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बढ़ते अपराध को रोकने के लिए क्या सही है आपकी भूमिका?

हर दिन महिलाओं से जुड़े अपराधों के नए मामले सामने आ रहे हैं। कल रात ही ग्रेटर नोएडा में चार महिला के साथ गैंग रेप की घटना हुई है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2011 से...

बढ़ते अपराध को रोकने के लिए क्या सही है आपकी भूमिका?
हिन्दुस्तान फीचर टीम,नई दिल्लीFri, 26 May 2017 01:58 PM
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हर दिन महिलाओं से जुड़े अपराधों के नए मामले सामने आ रहे हैं। कल रात ही ग्रेटर नोएडा में चार महिला के साथ गैंग रेप की घटना हुई है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2011 से 2015 के बीच महिलाओं के विरुद्ध अपराध 41.7 प्रतिशत से बढ़कर 53.9 प्रतिशत तक पहुंच गए हैं। नवजात बच्चियों से लेकर 80 साल की वृद्ध महिला तक यौन हिंसा की शिकार हो रही हैं। सुबह की शुरुआत महिला अपराध से जुड़ी एक नई खबर के साथ होना अब आम हो चुका है।
पर, जब आप कोई ऐसी खबर पढ़ती हैं, तो फेसबुक या दूसरे सोशल साइट्स पर अपना विरोध जताने, कमेंट करने या अपनी जैसी सोच वाली पोस्ट को शेयर करने के अलावा क्या कुछ और करती हैं? सामाजिक कार्यकर्ता शीतल वर्मा कहती  हैं, ‘घर के भीतर से लेकर घर के बाहर तक महिलाओं को आज भी तरह-तरह के अपराधों का सामना करना पड़ता है। हालांकि कानून अब हमारे साथ पहले की तुलना में थोड़ी ज्यादा मजबूती से खड़ा है, फिर भी ज्यादातर मामलों में महिलाएं व परिवार के लोग चुप्पी साध लेते हैं। ऐसे में बहुत जरूरी है कि घटना हो जाने के बाद मोमबत्तियां जलाकर प्रदर्शन व विरोध करने के बजाय सामाजिक स्तर पर महिलाओं के प्रति आम विचारधारा में बदलाव लाने की कोशिश की जाए,ताकि समस्या का जड़ से समाधान संभव हो सके।’

परिवार से खुलकर बात करें
हमारे देश में महिलाओं के साथ होने वाले बलात्कार व अन्य अपराधों के 90 प्रतिशत मामलों में अन्य कोई नहीं, बल्कि परिवार के सदस्य, रिश्तेदार, पड़ोसी आदि ही शामिल होते हैं। यही वजह है कि सामाजिक प्रतिष्ठा के नाम पर ज्यादातर मामले दर्ज ही नहीं हो पाते हैं। महिलाओं को समान दर्जा और सुरक्षित माहौल देने के लिए जरूरी है कि छोटी उम्र से ही लड़का हो या लड़की उनके साथ एक जैसा व्यवहार किया जाए। नियम व कायदे-कानून दोनों के लिए बराबर बनाए जाएं। यदि किसी महिला के साथ कोई घटना होती है तो परिवार को उसका साथ देना चाहिए ताकि वह खुलकर अपनी समस्या को उनके सामने रख सकें।

समझें चुटकुलों का मनोविज्ञान
अधिकांश लोग दोस्तों व परिवार के सदस्योंं के साथ तमाम तरह के लिंग भेद वाले व अश्लील चुटकुले व संदेश साझा करते रहते हैं। भले ही आप उसे पढ़कर एक हल्की मुस्कान के साथ आगे फॉरवर्ड कर देती हैं, लेकिन इस तरह के चुटकुले लोगों की सोच व मनोदशा को प्रभावित करते हैं और महिलाओं के प्रति अपराध में एक बड़ा कारक बनते हैं। सोशल साइट्स का प्रयोग अपराध की प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने वाले मैसेज साझा करने के लिए करें न कि बढ़ान के लिए।

सही समाधान की मांग करें
नारे, कफ्र्यू, धरना, दंगे-फसाद आदि से समस्या का समाधान संभव नहीं हो सकता। यह सब करने की बजाय सही उपाय जैसे कि सुरक्षित यातायात के साधन, गली-मोहल्ले व सड़कों पर पर्याप्त रोशनी, कोर्ट में मामलों का शीघ्र फैसला, लोगों में नैतिक कर्तव्य का बोध तथा पीड़िता के साथ संवेदनशील रूप से व्यवहार आदि पर अपनी सारी ऊर्जा लगाएं। आपकी छोटी कोशिशें भी समाज में बदलाव लाने में मददगार साबित होंगी।

बनें अधिकारों के प्रति जागरूक
उच्च न्यायालय में सॉलिसिटर एवं एडवोकेट कुनाल मदान के अनुसार, ‘हमारे देश में लगभग 98 प्रतिशत महिलाएं संविधान द्वारा उन्हें दिए गए अधिकारों के बारे में जागरूक ही नहीं हैं। वे इस बात से भी अनजान हैं कि महिला जहां चाहे जीरो एफआईआर के तहत रिपोर्ट दर्ज करवा सकती है और उसकी शिकायत संबंधित थाने तक पहुंचा दी जाएगी। दूसरा, सबसे अधिक मामले घरेलू हिंसा के होते हैं, लेकिन वे नहीं जानती कि थप्पड़ मारना, थूकना, अपमानजनक व्यवहार करना आईपीसी की धारा 323 के अंतर्गत कानूनन अपराध है। वहीं यदि उनको गहरी चोट लगती है तो यह आईपीसी की धारा 498 के तहत और हत्या करने का प्रयास धारा 307 तथा रेप करने की कोशिश धारा 511 और बलात्कार धारा 375 के तहत गंभीर अपराध है, जिसके लिए अपराधी को 2 साल से 10 साल तक की सजा मिल सकती है। यदि अपराध संगीन हो तो दोषी को आजीवन सजा व फांसी भी हो सकती है, जैसा हाल ही में निर्भया के मामले में देखने को मिला है। अगर आप चाहती हैं कि महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों में कमी आए तो आपको भी अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होना होगा और दूसरों को भी करना होगा।

पीड़ित को न ठहराएं दोषी
हमारे समाज में कोई भी घटना होने पर दोषी सिर्फ महिला को ही ठहराया जाता है। उसके कपड़े,  जीवनशैली, रात के समय घर से निकलने आदि वजहों की आड़ में उसे ही घटना के लिए जिम्मेदार मान लिया जाता है। ऐसे में बेशर्म, चरित्रहीन आदि आरोप तथा समाज में अपमानित होने के डर से आधे से ज्यादा मामलों में कोई रिपोर्ट ही दर्ज नहीं करवाई जाती है और अपराधियों का हौसला बढ़ता है। इस मनोवृत्ति को बदलने की जरूरत है। इसके लिए आपको भी सक्रिय भूमिका निभानी होगी। अपनी सोच बदलनी होगी और समाज की भी।

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