आत्मा और परमात्मा के संबंध की खोज है योग
नंदन विज्ञान (सौंदर्य विज्ञान) पर आधारित नांदनिक बोध (सौंदर्य का बोध) जब किसी प्रबुद्ध मनुष्य के संस्पर्श में आता है, तब उस मानस अनुभूति को 'मिस्टिसिज्म' कहा जाता है और जब यह मिस्टिसिज्म...
नंदन विज्ञान (सौंदर्य विज्ञान) पर आधारित नांदनिक बोध (सौंदर्य का बोध) जब किसी प्रबुद्ध मनुष्य के संस्पर्श में आता है, तब उस मानस अनुभूति को 'मिस्टिसिज्म' कहा जाता है और जब यह मिस्टिसिज्म मानवीय गरिमा के चरम स्तर पर पहुंचता है, तब उसे अध्यात्म कहा जाता है। मिस्टिसिज्म क्या है? मिस्टिसिज्म कभी न समाप्त होने वाला वह प्रयास है, जो असीम और ससीम के मध्य संपर्क का संधान करता है। यह आत्मा और परमात्मा के बीच संबंध सूत्रों को खोजने का अंतहीन प्रयास है। खुद और खुदा को जोड़ने का तरीका है। यही मिस्टिसिज्म है।
मनुष्य की आकांक्षाएं कभी भी सीमित वस्तुओं से संतुष्ट नहीं होतीं। संस्कृत में इसे कहा जाता है- 'नाल्पे सुखमस्ति भूमैव सुखम्'। मानवीय तृष्णा कभी भी सीमित से संतुष्ट नहीं हो सकती। तो, इस असीम की खोज के क्रम में मनुष्य सबसे पहले नंदन विज्ञान (सौंदर्य विज्ञान) के संपर्क में आया। सभी ऐसा नहीं कर सकते। लेकिन 'सौंदर्य का बोध' या नांदनिक आकर्षण का आस्वादन सभी मनुष्य कर सकते हैं। यह सभी मनुष्यों के अधिकार क्षेत्र में है। अनंत आनन्द की खोज में जब मनुष्य ने परमपुरुष की ओर चलना शुरू किया, तब वह अध्यात्म के संपर्क में आया।
आध्यात्मिकता जब ससीम के संपर्क में आती है, तब इसी के माध्यम से ससीम भी असीम के संपर्क में आता है। ससीम और असीम का यह मिलन ही 'योग' है। संस्कृत में योग का अर्थ है- जोड़ना। उदाहरण के लिए दो जोड़ दो बराबर चार। लेकिन रहस्यात्मक लक्ष्य प्राप्त करने वाले साधक के लिए, ब्रह्म संप्राप्ति के लक्ष्य को पाने वाले साधक के लिए 'योग' मात्र इस तरह का जोड़ नहीं है। यहां योग का अर्थ है 'एकीकरण'। किस तरह का 'एकीकरण'? चीनी और पानी के 'एकीकरण' जैसा। योग आध्यात्मिक साधना का व्यावहारिक पक्ष है, जिसका तात्पर्य आत्मा का परमात्मा के साथ मिल कर एकाकार होना है।
प्रस्तुति: आचार्य दिव्यचेतनानन्द