नागपंचमी: आज नागदेवता की पूजा करने से दूर होंगी बाधाएं, शुभ मुहूर्त में करें पूजा
महादेव के अत्यंत प्रिय नागदेवता का पर्व नागपंचमी आज मनाया जा रहा है। इस मौके पर भक्त नागदेवता को दूध पिलाकर जीवन में कल्याण की अराधना करेंगे। कुंडली में कालसर्प दोष हो तो उसका निवारण सिद्ध योग में...
महादेव के अत्यंत प्रिय नागदेवता का पर्व नागपंचमी आज मनाया जा रहा है। इस मौके पर भक्त नागदेवता को दूध पिलाकर जीवन में कल्याण की अराधना करेंगे। कुंडली में कालसर्प दोष हो तो उसका निवारण सिद्ध योग में कराना चाहिए। बालाजी ज्योतिष संस्थान के पं. राजीव शर्मा के मुताबिक, अग्नि पुराण में लगभग 80 प्रकार के नाग कुलों का वर्णन मिलता है, जिसमें अनन्त, वासुकी, पदम, महापध, तक्षक, कुलिक, और शंखपाल यह प्रमुख माने गये हैं। स्कन्दपुराण, भविष्यपुराण तथा कूर्मपुराण में भी इनका उल्लेख मिलता है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार राहू के जन्म नक्षत्र 'भरणी के देवता काल हैं एवं केतु के जन्म नक्षत्र अश्लेषा के देवता सर्प हैं। अत: राहू-केतु के जन्म नक्षत्र देवताओं के नामों को जोड़कर कालसर्प योग कहा जाता है। राशि चक्र में 12 राशियां हैं, जन्म पत्रिका में 12 भाव हैं एवं 12 लग्न हैं। इस तरह कुल 144+144 = 288 कालसर्प योग घटित होते हैं।
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नागपंचमी के सिद्घ मुहुर्त प्रात: 7:01 बजे के बाद 10:30 से अपरान्ह 3:00 बजे तक चर, लाभ, अमृत के चौघड़िये में कालसर्प शांति कराना अति उत्तम रहेगा। वर्ष के मध्य में कालसर्प योग जिस समय बने उस समय अनुष्ठान भी सर्वश्रेष्ठ रहता है। गोचर में कालसर्प योग 29 अगस्त को प्रात: 5:30 बजे से 4 सितम्बर की रात 12 बजे तक, 17 सितम्बर प्रात: 6 बजे से 2 अक्टूबर प्रात: 8:45 बजे तक, 14 अक्टूबर प्रात: 6:55 बजे से 29 अक्टूबर सांय 6बजे तक बन रहा है। 10 नवम्बर रात्रि 12:30 बजे से 25 नवम्बर रात्रि 2 बजे तक, 8 दिसम्बर प्रात: 11:30 बजे से 23 दिसम्बर प्रात: 8:30 बजे तक एवं 4 जनवरी 2018 सांय 6:50 बजे से 19 जनवरी प्रात: 4:15 बजे तक उपरोक्त समय में भी कालसर्प शांति कराना उत्तम रहेगा।
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कालसर्प योग यज्ञ का आरम्भ या समाप्ति पंचमी, अष्टमी, दशमी या चुतुर्दशी तिथिवार चाहें जो भी हो, भरणी, आद्र्रा, पुनर्वसु, पुष्य, आश्लेषा, उत्तराषाढ़ा, अभिजित एवं श्रवण नक्षत्र श्रेष्ठ माने जाते हैं। परन्तु जातक की राशि से ग्रह गणना का विचार करना परम आवश्यक होता है। कालसर्प योग शांति विधानप्रात:काल स्नान आदि से निवृत्त होकर पूजा के स्थान पर कुश का आसन स्थापित करके सर्व प्रथम हाथ में जल लेकर अपने ऊपर व पूजन सामग्री पर छिड़कें, फिर संकल्प लेकर कि मैं कालसर्प दोष शांति हेतु यह पूजा कर रहा हूँ। अत: मेरे सभी कष्टों का निवारण कर मुझे कालसर्प दोष से मुक्त करें। तत्पश्चात् अपने सामने चौकी पर एक कलश स्थापित कर पूजा आरम्भ करें।
कलश पर एक पात्र में सर्प-सर्पनी का यंत्र एवं कालसर्प यंत्र स्थापित करें, साथ ही कलश पर तीन तांबे के सिक्के एवं तीन कौड़ियां सर्प-सर्पनी के जोड़े के साथ रखें, उस पर केसर का तिलक लगायें, अक्षत चढ़ायें, पुष्प चढ़ायें तथा काले तिल, चावल व उड़द का पका कर शक्कर मिश्रित कर उसका भोग लगायें, फिर घी का दीपक जला कर निम्न मंत्र का उच्चारण करें -ऊँ नमोस्तु सर्पेभ्यो ये के च पृथिवीमनु ये अंतरिक्षे ये दिवितेभ्य: सर्पेभ्यो नम: स्वाहाराहु का मंत्र- ऊँ भ्रां भ्रीं भ्रौं स: राहवे नम:।
गणपति पूजन करें, नवग्रह पूजन करें, कलश पर रखीं समस्त नाग-नागिन की प्रतिमा का पूजन करें व रूद्राक्ष माला से उपरोक्त कालसर्प शांति मंत्र अथवा राहू के मंत्र का उच्चारण एक माला जाप करें। उसके पश्चात् कलश में रखा जल शिवलिंग पर किसी मंदिर में चढ़ा दें, प्रसाद नंदी (बैल) को खिला दें, दान-दक्षिणा व नये वस्त्र ब्राह्मणों को दान करें। कालसर्प दोेष वाले जातक को इस दिन व्रत अवश्य करना चाहिए।