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स्वास्थ्य और ऐश्वर्र्य का पर्व

शास्त्रों में कहा गया है कि चूंकि समुद्र मंथन की प्रक्रिया में धन्वंतरि अमृत कलश लेकर धनतेरस के दिन ही प्रकट हुए थे, इसलिए इस दिन कोई पात्र खरीदा जाए तो पात्र की क्षमता से तेरह गुना धन और ऐश्वर्य...

स्वास्थ्य और ऐश्वर्र्य का पर्व
लाइव हिन्दुस्तान टीमTue, 25 Oct 2016 01:05 AM
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शास्त्रों में कहा गया है कि चूंकि समुद्र मंथन की प्रक्रिया में धन्वंतरि अमृत कलश लेकर धनतेरस के दिन ही प्रकट हुए थे, इसलिए इस दिन कोई पात्र खरीदा जाए तो पात्र की क्षमता से तेरह गुना धन और ऐश्वर्य प्राप्त होने के योग बनते हैं। लक्ष्मी जी की आराधना के ठीक दो दिन पहले धन्वंतरि की आराधना का महत्व इसीलिए भी ज्यादा है, क्योंकि धन्वंतरि देवों के चिकित्सक हैं। लक्ष्मी जी से ऐश्वर्य की प्रार्थना करने से पूर्व यदि उत्तम स्वास्थ्य भी प्राप्त कर लिया जाए तो उस ऐश्वर्य का उपभोग किया जा सकेगा।

इस दिन किया जाने वाला यम दीप दान मनुष्य के ऐश्वर्य और उसके कर्मों का प्रकृति में सीधा संबंध प्रदर्शित करता है। यम, न्यायाधिपति शनि के भ्राता हैं। शनि कर्म की प्रकृति के आधार पर ही मनुष्य के तत्कालीन और दीर्घकालीन भाग्य को निर्धारित करते हैं। यम दीप दान प्रदोष काल में करना चाहिए। इस वर्ष धनतेरस पर चंद्र प्रधान हस्त नक्षत्र और अमृत योग है। प्रात:कालीन गोचर में शुक्र का लग्नेश होकर धनभाव में होना लाभदायक है। भाग्येश बुध लग्न में सूर्य युक्त होकर बुधादित्य योग का निर्माण कर रहा है। स्पष्ट संकेत है कि खरीदे गए सामान न केवल अक्षयता को प्राप्त होंगे, बल्कि पारिवारिक सामंजस्य भी बढ़ेगा। सायंकाल में भद्रा है, लेकिन कन्या राशि की भद्रा होने के कारण निष्प्रभावी है।

धन्वंतरि को भगवान विष्णु का अंश भी कहा गया है। इसीलिए धनतेरस के दिन प्रात:काल धन्वंतरि पूजन के पूर्व यदि विष्णु सहस्रनाम का पठन या श्रवण किया जाए तो पूजन का पूर्ण फल मिलेगा। आम की लकड़ी के पाटे पर हल्दी से स्वस्तिक बनाएं। स्वस्तिक के मध्य एक बड़ी पूजा सुपारी को गुलाब जल से स्वच्छ कर धन्वंतरि के रूप में स्थापित कर पूजन करें। चांदी के पात्र या किसी भी अन्य पात्र में चावल से बनी खीर का भोग लगाएं। तुलसी पत्र अर्पित करें। कपूर की आरती कर इस मंत्र से रोग नाश हेतु प्रार्थना करें-

‘सत्यं च येन निरतं रोगं विधूतं, अन्वेषित च सविधिं आरोग्यमस्य। गूढ़ं निगूढ़ं औषध्यरूपम् धन्वन्तरिं च सततं प्रणमामि नित्यं।।’

एक नारियल पर कुंकुम से स्वस्तिक बना कर उसी नारियल पर चावल व पुष्प रख रोग नाश और प्रगति के लिए इस मंत्र का यथाशक्ति जाप करें- ‘ऊं रं रुद्र रोगनाशाय धन्वन्तर्ये फट्।।’
 


 

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