसपर सावित्री ने सत्यवान को एक वटवृक्ष के नीचे लिटा लिया और उसका सिर अपने ऊपर रख लिया। देखते ही देखते ही यमराज सत्यवान के प्राणों को लेकर चल दिए, सावित्री भी यमराज के पीछे चल दीं।
पीछे आती सावित्री को देखकर यमराज ने लौट जाने को कहा, तो सावित्री बोलीं, पति के बिना नारी के जीवन की कोई सार्थकता नहीं। यमराज सावित्री के पति धर्म से प्रसन्न होकर बोले कि पति के प्राणों अतिरिक्त वह कोई भी वरदान मांग ले। इसपर सावित्री ने सौ पुत्रों का वरदान मांगा। यमराज ने भी तुरंत तथास्तु कर कहकर अपना वचन निभाया और आगे चल दिए। इसके बावजूद सावित्री को पीछे आता देख यमराज क्रोधित हो गए और सावित्री से पीछे आने का कारण पूछा।
सावित्री बोली कि महाराज आपने ही मुझे सौ पुत्रों का वरदान दिया है लेकिन बिना पति मैं मां किस प्रकार बन सकती हूं, इसका समाधान तो आपके पास ही है। सावित्री की धर्मनिष्ठा, ज्ञान, विवेक तथा पतिव्रत के कारण यमराज भी अपने दिए वरदान के जाल में ही फंस गए और उन्हें सत्यवान के प्राण लौटाने पड़े। साथ ही उन्होंने सावित्री को वरदान दिया कि जैसे वटवृक्ष हजारों साल तक रहता है, वैसे ही उसकी ख्याति भी हजारों से साल चारों लोकों को गूंजेगी। सावित्री ने वटवृक्ष की परिक्रमा की तो सत्यवान जीवित हो उठा। आगे चलकर सावित्री सौ पुत्रों की मां बनी। इस प्रकार चारों दिशाएं सावित्री के पतिव्रत धर्म के पालन की कीर्ति से गूंज उठीं।
इस आलेख में दी गई जानकारियां धार्मिक आस्थाओं और लौकिक मान्यताओं पर आधारित हैं, जिसे मात्र सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किया गया है।