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मदर टेरेसा संतत्व दिवस (4 सितंबर) पर विशेष: तुम दीनन को रखवार

मदर टेरेसा को 4 सितंबर को 'संत' की उपाधि दी जाएगी। संतत्व की उपाधि ऐसा विधान है, जिसके द्वारा पोप यह घोषणा करते हैं कि वह व्यक्ति ईश्वर की कृपा प्राप्त करने के लिए सत्यनिष्ठा से जिया, वह...

मदर टेरेसा संतत्व दिवस (4 सितंबर) पर विशेष: तुम दीनन को रखवार
लाइव हिन्दुस्तान टीमMon, 29 Aug 2016 10:06 PM
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मदर टेरेसा को 4 सितंबर को 'संत' की उपाधि दी जाएगी। संतत्व की उपाधि ऐसा विधान है, जिसके द्वारा पोप यह घोषणा करते हैं कि वह व्यक्ति ईश्वर की कृपा प्राप्त करने के लिए सत्यनिष्ठा से जिया, वह स्वर्ग में ईश्वर के साथ है और सम्पूर्ण चर्च के लिए पूज्य है।

आइए मिलकर ईश्वर को इस सुंदर अवसर के लिए धन्यवाद दें, जिसमें हम सब मिलकर शांति के प्रसार-प्रचार का आनंद प्रगट कर सकते हैं। एक -दूसरे को प्रेम करने का आनंद और इस बात को स्वीकारने का आनंद कि गरीब से गरीब भी हमारे ही भाई-बहन हैं...

प्रभु यीशु आपसे प्यार करते हैं, मुझसे प्यार करते हैं। उन्होंने अपना जीवन हमें समर्पित किया और मानो यह कम था कि वे कहते भी रहे : वैसे ही प्रेम करो, जैसे मैंने तुमसे किया। हम प्रेम करें कैसे? प्रेम करो त्याग को प्रेम करके, क्योंकि उन्होंने अपना जीवन हमारे लिए त्याग दिया...।   
हमारे कल्याण के लिए मृत्यु को वरण करना उनके लिए काफी नहीं था, वे चाहते थे कि हम एक-दूसरे को प्रेम करें, इसीलिए उन्होेंने कहा था, 'साफ दिल वाले सौभाग्यशाली हैं, क्योंकि वे ईश के दर्शन कर लेंगे।'

और उन्होंने अपने कहे का अर्थ स्पष्ट करते हुए कहा था कि मृत्यु के पलों में हम सबके न्याय का आधार होगा कि हम गरीबों से कैसा व्यवहार करते थे, भूखों से, निर्वस्त्रों से, बेघरों से। और इसीलिए उन्होंने खुद को ही वैसा निर्धन, भूखा, निर्वस्त्र और बेघर बना लिया। रोटी नहीं, बल्कि प्रेम के लिए, वस्त्र से निर्वस्त्र नहीं, मानवीय गरिमा के लिए, घर से बेघर नहीं, भुला दिए जाने, प्रेम ना मिलने, देखरेख के अभाव, किसी के लिए कुछ ना होने के प्रति और मानवीय स्पर्श क्या होता है, किसी से प्यार मिलना क्या होता है, इसके प्रति। और वे कहते हैं, 'जो कुछ थोड़ा सा भी तुमने मेरे इन भाइयों के लिए किया, वह दरअसल मेरे लिए किया है।' प्रभु यीशु ने भी इस पर जोर दिया है, इसीलिए वे पृथ्वी पर आए, निर्धनों को अच्छी खबर सुनाने के लिए... हमारे निर्धन लोग महान लोग हैं, प्रेम के योग्य हैं, उन्हें हमारी दया या सहानुभूति नहीं चाहिए, उन्हें हमारा प्यार और अपनापन चाहिए। वे सम्मान चाहते हैं, चाहते हैं कि हम उनके साथ गरिमापूर्ण बरताव करें...।

निस्वार्थ प्रेम की शुरुआत घर से होती है और यह भी है कि जो सच्चा प्रेम करता है, वह कष्ट भी पाता है। कोलकाता में एक बच्चे ने सुना कि मदर टेरेसा के पास उनके बच्चों को देने के लिए चीनी नहीं है और एक चार साल के छोटे से हिंदु लड़के  ने घर जाकर अपने माता-पिता से कहा- मैं तीन दिन तक चीनी नहीं खाऊंगा और मैं अपनी चीनी मदर टेरेसा को दूंगा। एक छोटा बच्चा कितना त्याग कर सकता है।

तीन दिन के बाद वे उसे हमारे घर लाए, वह छोटा बच्चा, जो मेरा नाम भी ढंग से नहीं ले पा रहा था उसने जो प्रेम किया, तो अथाह। उसका प्रेम कष्ट पाने की सीमा तक गया और यही मैं आपके सामने लाना चाहती हूं। एक-दूसरे को कष्ट पाने तक की सीमा तक प्रेम करना। और ये ना भूलें कि संसार में कई पुरुष और महिलाएं उन चीजों से वंचित हैं, जो आपके पास हैं। और इसीलिए उन्हें कष्ट मिलने की स्थिति में भी प्रेम करें...।  
 (नोबेल पुरस्कार दिए जाने पर 10 दिसंबर 1979 में नॉर्वे के ओस्लो सिटी हॉल में मदर टेरेसा के भाषण के कुछ अंश)

 

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