जन्माष्टमी मनाने का सच्चा अर्थ है जीवन में थोड़ा सा...
जन्माष्टमी भगवान कृष्ण के जन्म का उत्सव है। अष्टमी का अर्धचंद्र महत्वपूर्ण है क्योंकि वह इस बात का प्रतीक है कि सत्य के भी प्रकट तथा अप्रकट पहलू हैँ जिनमें पूर्ण समन्वय है; प्रकट है पदार्थ संसार तथा...
जन्माष्टमी भगवान कृष्ण के जन्म का उत्सव है। अष्टमी का अर्धचंद्र महत्वपूर्ण है क्योंकि वह इस बात का प्रतीक है कि सत्य के भी प्रकट तथा अप्रकट पहलू हैँ जिनमें पूर्ण समन्वय है; प्रकट है पदार्थ संसार तथा अप्रकट है आध्यात्मिक क्षेत्र। इस संसार में लोग चरम की ओर प्रवृत होते हैं। जो पदार्थ जगत की क्रियाकलापों में लिप्त हैं वे जड़ हो जाते हैं तथा वे जो आध्यात्म में डूबे हैं “अवधूत” हो जाते हैं - अपने आसपास की दुनिया से अनभिज्ञ रहते हैं।
अष्टमी को कृष्ण का जन्म पदार्थ तथा आध्यात्मिक संसार दोनों पर उनके संपूर्ण स्वामित्व को व्यक्त करता है। वह एक महान शिक्षक तथा आध्यात्मिक प्रेरणास्त्रोत हैं तथा साथ ही एक परिपूर्ण राजनीतिज्ञ भी। एक तरफ़ वे योगेश्वर हैं (योग के स्वामी- वह स्थिति जिसे पाने की अभिलाषा सभी योगी रखते हैं) तथा दूसरी तरफ़, वह एक चोर हैं। कृष्ण की सबसे बड़ी निपुणता यह है कि वह एक ही समय में संतों से भी अधिक केंद्रित हैं तथा साथ ही नटखटपने से भरपूर भी। उनके व्यवहार में दोनों चरम समाहित हैं साथ ही दोनों चरम का पूर्ण संतुलन है। शायद इसीलिए कृष्ण का व्यक्तित्व समझना इतना कठिन है। अवधूत बाह्य संसार के प्रति उदासीन है तथा सांसारिक व्यक्ति, एक राजनेता या एक राजा आध्यात्मिक संसार से अनभिज्ञ है। किन्तु कृष्ण, द्वारिकाधीष तथा योगेश्वर दोनों हैं।
और फिर कृष्ण द्वारा प्रयोग की गई नीतियाँ भी अतुलनीय हैं। किसी भी संत या पैगंबर ने कभी ऐसी नीति प्रयोग नहीं की। कृष्ण का जीवन एकांतवासी साधु का नहीं था। वह पूर्णतः कर्मठता से युक्त था। प्रत्येक क्षण घटनाओं से युक्त था, फिर भी सभी घटनाओं से निर्लिप्त। कृष्ण ने दिखाया कि वास्तव में जीवन आनंद है, उत्सव है। केवल कोई कृष्ण ही युद्ध स्थल पर ज्ञान दे सकता है, भोजन, गुण, भक्ति तथा आत्म ज्ञान की बात कर सकता है और केवल अर्जुन ही उसे समझ सकता है। कल्पना करो कोई हाथ में बंदूक लिए खड़ा हो तथा सत्व, रजस तथा तमस की समीक्षा कर रहा हो। केवल ब्रह्म में स्थित व्यक्ति ही ऐसा कर सकता है क्योंकि सभी घटनाओं पर उसका नियंत्रण है, या वह सभी घटनाओं के परे है ।
कृष्ण का ज्ञान हमारे समय में बहुत प्रासंगिक है। यह तुम्हें पूरी तरह से पदार्थ में लिप्त होने से रोकता है तथा साथ ही पूर्णतः उससे विमुख भी नहीं करता। यह तुम्हारे जीवन में नई ऊर्जा भर देता है। एक थके हुए तनावयुक्त व्यक्तित्व को अधिक केंद्रित तथा सक्रिय व्यक्तित्व बना देता है। कृष्ण हमें कुशलता युक्त भक्ति का ज्ञान देते हैं। अधिकतर कुशल व्यक्तियों में संवेदनशीलता तथा भक्ति का आभाव होता है तथा सरल तथा श्रद्धावान व्यक्तियों के कार्यों में कुशलता की कमी होती है। कृष्ण के व्यक्तित्व में श्रद्धा तथा कार्यकुशलता के इन विपरीत मूल्यों का श्रेष्ठ संयोजन है। गोकुलाष्टमी उत्सव मनाने का अर्थ है पूर्णतः विपरीत किन्तु एक दुसरे के अनुकूल गुणों को आत्मसाध करना तथा उन्हें जीना।
कृष्ण का अर्थ है सबसे आकर्षक- आत्म या अस्तित्व। सभी का आत्म कृष्ण है तथा जब हमारे व्यक्तित्व से हमारा सच्चा स्वभाव प्रकट होता है तब, कुशलता तथा संपन्नता स्वयं आने लगती हैं। जैसा कि कृष्ण ने गीता में कहा, वह समर्थ में सामर्थ्य हैं, ज्ञानी में ज्ञान, सुन्दर में सुंदरता तथा गंभीर में गांभीर्य हैं। वह सभी जीवों की जीवन ऊर्जा हैं। और जन्माष्टमी वह दिन है जब आप कृष्ण के उस विराट स्वरूप को अपनी चेतना में फ़िर से जागृत करते हैं। आपने सच्चे स्वभाव से अपना जीवन जीना ही कृष्ण के जन्म का वास्तविक रहस्य है।
इस प्रकार जन्माष्टमी मनाने का सबसे सार्थक तरीका है यह जानना कि आपकी दो भूमिकाएँ हैं- राष्ट्र का ज़िम्मेदार नागरिक होना तथा साथ ही यह समझना कि आप सभी घटनाओं से परे हैं- निरंजन ब्रह्म। जन्माष्टमी मनाने का वस्तविक तात्पर्य है अपने जीवन में थोड़ा सा अवधूत तथा थोड़ी सी क्रियाशीलता का समावेश करना ।
श्री श्री रविशंकर, आर्ट ऑफ लिविंग