किससे करें मन की बात
हर किसी में यह हिम्मत नहीं होती कि अपनी सब बातों को अपने तक ही रख सकें। जो कोशिश करते भी हैं तो बड़ी संख्या उनकी होती है, जिनके लिए ऐसा करना इच्छा कम, मजबूरी अधिक होती है। अपना समझकर किसी के सामने जरा...
हर किसी में यह हिम्मत नहीं होती कि अपनी सब बातों को अपने तक ही रख सकें। जो कोशिश करते भी हैं तो बड़ी संख्या उनकी होती है, जिनके लिए ऐसा करना इच्छा कम, मजबूरी अधिक होती है। अपना समझकर किसी के सामने जरा सा मुंह खुला नहीं कि वह बात हर किसी की हो जाती है।
कितनी ही बार ये केवल एक मानवी इच्छा होती है। वह भावना, जो किसी के सामने बस खुद को जाहिर करना चाहती है, बगैर किसी से मदद या सहानुभूति की अपेक्षा रखे। यूं भी यह जरूरी नहीं होता कि जो आप दुख या गुस्से के क्षण में बोलते हैं या सोच रहे होते हैं, अंतिम व्यवहार भी वैसा ही करेंगे। पर गलत व्यक्ति के सामने निकली मन की बातें बतंगड़ बनने का आधार बन जाती हैं। फिर हम दुखी होते हैं और दूसरों पर विश्वास करने के लिए खुद को कोसते हैं।
खैर, जो भी हो, किसी से खुलकर बात न कर पाने की बेबसी तनाव व डिप्रेशन बन जाती है। हमारे पूरे व्यक्तित्व पर बुरा असर डालती है। मेटाफिजिसिस्ट तो यहां तक कहते हैं कि किसी से शेयरिंग न होना कई बार गर्दन, कमर और पीठ दर्द के रूप में भी सामने आता है।
क्यों नहीं मिलता कोई अपना
दोषी हम भी तो कम नहीं होते। किसी के मन को सुनने के लिए ठीकठाक समय और समझ हम भी तो विकसित नहीं कर पाते। बेवजह ही दूसरों पर शक करते रहते हैं।
द बोल्ड एंड ब्लूम की संस्थापक व मोटिवेशनल स्पीकर बेरी डेवनपोर्ट कहती हैं, ‘भावुक क्षणों में बताई गई दूसरों की बातों का मजाक उड़ाना या फिर जानते हुए भी गलत सलाह देना, लोगों को हमसे दूर करता है। जब हम दूसरों का विश्वास तोड़ते हैं तो फिर दूसरों पर विश्वास हो भी तो कैसे?
पकड़ें विवेक का हाथ
किस पर विश्वास करें? कौन सी बातें कहें? इस संबंध में साइकोलॉजिस्ट मार्शा लिन्हन ‘समझदार मन’ का सिद्धांत देती हैं। वह स्थिति, जब आप भावना के स्तर पर सचेत रहते हुए ठोस ढंग से अपनी बात कहते हैं। विवेक की वह स्थिति, जब आप अपने अनुभव को भी नहीं छुपाते और दूसरे पक्षों को भी समझने की कोशिश करते हैं। समझदार मन भावों को नजरअंदाज नहीं करता, पर खुद पर उन्हें हावी नहीं होने देता।
ताकि अफसोस न हो
- ऐसे लोगों के सामने खुद को जाहिर करने से बचें, जो बहुत तेजी से आपके नजदीक आने की कोशिश करते हैं। यह अच्छा स्वभाव ओढ़ा हुआ भी हो सकता है। पहले परखें।
- यह देखें कि उस व्यक्ति के साथ पहला अनुभव कैसा रहा है? वह आपको कैसी सलाह देता है?
- खुद से पूछें कि वह आपको कब से जानता है? आप उसे कितना जानते हैं? वह व्यक्ति अपने साथ वालों से किस तरह बात करता है?
- बहुत गुस्से या खुशी में आकर बातें न करें। कुछ समय एकांत में सोचें और फिर अपनी राय बनाएं।
- अपनी भावनाओं की जिम्मेदारी लें। खुद को स्वीकारें। दूसरों से ईमानदारी बरतें। कोई बुरा अनुभव है तो भी सब पर विश्वास करना न छोड़ें।