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PARENTING TIPS : क्या करेंगी अगर आपका बच्चा निराश हो

बच्चे हों या बड़े, निराशा का सामना हर किसी को करना पड़ता है। बच्चे को कैसे छुटपन से ही सिखाएं

Karunaहिन्दुस्तान फीचर टीम ,नई दिल्ली Fri, 03 Nov 2017 04:22 PM

एेसे सिखाएं निराशा से उबरना

एेसे सिखाएं निराशा से उबरना1 / 3

करण आज फिर रोता हुआ आया है। कह रहा है कि दोबारा खेलने नहीं जाएगा। पर क्यों? आपके इस सवाल पर उसका जवाब बहुत आम-सा था,  ‘सारे दोस्त कहते हैं कि मुझे खेलना नहीं आता है।’ ‘अरे तुम तो अच्छा खेल लेते हो’ शायद आप यही जवाब देतीं। पर, विशेषज्ञों की मानें तो इस स्थिति में जवाब ये नहीं होना चाहिए। जवाब होना चाहिए,‘तो उनसे पूछो न क्या कमी है और बात को खत्म करो। तुम्हारा खेल भी अच्छा हो जाएगा और कोई कुछ कह ही नहीं पाएगा।’ आपके इस जवाब से बच्चे को निराशा से बाहर आने का रास्ता नजर आने लगेगा। वह समझ पाएगा कि ऐसे दबावों की स्थिति में उसकी सोच क्या होनी चाहिए। परिणाम कैसा भी हो, खुद को सुधारते रहने में ही समझदारी है। बच्चों का निराशा से पीछा छुड़ाना है तो ये तरीके भी काम आएंगे:  

इंतजार करना सिखाएं
बच्चे को मनमाफिक परिणाम नहीं मिलते तो वे निराश हो जाते हैं। ‘अगली बार सब अच्छा होगा’ वाला दिलासा उन पर काम नहीं करता। वो रोना चाहते हैं, हारना चाहते हैं पर दोबारा उठ कर उसी जज्बे से काम नहीं करना चाहते हैं। पर, ऐसे वक्त में उन्हें अच्छे परिणाम का इंतजार करना सिखाना होगा। उन्हें समझाना होगा कि ‘अगली बार सब अच्छा होगा’ और इसके लिए इंतजार करने में समझदारी है। क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ. आराधना गुप्ता कहती हैं, ‘बच्चे को एक्सरसाइज करने को कहें, जिससे उसकी सहनशक्ति बढ़े। उनमें सुनने और सहने की ताकत बढ़ेगी। कोशिश करें कि बच्चा ग्रुप में जरूर खेले। इससे बच्चे में दूसरों की बात सुनने का धैर्य भी पनपेगा। ग्रुप में खेलने पर खुद को अस्वीकार किए जाने का अनुभव भी उसे होगा और दूसरे भी सही हो सकते हैं, की सोच भी बच्चे को समझ आएगी। इस तरह की चीजें बच्चे को निराशा से सामना करने में मदद करती हैं।’ 

मन रहे शांत

मन रहे शांत2 / 3

बच्चे का मन शांत रहेगा तो वह निराशा से उबरने और आगे बढ़ने के लिए खुद को बेहतर  तरीके से तैयार कर पाएगा। इसके लिए आपको बच्चे का भरपूर साथ देना होगा। एक हार से दुनिया खत्म नहीं हो जाती वाली बात बच्चे को समझाने के लिए कुछ क्रिएटिव तरीके अपनाए जा सकते हैं। साथ में बच्चे को उसकी खूबियों से मिलाना भी उसके मन को शांत रखते हुए मेहनत करने के लिए उसे तैयार करता है। डॉ. आराधना उदाहरण देती हैं, ‘वैसे तो बच्चे की मदद के लिए हमेशा तैयार नहीं रहना चाहिए। पर, दिक्कत ज्यादा है तो उसकी मदद के लिए किसी दोस्त या हमउम्र को सामने पेश करें। ये लोग बच्चे का हर जगह ध्यान रखेंगे। बच्चे को लगेगा कि कोई न कोई उनका साथ हमेशा ही देता है। इसके अलावा बच्चे को उसकी पसंद का कोई रचनात्मक काम करने के लिए भी प्रेरित किया जा सकता है।’

गलती पर बात है जरूरी
बच्चे ने अभी हार का सामना किया है। उसको लग रहा है कि अब वह कभी जीवन में कुछ नहीं कर पाएगा। ऐसे में जिन परिस्थितियों में उसे हार मिली  है, उसके बारे में उससे बात करें। इस दौरान चर्चा कमियों पर हो तो बच्चे के लिए ज्यादा फायदेमंद होगा। बातचीत में वो हिस्सा भी रखें, जहां बच्चा बेहतर  प्रदर्शन करने के लिए सहज महसूस नहीं कर रहा था, ताकि वह उन परिस्थितियों से भी पार पाने को खुद को तैयार कर सके। डॉ. आराधना ने अपना एक अनुभव साझा करते हुए बताया, ‘एक बच्चे को बोलने में दिक्कत थी। वह लोगों के सामने बोलने में घबराता था। वह प्रतियोगिताओं में हार जाता था। माता-पिता ने विशेषज्ञों से बात की। तब मामला सामने आया कि उसे पब्लिक फोबिया है। कोशिशों का ही नतीजा है कि वह अब वाद-विवाद प्रतियोगिताओं आदि में अव्वल आता है।’ 

अगर कहे कि मैं अच्छा बच्चा नहीं हूं

अगर कहे कि मैं अच्छा बच्चा नहीं हूं3 / 3

बच्चा इतना निराश है कि उसे खुद में कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा। वह खुद के लिए कह रहा है ‘मैं गंदा बच्चा हूं।’ इस स्थिति में ज्यादातर माता-पिता बोलते हैं कि नहीं ऐसा नहीं है। जबकि डॉ. आराधना कहती हैं, ‘इस वक्त बच्चे से सहानुभूति दिखाने की बजाय उसकी बात को गलत साबित करने की कोशिश करें। बच्चे से कहें, तुम्हें क्यों लगता है कि तुम गंदे बच्चे हो? इससे बच्चा बात की गहराई में जाकर खुद को समझेगा। उससे इस विषय में बात भी करें: अच्छा ये खराबी है तो ये तो यूं ठीक हो जाएगा। क्यों खुद को खराब मानते हो बताओ?’