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प्रभु की कृपा सर्वोपरि

एक गुरु जी थे, हमेशा ईश्वर के नाम का जाप किया करते थे। काफी बुजुर्ग भी हो गये थे, उनके कुछ शिष्य साथ मे ही पास के कमरे मे रहते थे। जब भी गुरु जी को शौच, स्नान आदि के लिये जाना होता था तो वे अपने...

प्रभु की कृपा सर्वोपरि
लाइव हिन्दुस्तान टीमSat, 08 Oct 2016 02:07 AM
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एक गुरु जी थे, हमेशा ईश्वर के नाम का जाप किया करते थे। काफी बुजुर्ग भी हो गये थे, उनके कुछ शिष्य साथ मे ही पास के कमरे मे रहते थे। जब भी गुरु जी को शौच, स्नान आदि के लिये जाना होता था तो वे अपने शिष्यों को आवाज लगाते थे। उनके शिष्य उन्हें सारा काम करवा देते थे। धीरे धीरे कुछ दिन बाद शिष्य दो तीन बार आवाज लगाने के बाद भी कभी आते कभी और भी देर से आते।

एक रात को निवृत्त होने के लिये जैसे ही गुरु जी ने आवाज लगाई तो तुरन्त एक बालक आया और बड़े ही कोमल स्पर्श के साथ गुरु जी को निवृत्त करवाकर बिस्तर पर लिटा दिया। अब यह रोज का नियम हो गया। एक दिन गुरु जी को शक हो जाता है कि, पहले तो शिष्य तीन-चार बार आवाज लगाने पर भी देर से आते थे लेकिन ये बालक तो आवाज लगाते ही दूसरे क्षण आ जाता है और बड़े कोमल स्पर्श से सब निवृत्त भी करवा देता है। एक दिन गुरु जी उस बालक का हाथ पकड़ लेते हैं और पूछते कि सच बता तू कौन है? 

दरअसल वो बालक के रूप में स्वयं ईश्वर थे, उन्होंने गुरु जी को स्वयं का वास्तविक रूप दिखाया। गुरु जी रोते हुये बोल, हे प्रभु- आप स्वयं मेरे निवृत्ती के कार्य कर रहे हैं। यदि मुझसे इतने प्रसन्न हैं तो मुक्ति ही दे देनी थी ना।
प्रभु बोले, कि जो आप भुगत रहे हैं वो आपके प्रारब्ध हैं। आप मेरे सच्चे साधक है, हर समय मेरा नाम जप करते हैं, इसलिये मैं आपके प्रारब्ध भी आपकी सच्ची साधना के कारण स्वयं कटवा रहा हूं। गुरु जी बोले कि क्या मेरे प्रारब्ध आपकी कृपा से भी बड़े हैं? क्या आपकी कृपा, मेरे प्रारब्ध नहीं काट सकती?

प्रभु ने कहा कि मेरी कृपा सर्वोपरि है, ये अवश्य आपके प्रारब्ध काट सकती है लेकिन फिर अगले जन्म मे आपको ये प्रारब्ध भुगतने फिर से आना होगा, यही कर्म नियम है। इसलिए आपके प्रारब्ध स्वयं अपने हाथों से कटवाकर इस जन्म-मरण से आपको मुक्ति देना चाहता हूं।

ईश्वर कहते है: प्रारब्ध तीन तरह के होते है। मन्द, तीव्र तथा तीव्रतम ।
मन्द प्रारब्ध मेरा नाम जपने से कट जाते है। तीव्र प्रारब्ध किसी सच्चे संत का संग करके श्रद्धा और विश्वास से मेरा नाम जपने पर कट जाते है, पर तीव्रतम प्रारब्ध भुगतने ही पड़ते है। लेकिन जो हर समय श्रद्धा और विश्वास से मुझे जपते हैं; उनके प्रारब्ध मैं स्वयं साथ रहकर कटवाता हूँ और तीव्रता का अहसास नहीं होने देता हूँ।

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