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मुंडेश्वरी देवी: दुनिया का सबसे प्राचीन मंदिर, बकरे की होती है पूजा

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लाइव हिन्दुस्तान टीमTue, 28 Mar 2017 07:46 PM

 

बिहार के कैमूर जिले में स्थित मां मुंडेश्वरी का मंदिर भारत के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक है। माना तो यह भी जाता है कि यह ऐसा सबसे पुराना मंदिर है, जिसमें अब तक पूजा-अर्चना होती चली आ रही है। यह मंदिर शक्ति और शिव को समर्पित है। यह मंदिर बिहार के कैमूर जिले के भगवानपुर अंचल में कैमूर पर्वतश्रेणी की पवरा पहाड़ी पर 608 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। यहां से प्राप्त शिलालेख के अनुसार माना जाता है कि उदय सेन नामक क्षत्रप के शासन काल में इसका निर्माण हुआ।

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108 ईस्वी में हुआ था निर्माण

माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण दूसरी शताब्दी (108 ईस्वी) में हुआ था। हालांकि इसके निर्माण को लेकर कई मत हैं। मंदिर में लगे भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (एएसआई) के एक सूचनापट्ट से यह पता चलता है कि यह मंदिर 635 ईसवी से पूर्व अस्तित्व में था। एक बात तो तय है कि यह मंदिर करीब डेढ़ हजार साल पुराना तो है ही। मंदिर परिसर में मौजूद शिलालेखों से इसकी ऐतिहासिकता सिद्ध होती है। यह मंदिर अष्टकोणीय है। मंदिर का अष्टाकार गर्भगृह निर्माण से अब तक कायम है। यह मंदिर ‘भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण’ द्वारा संरक्षित है। मंदिर को 2007 में बिहार राज्य धार्मिक न्यास परिषद ने अधिगृहित कर लिया था।

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कनिंघम ने भी इस मंदिर का किया है उल्लेख

इस मंदिर का उल्लेख प्रसिद्ध पुरातत्वविद कनिंघम ने भी अपनी पुस्तक में किया है। इस मंदिर का पता तब चला, जब कुछ गड़रिये पहाड़ी के ऊपर गए और मंदिर के स्वरूप को देखा। यहां से प्राप्त शिलालेख में वर्णित तथ्यों के आधार पर कुछ लोगों ने यह अनुमान लगाया कि यह आरंभ में वैष्णव मंदिर रहा होगा, जो बाद में शैव मंदिर हो गया। फिर शाक्त विचारधारा के प्रभाव से शक्तिपीठ में बदल गया। मंदिर में स्थापित शिवलिंग दुर्लभ है। दुर्गा का वैष्णवी रूप ही मां मुंडेश्वरी के रूप में यहां प्रतिष्ठित है।

अगली स्लाइड में पढ़ें क्यों नाम पड़ा मुंडेश्वरी धाम

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मुंडेश्वरी देवी: दुनिया का सबसे प्राचीन मंदिर, बकरे की होती है पूजा

 

क्यों नाम पड़ा मुंडेश्वरी धाम

मुंडेश्वरी की प्रतिमा वाराही देवी की प्रतिमा है, क्योंकि इनका वाहन महिष (भैंसा) है। कहते हैं कि दैत्यों चंड व मुंड के नाश के लिए जब देवी उद्यत हुई थीं तो चंड के विनाश के बाद मुंड युद्ध करते हुए इसी पहाड़ी में छिप गया था और यहीं पर माता ने उसका वध किया था। इसीलिए यह मुंडेश्वरी माता के नाम से जानी जाती हैं। मंदिर में बकरे की बलि नहीं दी जाती। यहां बकरे को देवी के सामने लाया जाता है, जिस पर पुरोहित मंत्र वाले चावल छिड़कता है, जिससे वह बेहोश हो जाता है। फिर उसे बाहर छोड़ दिया जाता है।

यहां पहाड़ी के शिखर पर स्थित मंदिर तक पहुंचने के लिए पहाड़ को काट कर सीढ़ियां व रेलिंग युक्त सड़क बनाई गई है। सड़क से कार, जीप या बाइक से पहाड़ के ऊपर मंदिर में जा सकते हैं। मुंडेश्वरी धाम में पूरे वर्ष श्रद्धालु आते रहते हैं, पर नवरात्रि में श्रद्धालुओं की संख्या काफी बढ़ जाती है। नवरात्रि में मेला भी लगता है। शिवरात्रि व रामनवमी पर भी काफी चहल-पहल रहती है।

कैसे पहुंचें

मुंडेश्वरी धाम का सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन भभुआ रोड (मोहनिया) है, जो यहां से करीब 25 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। यह मुगलसराय-गया रेलखंड (ग्रैंड कोड लाइन) पर है। मोहनिया से सड़क मार्ग से मुंडेश्वरी धाम पहुंच सकते हैं।

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मुंडेश्वरी देवी: दुनिया का सबसे प्राचीन मंदिर, बकरे की होती है पूजा