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क्या वाकई आगे बढ़ रहे हैं आप

जोनेथन मीड, लेखक व ब्लॉगर। पेड टु एग्जिस्ट के संस्थापक। उनके अनुसार काम ही खुशी है। जिस विकास के पीछे हम निरंतर भागते रहते हैं, वो दरअसल वास्तविक विकास नहीं है। यह विकास महज समझदारी के वेश में...

क्या वाकई आगे बढ़ रहे हैं आप
लाइव हिन्दुस्तान टीमTue, 29 Nov 2016 09:00 PM
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जोनेथन मीड, लेखक व ब्लॉगर। पेड टु एग्जिस्ट के संस्थापक। उनके अनुसार काम ही खुशी है।


जिस विकास के पीछे हम निरंतर भागते रहते हैं, वो दरअसल वास्तविक विकास नहीं है। यह विकास महज समझदारी के वेश में ओढ़ा हुआ हमारा अहंकार  है। बहुत सोच-विचार कर मैं इसी निष्कर्ष पर पहुंचा हूं। अकसर जब मैं सोचता हूं कि मैं बढ़ रहा हूं, तब असल में, मैं खुद को बेहतर बना रहा होता हूं। असली और नकली विकास के बीच की यह रेखा बहुत धुंधली होती है। कई बार मुझे यकीन होता है कि मैं विकास कर रहा हूं। लेकिन जब मेरा ध्यान छल की एक अंतर्धारा पर जाता है तो मैं बेचैन हो जाता हूं। उस समय अपनी बेचैनी पर गौर करने पर लगता है कि मेरे प्रयास अधूरे थे। वो वास्तविक विकास से दूर थे। उसमें संपूर्ण बेहतरी का लक्ष्य था ही नहीं। मैं तो बस अपनी सोची हुई अदृश्य कमियों का हल करने की कोशिश कर रहा था। वह अयोग्यता, जो कि हमारे अहं द्वारा बनाया गया मिथक मात्र है, जिसका वास्तविक विकास से कोई लेना देना नहीं है।

हम संपूर्ण ही हैं और इसे साबित करने के लिए खोखली उपलब्धियों के पीछे भागने की कोई आवश्यकता नहीं है। वास्तविक विकास का मतलब किसी को ठीक करना नहीं, बल्कि उसका विस्तार करना है। जिस पल आप इस दिशा में सोचने लगते हैं तो पाते हैं कि आपने अप्रामाणिकता को निकाल फेंका है। आप पाते हैं कि आप उस विकास के लिए सब कुछ कर रहे हैं, जो बहुत मायने नहीं रखता, जो आपको संपूर्ण विकास की ओर नहीं ले जाता। झूठी तरक्की का बीज आपके मस्तिष्क के किसी अनछुए कोने में छुप जाता है और जब-तब अनचाहे रूप में सामने आ जाता है। 
मैंने अकसर अपने साथ ऐसा महसूस किया है कि...

- मैं कुछ नई आदतें अपनाने की कोशिश कर रहा हूं। मुझे लगता है ये आदतें मेरे विकास के लिए जरूरी हैं। पर वास्तव में मुझे उनमें कोई रुचि नहीं होती।  
- मैं कोई किताब पढ़ रहा हूं, पर मुझे उसमें कोई दिलचस्पी ही नहीं है। मैंने वो किताब सिर्फ इसलिए खरीदी थी, क्योंकि मुझे लगा कि उससे मेरी विषय पर पकड़ हो जाएगी। दूसरों में सम्मान बढ़ेगा। 
- मैं उस चीज को सीखने के लिए अपने को धकेल रहा हूं, जिसके लिए मैं बिल्कुल उत्साहित नहीं हूं। वैसा मैं केवल दूसरों की नजर में बेहतर बनने के लिए कर रहा होता हूं। 
- मैं अपनी ज्ञान की सीमा के विस्तार के लिए ऐसा संगीत सुन रहा हूं, जिसमें मेरी रुचि ही नहीं है।
- मैं मात्र इसलिए एक बिजनेस करता हूं, क्योंकि मुझे लगा कि वो एक अच्छा विचार होगा, पर बाद में पता चला कि मैं उस काम के लिए उत्साहित ही नहीं हूं। ये फेहरिस्त लगातार बढ़ती ही जाती है। और कई बार सोचने में ये सब बातें बड़ी मूर्खतापूर्ण लगती हैं। 

सुरक्षा और सुविधा का आकर्षण 
एक और बात, जो मैंने महसूस की, वो यह कि आप अकसर सोचते हैं कि आप आगे बढ़ रहे हैं, पर दरअसल उस समय आप खुद को धोखा दे रहे होते हैं। आपका एक कोना पूरी तरह आश्वस्त होता है। आपने एक तरीका बना लिया है, जो आपको सुरक्षित रखता है। कभी-कभी आप उस तरीके में थोड़ा सा बदलाव करते हैं, कुछ जोखिम लेते हैं, जो आपको अच्छा एहसास कराता है। आपको लगता है कि आप आगे बढ़ रहे हैं। पर सच यह है कि असली विकास करने के लिए अपनी सुविधाओं से बाहर निकलना होता है। अपने सुरक्षित घेरे की सीमाओं को तोड़ना होता है। हो सकता है कि इसके लिए आपको अपने बने बनाए तरीके में आमूलचूल बदलाव करना पड़े। पर सच में यही वह जगह होगी, जहां आपके लिए अनंत संभावनाएं छुपी होती हैं। 

