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मन को कभी भी निराश न होने दें, बड़ी से बड़ी हानि में भी प्रसन्न रहें

सुबह-सुबह एक भिखारी नरेश के घर पर भिक्षा मांगने के लिए पहुंच गया। भिखारी ने दरवाजा खटखटाया, नरेश बाहर आये पर उनकी जेब में देने के लिए कुछ न निकला। वे कुछ दुखी होकर घर के अंदर गए और एक बर्तन उठाकर...

मन को कभी भी निराश न होने दें, बड़ी से बड़ी हानि में भी प्रसन्न रहें
लाइव हिन्दुस्तान ,नई दिल्लीSun, 04 Jun 2017 07:12 PM
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सुबह-सुबह एक भिखारी नरेश के घर पर भिक्षा मांगने के लिए पहुंच गया। भिखारी ने दरवाजा खटखटाया, नरेश बाहर आये पर उनकी जेब में देने के लिए कुछ न निकला। वे कुछ दुखी होकर घर के अंदर गए और एक बर्तन उठाकर भिखारी को दे दिया।
 
भिखारी के जाने के थोड़ी देर बाद ही वहां नरेश की पत्नी आई और बर्तन न पाकर चिल्लाने लगी अरे! क्या कर दिया आपने चांदी का बर्तन भिखारी को दे दिया। दौड़ो-दौड़ो और उसे वापिस लेकर आओ। नरेश दौड़ते हुए गए और भिखारी को रोककर कहा “भाई मेरी पत्नी ने मुझे जानकारी दी है कि यह गिलास चांदी का है, कृपया इसे सस्ते में मत बेच दीजियेगा। ”

वहीँ पर खड़े नरेश के एक मित्र ने उससे पूछा- मित्र! जब आपको पता चल गया था कि ये गिलास चांदी का है तो भी उसे गिलास क्यों ले जाने दिया?”
 
नरेश ने मुस्कुराते हुए कहा- “मन को इस बात का अभ्यस्त बनाने के लिए कि वह बड़ी से बड़ी हानि में भी कभी दुखी और निराश न हो!
 
वैसे ही मन को कभी भी निराश न होने दें, बड़ी से बड़ी हानि में भी प्रसन्न रहें।  

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