बल और साहस के लिए की जाती है श्री भादरिया लाठी की प्रार्थना
“राजस्थान” जिसके नाम में ही “राज” आता है। यहां के महाराणा प्रताप, पृथ्वीराज चौहान जैसे कई राजपूतों के वीरता के सैकड़ों किस्से इतिहास में मौजूद हैं। बहुत से विद्वानों का मानना...
“राजस्थान” जिसके नाम में ही “राज” आता है। यहां के महाराणा प्रताप, पृथ्वीराज चौहान जैसे कई राजपूतों के वीरता के सैकड़ों किस्से इतिहास में मौजूद हैं। बहुत से विद्वानों का मानना है कि राजपूती राजा और उसकी प्रजा अपने बल, साहस के लिए अपनी कुल देवी जी की प्रार्थना करते थे। उन्हीं कुल देवी जी के मंदिरों में से एक है श्री भादरिया जी का मंदिर, जो कि जैसलमेर से लगभग 60 किमी. पहले “श्री भादरिया लाठी” रेलवे स्टेशन से 13 किमी. दूर है।
यह मंदिर लगभग 1100 साल पुराना बताया जाता है, जिसे तब यहां के निवासियों ने बनाया था। बाद मे गज सिहं जी, जो 1820-1846 तक राजा रहे, उन्होनें इसका जीर्णोधार किया। मंदिर की कारीगरी नागर शैली की है, पर छत पर और मंदिरों की तरह शिखर का न होना इसे औरों से अलग बनाता है। कहा जाता है सामान्य सा लगने वाला यह मंदिर अंदर से बहुत मजबूत है। यह सामान्य स्थान से ऊपर एक टीले पर बना हुआ है।
मंदिर के प्रमुख पुजारी एनके शर्मा बताते है कि इन्हें हिंगलाज माता के अवतार के रूप में जाना जाता है। 1100 साल पहले नींव रखने के बाद माता के मंदिर (मूर्ति रखने के स्थान) को समय के साथ बदला जाता रहा है। माता कि कुल सात बहनें थीं, जिनके राजस्थान में या उसके आसपास मंदिर है। इनकी सबसे बड़ी बहन (तनोट माता) का मंदिर भी बहुत प्रसिद्ध है। इसके चमत्कार खुद फौजियों ने भारत पाक के दोनों युद्धों में देखे हैं। माता की अन्य बहनें (घंटियाली, कालेडूंगर, देगराय, तेभडेराय, नगणेची) भी चमत्कारों के लिए जानी जाती है। यहां पर लोग मुखयत: सुख, सर्मद्धी की आस के साथ या अपने रीति-रिवाज पूरे करने आते हैं।
मंदिर के बाहर दुकानदार बताते हैं कि गज सिहं जी के बाद यहां हरवंश सिंह निर्मल नाम के संत आए जिन्होंनें मंदिर के परिसर को सवांरने का सफल प्रयास किया। मंदिर में आने वाले कुछ भक्तों का कहना है कि संत हरवंश सिंह निर्मल के कारण मंदिर को नई इमारत और आने-जाने के लिए सुगम रास्ता जैसी कई सुविधा के साथ ही भोजनालय, स्नानघर जैसी मूलभूत सुविधाएं भी उपलब्ध कराई गई।
आसपास के लोग जो कि अपना खाली समय मंदिर में बिताना पसंद करते है कहते है कि वैसे तो यह मंदिर राजपूतों के रावलोत(रावल) वंश की कुलदेवी है पर मान्यता को जानकर और घूमने के मकसद से और लोग भी यहां आने लगे हैं। वहीं कुछ लोग मानते हैं कि जैसलमेर जैसी विख्यात जगह का पास होना भी एक प्रमुख कारण है।