खोखले विकास की लत ...
एक मंजिल से दूसरी मंजिल को पाने की चाहत झूठी है। यह मात्र बाहरी तलाश नहीं है। असली विकास है खुद में बदलाव लाना। इस बात को समझना कि आप संपूर्ण हैं, आप पहले से ही उतने शक्तिशाली हैं, जितना आपने कभी सोचा भी नहीं है। वास्तविक विकास है, उस शक्ति को सहेज कर रखना और बेबाकी से जीवन जीना। खोखली तरक्की में आप केवल ज्यादा से ज्यादा तमगे पाना चाहते हैं, जो हर समय आपको ‘सफल’ होने की अनुभूति कराते हैं। पर क्या आप सच में संतुष्ट हो पाते हैं? बनावटी विकास का सबसे पहला लक्षण ही है - सामाजिक स्वीकृति की दरकार। वास्तविक विकास में आपको किसी चीज का कोई फर्क नहीं पड़ता। उसे आपकी या दूसरों की स्वीकृति या अस्वीकृति की जरूरत नहीं है। यहां अहं के लिए जगह नहीं है।

संपूर्ण विकास की राह 
सही विकास अपने विस्तार की गति को नहीं मापता। वास्तविक विकास की राह में आप ठहराव को भी जगह देते हैं। आप जानते हैं कि कहां रुकना है और कहां सब छोड़कर आगे बढ़ना ही बेहतर है। संपूर्ण विकास जानता है कि उतार-चढ़ाव, फैलना और सीमित होना संसार का नियम है। वास्तविक विकास आपको उस स्थिरता की ओर ले जाता है, जिसका अंत नहीं होता।

यह वास्तविक विकास नहीं है
- सुधार (जब आप अनजाने ही चीजों को सुधार देते हैं। लेकिन उस बिन्दु से शुरू नहीं करते, जहां बदलाव करना जरूरी है)
- अहं को तुष्ट करने वाले लक्ष्यों की प्राप्ति 
- प्रसिद्ध होना। लोगों के बीच लोकप्रिय होना 
- उपलब्धियों का बढ़ना
- अधिकारों का दायरा बढ़ना 
- बहुत सी इच्छाएं होना
- दूसरों से आगे बढ़ना 
- ज्यादा पैसा कमाना (हालांकि इससे दूसरों में आपका कुछ महत्व बढ़ता है)


यह है खोखला विकास 
- कभी न खत्म होने वाली इच्छाओं की भूख
- खोखले लक्ष्यों के पीछे दौड़ना 
- बदलाव करने के लिए कुछ भी नया करना 
- हर चीज का मोल करना 
- भविष्य के लिए चीजें बटोरना 
- झूठे अहं को पोषित करना 
- सिर्फ भौतिक समृद्धि पर जोर देना

तीन नियम
1- जरूरत पड़ने पर जगह भी बदलनी पड़ती है। पर जहां जरूरत अपने को बदलने की हो, वहां केवल जगह बदलने से काम नहीं चलता। यह सही है कि जगह बदलना ज्यादा आसान है, पर इससे समस्या हल नहीं होती। पॉप सिंगर मैडोना कहती हैं,  ‘कोई फर्क नहीं पड़ता कि हम क्या हैं, कौन हैं, हमने क्या किया या फिर कहां से आए हैं। हम हमेशा बदल सकते हैं। खुद को पहले से बेहतर बना सकते हैं।’

2- समय को धन कहने वाले बहुत हैं, पर उसे धन मानकर खर्च करने वाले बहुत कम। एक-एक पैसा सोच कर खर्च करने वाले समय को बेहिसाब खर्च करते हैं। कुछ पैसा ही कमाते रह जाते हैं। मोटिवेशनल स्पीकर जिग जिगलर कहते हैं, ‘समय को सही खर्च करने का मतलब है, खर्च करने के लिए ज्यादा पैसा होना, ज्यादा बचत करना और छुट्टियों के लिए ढेर सारा समय।’

3- ना सुनना हमें अच्छा नहीं लगता। किसी का इनकार बर्दाश्त करना मुश्किल हो जाता है। क्या इसलिए कि हम खुद को बहुत बड़ा मानते हैं? या हमें लगता है कि हमारा ही रास्ता ठीक है? कहीं ये हमारी कमजोरी तो नहीं कि छोटी-छोटी  बातें अहं को चोट पहुंचाने लगती हैं? ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री विन्स्टन चर्चिल कहते हैं, ‘खड़े होकर अपने लिए आवाज उठाना साहस है। ये भी साहस है कि हम बैठें और दूसरों को सुनें।’

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