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रेत की कहानी 

एक उछलता हुआ झरना रेगिस्तान पहुंचा। उसे दिखाई दिया कि वह उसे पार नहीं कर सकेगा। बारीक रेत में उसका पानी तेजी से सूख रहा था। झरने ने स्वयं से कहा, ‘रेगिस्तान को पार करना मेरी नियति है। लेकिन मैं...

रेत की कहानी 
लाइव हिन्दुस्तान टीमTue, 06 Dec 2016 09:14 PM
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एक उछलता हुआ झरना रेगिस्तान पहुंचा। उसे दिखाई दिया कि वह उसे पार नहीं कर सकेगा। बारीक रेत में उसका पानी तेजी से सूख रहा था। झरने ने स्वयं से कहा, ‘रेगिस्तान को पार करना मेरी नियति है। लेकिन मैं इसे कर पाऊंगा, इसके आसार नहीं हैं।’ रेगिस्तान ने कहा, ‘हवा रेगिस्तान को पार करती है, तुम भी कर सकते हो।’ झरना बोला, ‘कितना ही जोर लगाऊं, मेरा पानी रेत में समा जाता है। थोड़ी दूर ही जा पाता हूं।’

‘हवा मेरे साथ जोर नहीं लगाती’, रेगिस्तान ने कहा। ‘लेकिन हवा उड़ सकती है, मैं उड़ नहीं सकता हूं’, झरना बोला। ‘तुम गलत तरीके से सोच रहे हो। अकेले उड़ने की कोशिश बेवकूफी है। हवा को तुम्हें ले जाने दो।’ झरने ने कहा कि वह अपनी निजता को खोना नहीं चाहता। उसकी हस्ती खो जाएगी। रेत ने समझाया कि इस तरह सोचना तर्क का एक भाग है, लेकिन सच से उसका कोई ताल्लुक नहीं है। हवा जल की नमी को आत्मसात कर लेती है। रेगिस्तान के पार ले जाती है। उसके बाद फिर बरसात बन कर दोबारा उसे नीचे ले आती है। झरना पूछता है, ‘यदि ऐसा है तो क्या मैं यही झरना रहूंगा, जो आज हूं।’

रेत ने कहा, ‘वैसे भी किसी सूरत में तुम यहीं नहीं रहोगे। तुम्हारे पास विकल्प ही क्या है? हवा तुम्हारे सार तत्व को, सूक्ष्म अंश को ले जाएगी। रेगिस्तान के पार, पहाड़ों में तुम फिर नदी बन जाओगे। उस वक्त लोग तुम्हें किसी और नाम से पुकारेंगे।  लेकिन भीतर गहरे में तुम जानोगे कि तुम वही हो।’ 

हवा का स्वागत करते हुए बाहों में समाकर झरना रेगिस्तान के पार चला गया। हवा उसे पर्वत की चोटी पर ले गई और फिर धीरे से, लेकिन दृढ़ता से जमीन पर गिरा दिया। झरना बोला, ‘अब मुझे मेरी वास्तविक अस्मिता का पता चला। फिर भी एक प्रश्न है- ‘मैं अपने आप को क्यों नहीं जान सका,  रेत को मुझे क्यों बताना पड़ा?’ तभी एक छोटी सी आवाज झरने के कान में गूंजी। रेत का एक कण बोल रहा था- सिर्फ रेत ही जान सकती है, क्योंकि उसने कई बार इसे घटते देखा है। वह नदी से लेकर पर्वत तक फैली हुई है। जीवन की सरिता अपनी यात्रा कैसे करेगी, इसका पूरा नक्शा रेत में बना होता है।
 

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