VIDEO हिंदू नववर्ष शुरू: क्या जानते हैं विक्रम संवत की रोचक कहानी?
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भारतीय हिन्दू कैलेंडर विक्रम संवत बहुत ही प्राचीन संवत है। इस पंचांग में हर प्रकार के ग्रहों की गणना की गई है। विक्रम संवत' का प्रणेता सम्राट विक्रमादित्य को माना जाता है। कालिदास इस महाराजा के एक रत्न माने जाते थे। भारत में अन्य महापुरुषों के संवत उनके अनुयायियों द्वारा चलाया गया, लेकिन भारत का सर्वमान्य संवत 'विक्रम संवत' ही है।
आज से हिंदू नववर्ष शुरू: क्या आपको पता है विक्रम संवत की रोचक कहानी?
इस संवत के महीनों के नाम विदेशी संवतों की भांति देवता, मनुष्य या संख्यावाचक कृत्रिम नाम नहीं हैं। यही बात तिथि तथा अंश (दिनांक) के सम्बन्ध में भी है, वे भी सूर्य-चन्द्र की गति पर आश्रित हैं। बता दें कि यह संवत अपने अंग-उपांगों के साथ पूर्णत: वैज्ञानिक सत्य पर स्थित है।
हमारा राजकीय कैलेंडर ईसवी सन् से चलता है इसलिये नयी पीढ़ी तथा बड़े शहरों पले बढ़े लोगों में बहुत कम लोगों यह याद रहता है। भारतीय संस्कृति और धर्म में महत्वपूर्ण स्थान रखने वाला विक्रम संवत् देश के प्रत्येक समाज में परंपरागत ढंग मनाया जाता है। देश पर अंग्रेजों ने बहुत समय तक राज्य किया फिर उनका असर भारतीय समुदाय पर पड़ा और धीरे-धीरे उनकी संस्कृति, परिधान, खानपान तथा रहन सहन अपना लिया।
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सबसे पहले भारत ने समझा था तारों की परिभाषा
दुनिया में सबसे पहले तारों, ग्रहों, नक्षत्रों आदि को समझने का सफल प्रयास भारत में ही हुआ था। तारों, ग्रहों, नक्षत्रो, चांद, सूरज आदि की गति को समझने के बाद भारत के महान खगोल शास्त्रीयो ने भारतीय कलेंडर (विक्रम संवत) तैयार किया। इसके महत्व को उस समय सारी दुनिया ने समझा। लेकिन यह इतना अधिक व्यापक था कि आम आदमी इसे आसानी से नहीं समझ पाता था, खासकर पश्चिम जगत के अल्पज्ञानी तो बिल्कुल भी नहीं।
मार्च में शुरू होना था कैलेंडर
दुनिया का लगभग प्रत्येक कैलेण्डर सर्दी के बाद बसंत ऋतू से ही प्रारम्भ होता है, यहां तक की ईस्वी सन वाला कैलेण्डर (जो आजकल प्रचलन में है) वो भी मार्च से प्रारम्भ होना था। इस कलेंडर को बनाने में कोई नयी खगोलीय गणना करने के बजाये सीधे से भारतीय कैलेण्डर (विक्रम संवत) में से ही उठा लिया गया था।
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भारतीय कैलेंडर आने के 57 साल बाद आया आज का कैलेंडर
किसी भी विशेष दिन, त्यौहार आदि के बारे में जानकारी लेने के लिए पंडित के पास जाना पड़ता था। अलग-अलग देशों के सम्राट और खगोलशास्त्री भी अपने अपने हिसाब से कैलेण्डर बनाने का प्रयास करते रहे। इसके प्रचलन में आने के 57 वर्ष के बाद सम्राट आगस्तीन के समय में पश्चिमी कैलेण्डर (ईस्वी सन) विकसित हुआ। लेकिन उसमें कुछ भी नया खोजने के बजाए, भारतीय कैलेंडर को लेकर सीधा और आसान बनाने का प्रयास किया था।
पृथ्वी द्वारा 365/366 में होने वाली सूर्य की परिक्रमा को वर्ष और इस अवधि में चंद्रमा द्वारा पृथ्वी के लगभग 12 चक्कर को आधार मान कर कैलेण्डर तैयार किया और क्रम संख्या के आधार पर उनके नाम रख दिए गए।
पहले ये थे हिंदू कैलेंडर के नाम
1. - एकाम्बर ( 31 ) 2. - दुयीआम्बर (30) 3. - तिरियाम्बर (31) 4. - चौथाम्बर (30) 5.- पंचाम्बर (31) 6.- षष्ठम्बर (30) 7. - सेप्तम्बर (31) 8.- ओक्टाम्बर (30) 9.- नबम्बर (31) 10.- दिसंबर ( 30 ) 11.- ग्याराम्बर (31) 12.- बारम्बर (30 / 29 ), निर्धारित किया गया।
सेप्तम्बर में सप्त अर्थात सात, अक्तूबर में ओक्ट अर्थात आठ, नबम्बर में नव अर्थात नौ, दिसंबर में दस का उच्चारण महज इत्तेफाक नहीं है लेकिन फिर सम्राट आगस्तीन ने अपने जन्म माह का नाम अपने नाम पर आगस्त (षष्ठम्बर को बदलकर) और भूतपूर्व महान सम्राट जुलियस के नाम पर - जुलाई (पंचाम्बर) रख दिया।
इसी तरह कुछ अन्य महीनों के नाम भी बदल दिए गए। फिर वर्ष की शरुआत ईसा मसीह के जन्म के 6 दिन बाद (जन्म छठी) से प्रारम्भ माना गया। नाम भी बदल इस प्रकार कर दिए गए थे। जनवरी (31), फरबरी (30/29), मार्च (31), अप्रैल (30), मई (31), जून (30), जुलाई (31), अगस्त (30), सितम्बर (31), अक्टूबर (30), नवम्बर (31), दिसंबर ( 30) माना गया।
आगस्तीन ने बढ़ाया था अगस्त महीने का एक दिन
फिर अचानक सम्राट आगस्तीन को ये लगा कि - उसके नाम वाला महीना आगस्त छोटा (30 दिन) का हो गया है तो उसने जिद पकड़ ली कि - उसके नाम वाला महीना 31 दिन का होना चाहिए।
राजहठ को देखते हुए खगोल शास्त्रीयों ने जुलाई के बाद अगस्त को भी 31 दिन का कर दिया और उसके बाद वाले सेप्तम्बर (30), अक्तूबर (31), नबम्बर (30), दिसंबर ( 31) का कर दिया। एक दिन को एडजस्ट करने के लिए पहले से ही छोटे महीने फरवरी को और छोटा करके (28/29) कर दिया गया।
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