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पुत्र नहीं संतान की लंबी आयु के लिए रखा जाता है जिउतिया व्रत

जीवित्पुत्रिका व्रत या जीउतिया व्रत  इस बार 13 सिंतबर को पड़ रहा है। 12 सितंबर को नहाय खाय के साथ इसकी शुरुआत होगी और दूसरे दिन बुधवार यानी 13 सितंबर को निर्जला उपवास के साथ संपन्न होगी।...

पुत्र नहीं संतान की लंबी आयु के लिए रखा जाता है जिउतिया व्रत
हिन्दुस्तान लाइव टीम,मुरादाबादSat, 09 Sep 2017 11:06 AM
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जीवित्पुत्रिका व्रत या जीउतिया व्रत  इस बार 13 सिंतबर को पड़ रहा है। 12 सितंबर को नहाय खाय के साथ इसकी शुरुआत होगी और दूसरे दिन बुधवार यानी 13 सितंबर को निर्जला उपवास के साथ संपन्न होगी। पारण 14 सितंबर को 5 बज कर 35 मिनट पर होगा। आमतौर पर इस व्रत को लेकर धारणा है कि यह व्रत पुत्र प्राप्ति के लिए किया जाता जबकि विद्वान बताते हैं यह व्रत संतान को दीर्घायु होने की कामना के साथ किया जाता है।

ज्योर्विद पंडित ब्रजेश मिश्र बताते हैं कि दरअसल पुत्र शब्द का प्रयोग संतान यानी पुत्र और पुत्री दोनों के लिए किया जाता है। इस कारण इस व्रत के नाम से कोई भ्रम नहीं रखना चाहिए। यह पर्व बेटा और बेटी दोनों के प्रति माता का समर्पण दर्शाता है। यह व्रत जिनको बेटा और बेटी दोनों है। इस व्रत का महत्व संतान की बेहतरी के लिए है।

पं मिश्र ने बताया कि कुश से जीमूतवाहन की प्रतिमा बनाकर पूजा की जाती है। यह व्रत आश्विन माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को आता है। ऐसी मान्यता है कि यह व्रत सौभाग्यवती स्त्रियों द्वारा अपनी संतान की आयु, आरोग्य तथा उनके कल्याण हेतु पूरे विधि-विधान से किया जाता है। यदि आप क्षेत्रीय संदर्भ से देखें तो इस व्रत के कई अन्य नाम आपको मिलेंगे, जैसे कि ‘जीतिया’ या ‘जीउतिया’ तथा ‘जिमूतवाहन व्रत’ आदि।

ऐसे करें व्रत

सुबह स्नान आदि करने के बाद व्रत का संकल्प लें। प्रदोष काल (शाम को) में गाय के गोबर से अपने आंगन को लीपे और वहीं एक छोटा सा तालाब भी बना लें। तालाब के निकट पाकड़ (एक प्रकार का पेड़) की डाल लाकर खड़ी कर दें। शालिवाहन राजा के पुत्र जीमूतवाहन की कुशनिर्मित मूर्ति मिट्टी के बर्तन में स्थापित कर पीली और लाल रुई से उसे सजाएं तथा धूप, दीप, चावल, फूल, माला एवं विविध प्रकार के नैवेद्यों से पूजा करें।
मिट्टी तथा गाय के गोबर से चिल्ली या चिल्होड़िन (मादा चील) व सियारिन की मूर्ति बनाकर उनके मस्तकों को लाल सिंदूर से सजा दें। अपने वंश की वृद्धि और प्रगति के लिए बांस के पत्तों से पूजा करना चाहिए। इसके बाद व्रत की कथा सुनें।

ये है जीवितपुत्रिका व्रत की कथा

गंधर्वों के राजकुमार का नाम जीमूतवाहन था। वह बहुत दयालु एवं धर्मनिष्ठ था। परंतु उसका मन राज-पाट में नहीं लगता था। अत: राज्य का भार अपने भाइयों पर छोड़कर वह स्वयं वन में पिता की सेवा करने चला गया। एक दिन वन में जीमूतवाहन को एक वृद्धा विलाप करते हुए दिखाई दी। उन्होंने वृद्धा से उसके रोने का कारण पूछा तो उसने बताया कि मैं नागवंश की स्त्री हूं तथा मेरा एक ही पुत्र है। नागों द्वारा रोज एक नाग पक्षीराज गरुड़ को भोजन के लिए दिया जाता है। आज मेरे पुत्र शंखचूड़ की बलि का दिन है।
उस स्त्री की व्यथा सुनकर जीमूतवाहन ने कहा कि मैं आपके पुत्र के प्राणों की रक्षा अवश्य करूंगा। वचन देकर जीमूतवाहन स्वयं गरुड़ को बलि देने के लिए चुने गए स्थान पर लेट गए। नाग के स्थान पर जीमूतवाहन को देखकर गरुड़ आश्चर्य में पड़ गए और जीमूतवाहन से उनका परिचय पूछा। जीमूतवाहन ने उन्हें सारी बात सच-सच बता दी। जीमूतवाहन की बहादुरी और परोपकार की भावना से प्रभावित होकर गरुड़देव उन्हें तथा नागों को जीवनदान दिया। इस प्रकार जीमूतवाहन के साहस से नाग जाति की रक्षा की।


 

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