भैरव के भक्तों से दूर रहते हैं भूत, पिशाच और काल
हर माह कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कालाष्टमी कहा जाता है। इस दिन कालभैरव की पूजा की जाती है, जिन्हें शिवजी का अवतार माना जाता है। इसे भैरवाष्टमी नाम से भी जाना जाता है। इस दिन मां दुर्गा की पूजा और...
हर माह कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कालाष्टमी कहा जाता है। इस दिन कालभैरव की पूजा की जाती है, जिन्हें शिवजी का अवतार माना जाता है। इसे भैरवाष्टमी नाम से भी जाना जाता है। इस दिन मां दुर्गा की पूजा और व्रत का भी विधान माना गया है।
भैरव शब्द में भगवान ब्रह्मा, भगवान विष्णु और भगवान महेश की शक्तियां समाहित मानी जाती हैं। इस दिन शक्ति रात में माता पार्वती और भगवान शिव की कथा सुनकर जागरण करना चाहिए। कालभैरव की सवारी श्वान है, अत: इस दिन श्वान को भोजन कराना शुभ माना जाता है। मध्य रात्रि में शंख, नगाड़ा, घंटा बजाकर भैरव जी की आरती करनी चाहिए। श्वान पर सवार भैरव जी के हाथ में दंड होने के कारण वह ‘दंडाधिपति कहे जाते हैं।
विधि विधान से भैरव जी की उपासना करने से भूत, पिशाच एवं काल भी दूर रहते हैं। कोई रोग स्पर्श तक नहीं कर पाता। इस दिन प्रात: काल पवित्र नदी या सरोवर में स्नान कर पितरों का श्राद्ध व तर्पण करना चाहिए। कालाष्टमी के दिन काल भैरव के साथ देवी कालिका की पूजा-अर्चना एवं व्रत का भी विधान है।
इस आलेख में दी गई जानकारियां धार्मिक आस्थाओं और लौकिक मान्यताओं पर आधारित हैं, जिसे मात्र सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किया गया है।