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हर जीव की संतान की रक्षा का संदेश है अहोई

अहोई अष्टमी व्रत का संदेश क्या है?      स्वप्निल डागर, अलीगढ़, उत्तर प्रदेश कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष अष्टमी को अहोई अष्टमी (जिसे अहोई आठे भी कहते हैं) का व्रत किया जाता है, जो इस...

हर जीव की संतान की रक्षा का संदेश है अहोई
लाइव हिन्दुस्तान टीमMon, 17 Oct 2016 08:51 PM
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अहोई अष्टमी व्रत का संदेश क्या है?     
स्वप्निल डागर, अलीगढ़, उत्तर प्रदेश

कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष अष्टमी को अहोई अष्टमी (जिसे अहोई आठे भी कहते हैं) का व्रत किया जाता है, जो इस वर्ष 22 अक्टूबर को है। यह  व्रत हमें यह स्पष्ट संदेश देता है कि जब भी हम कोई कार्य करें तो उससे प्रकृति में मौजूद किसी भी तरह के प्राणी को हानि न हो। फिर चाहे वह कोई कीड़ा ही क्यों न हो। इस व्रत के माध्यम से संतान की अच्छी सेहत और लंबी आयु की कामना की जाती है। सनातन धर्म में सृष्टि में मौजूद हर स्थूल और सूक्ष्म जीव की रक्षा का विधान है। इस व्रत में सेई या साही से संबंधित कथा है। इस कथा में महिलाओं को यह समझाया गया है कि केवल अपनी संतान की ही रक्षा नहीं करो, बल्कि अन्य जीव-जंतुओं के बच्चों के जीवन की भी रक्षा करना आपका धर्म है।

इस व्रत की कथा है- एक साहूकार था। उसके सात लड़के थे। दिवाली में घर की लिपाई-पुताई के लिए उसकी पत्नी मिट्टी लेने गई। कुदाल से मिट्टी खोदते समय कुदाल वहीं मौजूद सेह के बच्चे को लग गई। सेह का बच्चा तत्काल मर गया। इस बच्चे की हत्या से साहूकार की पत्नी को बहुत दुख हुआ। शोक में डूबी, वह पश्चाताप करती हुई अपने घर लौट आई। कुछ दिनों बाद उसके बडे़ बेटे का निधन हो गया। फिर दूसरा, तीसरा और इसी प्रकार वर्ष बीतते उसके सभी बेटे मर गए। महिला ने दुखी होकर अपना पाप अन्य महिलाओं से बताया। बुजुर्ग महिलाओं ने उसको दिलासा देते हुए कहा कि यह बात बता कर तुमने जो पश्चाताप किया है, उससे तुम्हारा आधा पाप नष्ट हो गया है।

अष्टमी को भगवती माता की शरण लेकर सेह और सेह के बच्चों का चित्र बना कर उनकी आराधना करो और क्षमा-याचना करो। मां की कृपा से तुम्हारा पाप समाप्त जाएगा। साहूकार की पत्नी ने कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को उपवास व पूजा-याचना की। उसे फिर से संतान की प्राप्ति हुई। इस व्रत में उपवास करने वाली माताएं पूरे दिन निराहार रहती हैं। फिर शाम में घर की दीवार पर गेरू से अहोई माता का चित्र और साथ में सेई-साही के बच्चों की आकृति बनाई जाती है। वैसे अब इनके बने-बनाए चित्र भी मिलते हैं। कई जगह चांदी की सेही भी बनाई जाती है। इस व्रत में कलश स्थापना कर गणेश पूजा के बाद अहोई माता की  कथा सुनी जाती है। मीठा बना कर माता को भोग लगाया जाता है। व्रत तारा देखने के बाद तोड़ा जाता है। इसके साथ ही सास को उपहार देकर उनका आशीर्वाद जरूर लेना चाहिए।
 

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